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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-153

विषय : "बारिश की कविता"

आयोजन अवधि- 15 जुलाई 2023, दिन शनिवार से 16 जुलाई 2023, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन 'घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 15 जुलाई 2023, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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सुन्दर गीत।हार्दिक बधाई आदरणीय चेतन जी

आ. भाई चेतन जी, सुन्दर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सुंदर गीत सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई।

गीत
***
पुरवाई के साथ झूमती, ऋतु पावस की आयी।
पीछे - पीछे हवा मचलती सोंधी खुशबू लायी।।
*
दादुर गाते मोर नाचते, थिरके टिप -टिप बूँद।
हलधर फिरता खेतों में यूँ, हर्षित आँखें मूँद।।
जुगनू मेटे मस्ती में आ, सावन का अँधियार।
और पपीहे के मन में भी, लेता सुख अभिसार।।
जेठ जले जितने भी देखो, सब को बदली भायी।।
*
भाव बूँद के झिंगुर बाँचे, सुनते पुलकित खेत।
ताल सहेजे बूँद -बूँद को, किन्तु अनमनी रेत।।
विस्मित अंकुर गगन ताकते, नन्हीं आँखें खोल।
कैसे बदली बिन पाखों के, जग भर आती डोल।।
सावन आया देख मिटी है, धरती की हर झाई।।
*
छत टपके सीलन भीतों में, हर निर्धन के ठौर।
खेती हित पर नहीं बोलता, मत बरसो घन और।।
निष्ठुर पर्वत  की  छाती  से, फूट पड़ा ढब क्षीर।
और उफनती घुसी खेत में, नद तज सूखा तीर।।
नगर कोसता इस मौसम को, गाँव कहे सुखदायी।।
*
उमड़-घुमड़ कर श्याम घटाएँ, करतीं बेढब शोर।
पर बैठा परदेश निगोड़ा, गोरी का चित चोर।।
मादक मस्ती लाया पावस, तपते मौसम बाद।
संयोगी सखियों में झूले, भरते नित उन्माद।।
विरहिन का झुलसाये तन-मन, कैसी आग लगायी।।
*
किस पीड़ा की टीस नुकीली, गिरि का तोड़े मौन।
किस पीड़ा को पावस रोता, समझ सका यह कौन।।
जलथल छोर कहीं पर है तो, तपता कहीं वितान।
फिर भी हर्षित जीव जगत है, पीड़ा सह सुख जान।।
हँसती जी भर यूँ पावस में , लता जेठ अकुलाई।।
*
मौलिक/अप्रकाशित

पावस के सभी रंगों को बहुत सुन्दर शब्द मिले हैं आपके इस गीत मे आदरणीय भाई लक्ष्मण जी।हार्दिक बधाई 

आ. प्रतिभा बहन, गीत पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर एवं भाव पूर्ण गीत के लिए बहुत बहुत बधाई।

आ. भाई दयाराम जी, गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। 

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