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मैं उसी मोड़ पर सोचता रह गया
वो गया याद का सिलसिला रह गया
उसके होंठो पे कुछ बात सी रह गयी
मेरे मन में भी कुछ अनकहा रह गया
देख कर सब मुझे बात करने लगे
हाय क्या शख़्स था और क्या रह गया
आज फिर आँखों में है नमी अज़नबी
आज फिर आइना ताकता रह गया
मिट गया प्यार मायूस नाकाम हो
प्यार का दर्द लेकिन बचा रह गया
कहकहों से भरी चाँद की महफ़िलें
इक चकोरा उसे टेरता रह गया
दोस्त दामन बचाकर बिछड़ते गये
'ब्रज' ठगा सा अकेला खड़ा रह गया
अजीज कैसी साहब की ग़ज़ल
"आपको देखकर देखता रह गया" की जमीन पे वसीम बरेलवी की ग़ज़ल
"आते आते मिरा नाम सा रह गया
उस के होंटों पे कुछ काँपता रह गया"
इसी जमीन पे एक प्रयास मेरा...बताएं जरूर
(अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनंदन एवं आभार आदरणीय मिथिलेश जी...टंकण त्रुटि की ओर ध्यानाकर्षण के लिए भी आपका आभार...
आदरणीय बृजेश जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं. सादर
टंकण भूल- //मैं उसी मोड़ पर सोचता रहा गया//
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