For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-135

विषय - "भूली बिसरी यादें"

आयोजन अवधि- 15 जनवरी 2022, दिन शनिवार से 16 जनवरी 2022, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 15 जनवरी 2022, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें

मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम परिवार

Views: 3192

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

विधा- गीतिका

छंद- मरहट्ठा माधवी

विधान- 29 मात्रा भार। 16, 13 पर यति अंत 212

पदांत- याद है

समांत- अड़ी

 

ज्‍वर में दलिया और मूँग की, सौंधी खिचड़ी याद है।

घी में पड़े हुए कपड़े से, रोटी चुपड़ी याद है ।

 

उधड़े बंदरटोपा, स्‍वेटर, शाल, रजाई ठंड भी,

सर्दी में दिन भर जलती वो, टूटी सिगड़ी याद है ।

 

लाते भर जेबें झड़बेरी, छिप कर खाते बाँट कर,

खेलों में गुलामडाली की, धौल वो पिछड़ी याद है ।

 

गर्मी की वो छाछ राबड़ी, उमस, मसहरी, लाय सब ,

कभी घमोरियों में मुल्‍तानी मिट्टी चिपड़ी याद है।

 

होरी पर गाते रसिया पर, सब ठंडाई भाँग पी,

चौपालों में बैठ ताश की, खेली छकड़ी याद है।

 

सब्जी और किराना मिलता, था बदले में अन्न के,

बनिया जो करता जल्दी से टेढ़ी तखड़ी याद है ।

 

रखते देखा माँ को कुछ-कुछ, कभी ताख या नाज में,

जब भी बापू मदद माँगते, खुलती हटड़ी याद है ।

 

महामारियों की तो जैसे, जन्‍मजात दुश्‍मनी रही,

चेचक से भाई बिछड़ा, इक बेटी बिछड़ी याद है।    

 

लोग अंधविश्‍वासों की अब, ‘आकुल’ भेंट चढ़ें नहीं,

खालीपन तो भर जाता पर लगे थेगड़ी याद है।  

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

आ. भाई गोपाल जी, अच्छी गीतिका हुई है। हार्दिक बधाई ।

बहुत सुन्दर गीतिका सृजन, प्रदत्त विषय जीवंत हो उठा।हार्दिक बधाई आदरणीय

वाह वाह, सभी पद बहुत ही सार्थक बन पड़े हैं, सुंदर गीतिका हेतु बधाई आदरणीय डॉ गोपाल कृष्ण जी ।

सुंदर प्रयास आदर. दंडपाणि जी। कुंडलिया छंद में कथ्‍य बहुत ही सुंदर है किंतु शिल्‍प में मात्रिक शिथिलता है।  13, 11 (दोहा) एवं 11, 13 (रोला) का निर्वहन नहीं होने से कई स्‍थान पर लय भंग हो रही है । देख लें । दोहा का संयोजन विषम चरण में 3,3,2,3,2 अथवा 4,4,3,2 होना चाहिए और अंत 1 2 (गुरु लघु ) रगण (212) हो तो श्रेष्‍ठ। साथ ही सम चरण 4,4,3 अथवा 3,3,2,3 होना चाहिए एवं अंत गुरु लघु अनिवार्य। इसी प्रकार रोला में विषम चरण 4,4,3 अथवा 3,3,2,3 और सम चरण 3,2,4,4 अथवा 3,2,3,3,2 को श्रेष्‍ठ माना गया है । रोला में सम चरणांत दो गुरु (वाचिक) होना अनिवार्य है। इसको ध्‍यान रख कर अभ्‍यास से कुंडलिया छंद बनाना आसान हो जाएगा । सादर

प्रदत्त विषय पर सुन्दर छन्द रचना। बधाई आदरणीय

आ. भाई दण्डपाणि जी, अभिवादन। रचना अभी परिमार्जन चाहती है। फिलहाल सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई।

आदरणीय नाहक साहब, सच कहूं तो कथ्य बहुत ही सुंदर है, छंद साधने में तनिक जल्दी हुई लगती है । विस्तार से आदरणीय विकल साहब ने अपनी टिप्पणी में महत्वपूर्ण बातें कही हैं ।

बधाई इस प्रस्तुति पर ।

ओ बी ओ लाइव महोत्सव - 135
विधा - कविता

घर के एक कोने में संभालकर रखें हैं
तेरी यादों के निशाँ

वो खत में छुपी इतर की खुशबू
वो शब्दों को भिगोते तेरे आँसू
वो मचलते अरमान, मोहब्बत के पेगाम
वो अनकही सी आरजूँ
घर के एक कोने में संभालकर रखें हैं

तेरे हाथों की चुड़ी के टूटे हुए टूकड़े
वो झुमते हुए तेरी कानों के झुमके
वो साहील की रेत जिससे बनाए थे घरोंदे
वो तेरी पायल के बिखरे हुए घुंघरू
वो रूमाल में लिपटे हुए शुष्क आँसू
घर के एक कोने में संभालकर रखें हैं

एक दिन पूछ बैठा मुझसे वो कोना
क्या खो गया है जिसे तू रोज ढूंढ़ता है
इतमीनान से हर चीज़ देखता है
हाथों से सहलाता और निहारता है
कभी आगोश में भरता
और दामन मेरा भीगों देता है
क्या खो गया है
जिंदगी खो गई है कैसे बता दूँ
अधुरी प्रेम कहानी कैसे सूना दूँ

घर के एक कोने में संभालकर रखें हैं
तेरी यादों के निशाँ

मौलिक अप्रकाशित स्वरचित
हिरेन अरविंद जोशी "अबोध"

आदरणीय भाई हिरेन अरविंद जोशी "अबोध" जी, सादर अभिवादन। मंच पर आपकी पहली रचना का स्वागत है। प्रदत्त विषय पर रचना का अच्छा प्रयास किया है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। थोड़े प्रयास से यह बेहतर हो सकती है। कुछ टंकण त्रुटियाँ हैं उन्हें सुधारें । सादर

रखें हैं - रखे हैं
इतर - इत्र
पेगाम - पैगाम
आरजूँ -आरजू
चुड़ी - चूड़ी
झुमते - झूलते
साहील - साहिल
भीगों -भिगो
अधुरी - अधूरी
सूना -सुना

बीते पलों पर खूबसूरत रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय

वाह वाह आदरणीय जोशी साहब प्रदत्त विषय को केंद्रित अच्छी रचना प्रस्तुत हुई है बधाई स्वीकार करें ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
yesterday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service