नूतन वर्ष
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दुल्हन सी सजी-धजी
गुजर रहे साल की अंतिम शाम ।
लोग मग्न हैं
जाने वाले वर्ष की विदाई में
कुछ नवागंतुक के स्वागत में।
कोई मंत्र उच्चारण - हवन करने में
मंदिर में पूजा पाठ में।
कोई दान देने में
और कोई दान लेने में ।
कर भला - हो भला
आने वाला नया साल
हो सबका भला।
कहीं - कहीं सभ्यता
पाश्चात्य रंग में रंगी
मयखाने में मदहोश पड़ी है ।
फूटेंगे आधी रात को पटाखे
उड़ेगी मदहोशी मयभरी ।
रात की खामोशी तोड़ेगा
नींद हराम करेगा
बारूद भरा रंगीला शोर शराबा।
सभ्यता बदल रही है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
सुरेश कुमार 'कल्याण'
Comment
आद0 सुरेश कल्याण जी सादर अभिवादन। बढ़िया भावभियक्ति हुई है। वाकई में समय बदल रहा है, लेकिन बदलना तो प्रकृति का ही नियम है, वरना हम आज भी आदिकाल सरीखा ही रहते
बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी
आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।।
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