आदरणीय काव्य-रसिको !
सादर अभिवादन !!
’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ अड़तीसवाँ आयोजन है.
इस बार का छंद है - गीतिका छंद
आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -
22 अक्टूबर 2022 दिन शनिवार से
23 अक्टूबर 2022 दिन रविवार तक
हम आयोजन के अंतर्गत शास्त्रीय छन्दों के शुद्ध रूप तथा इनपर आधारित गीत तथा नवगीत जैसे प्रयोगों को भी मान दे रहे हैं. छन्दों को आधार बनाते हुए प्रदत्त चित्र पर आधारित छन्द-रचना तो करनी ही है, दिये गये चित्र को आधार बनाते हुए छंद आधारित नवगीत या गीत या अन्य गेय (मात्रिक) रचनायें भी प्रस्तुत की जा सकती हैं.
केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.
गीतिका छंद के मूलभूत नियमों से परिचित होने के लिए यहाँ क्लिक करें
जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती है.
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आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो
22 अक्टूबर 2022 दिन शनिवार से 23 अक्टूबर 2022 दिन रविवार तक, रचना-प्रस्तुति तथा टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.
चित्र अंर्तजाल के माध्यम से
अति आवश्यक सूचना :
छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपने अपनी भावनाओं को सुंदर शब्द दिये हैं. सामाजिकता, व्यावहारिकता, नैतिकता तो हैं ही, आखिरी छंद में वैश्विक समस्या के निराकरण की भी सार्थक चर्चा हुई है. बहुत खूब, बहुत खूब.
अलबत्ता, छंद शास्त्र में सटीक तुकों की भी चर्चा हुई है. जिसका निर्वहन किया जाना छंद-अभ्यासियोंके लिए अनिवार्य है. आप प्रयासरत रहें, इस पर भी पकड़ बन जाएगी. शुभकामनाएँ.
शुभ-शुभ
गीतिका छंद
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तेल दीपक और बाती का युगों से मेल है।
पास ना आये तमस जब तक दिया में तेल है॥
तीन युग तक था दिया ही रोशनी का आसरा।
झोपड़ी से महल तक था दीप का ही दायरा॥
साथ जलते तेल बाती नाम होता दीप का।
बूंद ही मोती बने पर नाम होता सीप का॥
दीप देता सीख हमको खो न देना हौसला।
रात दिन पुरुषार्थ कर करते रहो सबका भला॥
दीप लेकर कुल वधू घर आँगना में जब चले।
हर जगह कर दे उजाला जब तलक बाती जले॥
जब जले दीपक हजारों रोशनी लगती भली।
हर किसी को दे खुशी त्योहार शुभ दीपावली॥
.........................
मौलिक अप्रकाशित
आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप बहुत सुन्दर छन्द रचे हैं हार्दिक बधाई।
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झोपड़ी से महल तक था दीप का ही दायरा॥//
मुझे इसमें लय बाधित होती सी लगी । सुझाव दे रहा हूँ यदि उचित लगे दो देखिएगा।
-
झोपड़ी से हर महल तक दीप का ही दायरा॥
आदरणीय लक्ष्मण भाई
प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार आपका।
रोशनी के मामले में बीते तीन युग की स्थिति बताने के कारण मैंने था शब्द का प्रयोग् किया है।
आपका सुझाव भी सही है। लेकिन पढ़ता हूँ तो लगता है कि था रखने से लय् बाधित नहीं है।
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, सुंदर सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय दयाराम् भाई
प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार आपका।
आदरणीय अखिलेश जी, आपकी प्रस्तुति की हार्दिक बधाई.
जिस विशेष पद को लेकर आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ने चर्चा की है, उनका कहा वास्तव में तर्क संगत है.
शब्दों के सटीक उच्चारण ही उनके विन्यास तय करते हैं. शब्दों के विन्यासों के समुच्चय से पदों का कुल विन्यास निर्धारित होता है. यही कारण है, कि उक्त पद की लयता बाधित लग रही है. नहीं, बाधित है.
वस्तुत:, महल का उच्चारण म+हल होता है, न कि, मह+ल.
ल के स्थान पर लघु वर्ण की आवश्यकता है, तो यह आवश्यकता संतुष्ट हो रही है. परन्तु महल के उच्चारण के कारण उक्त स्थान पर हल आता है, जो कि, द्विकल है, यानी, वाचिक गुरु है. इसी कारण पद की लयता या गेयता बाधित हो रही है.
बाकी, आपका प्रयास श्लाघनीय है.
शुभ-शुभ
आदरणीय भाई जी, उचित विश्लेषण कर मेरे शंसय को प्रमाण रूप देने हेतु आभार।
संशय.. :-)))
_/\_
आदरणीय सौरभ भाईजी
उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार आपका।
महल के उच्चारण का विच्छेद कर समझाने के बाद सब कुछ स्पष्ट हो गया ।
इस पंक्ति में था का प्रयोग कर पहले लिखा था... झोपड़ी से था महल तक दीप का ही दायरा॥ ..... यह सही होता
पुनः धन्यवाद आपका एवं आदरणीय लक्ष्मण् जी का ।
सादर
अवश्य ही पहले वाली पंक्ति विन्यास में थी.
सादर
गीतिका छंद
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बुझ रहे हो दीप तो फिर से जलाना चाहिए।
आंधियों के वार से इनको बचाना चाहिए।।
है पुरानी रीत हर घर दीप की हो झाँकियां।
आजकल इस रीत में आई बहुत है खाँमियां।।
दीप ऐसा हम जलायें द्वेष दिल से दूर हो।
इस दिवाली प्रेम बूँदों से सभी भरपूर हो।।
आज तम को भेद कर ही राह रोशन हम करें।
राम पर विश्वास रख कर आँधियों से ना डरें।।
सीख देता दीप हमको तुम सदा चलते रहो।
रात दिन निज लक्ष्य हित मेरी तरह जलते रहो।।
काम अब ऐसा करें हम पथ सदा रौशन रहे।
देश हित में प्राण जाये काम सुन्दर सब कहे।।
- दयाराम मेठानी
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
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