गुरु को नित वंदन करो, हर पल है गुरूवार.
 गुरु ही देता शिष्य को, निज आचार-विचार..
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 विधि-हरि-हर, परब्रम्ह भी, गुरु-सम्मुख लघुकाय.
 अगम अमित है गुरु कृपा, कोई नहीं पर्याय..
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 गुरु है गंगा ज्ञान की, करे पाप का नाश.
 ब्रम्हा-विष्णु-महेश सम, काटे भाव का पाश..
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 गुरु भास्कर अज्ञान तम्, ज्ञान सुमंगल भोर.
 शिष्य पखेरू कर्म कर, गहे सफलता कोर..
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 गुरु-चरणों में बैठकर, गुर जीवन के जान.
 ज्ञान गहे एकाग्र मन, चंचल चित अज्ञान..
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 गुरुता जिसमें वह गुरु, शत-शत नम्र प्रणाम.
 कंकर से शंकर गढ़े, कर्म करे निष्काम..
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 गुरु पल में ले शिष्य के, गुण-अवगुण पहचान.
 दोष मिटा कर बना दे, आदम से इंसान..
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 गुरु-चरणों में स्वर्ग है, गुरु-सेवा में मुक्ति.
 भव सागर-उद्धार की, गुरु-पूजन ही युक्ति..
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 माटी शिष्य कुम्हार गुरु, करे न कुछ संकोच.
 कूटे-साने रात-दिन, तब पैदा हो लोच..
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 कथनी-करनी एक हो, गुरु उसको ही मान.
 चिन्तन चरखा पठन रुई, सूत आचरण जान..
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 शिष्यों के गुरु एक है, गुरु को शिष्य अनेक.
 भक्तों को हरि एक ज्यों, हरि को भक्त अनेक..
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 गुरु तो गिरिवर उच्च हो, शिष्य 'सलिल' सम दीन.
 गुरु-पद-रज बिन विकल हो, जैसे जल बिन मीन..
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 ज्ञान-ज्योति गुरु दीप ही, तम् का करे विनाश.
 लगन-परिश्रम दीप-घृत, श्रृद्धा प्रखर प्रकाश..
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 गुरु दुनिया में कम मिलें, मिलते गुरु-घंटाल.
 पाठ पढ़ाकर त्याग का, स्वयं उड़ाते माल..
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 गुरु-गरिमा-गायन करे, पाप-ताप का नाश.
 गुरु-अनुकम्पा काटती, महाकाल का पाश..
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 विश्वामित्र-वशिष्ठ बिन, शिष्य न होता राम.
 गुरु गुण दे, अवगुण हरे, अनथक आठों याम..
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 गुरु खुद गुड़ रह शिष्य को, शक्कर सदृश निखार.
 माटी से मूरत गढ़े, पूजे सब संसार..
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 गुरु की महिमा है अगम, गाकर तरता शिष्य.
 गुरु कल का अनुमान कर, गढ़ता आज भविष्य..
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 मुँह देखी कहता नहीं, गुरु बतलाता दोष.
 कमियाँ दूर किये बिना, गुरु न करे संतोष..
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 शिष्य बिना गुरु अधूरा, गुरु बिन शिष्य अपूर्ण.
 सिन्धु-बिंदु, रवि-किरण सम, गुरु गिरि चेला चूर्ण..
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 गुरु अनुकम्पा नर्मदा,रुके न नेह-निनाद.
 अविचल श्रृद्धा रहे तो, भंग न हो संवाद..
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 गुरु की जय-जयकार कर, रसना होती धन्य.
 गुरु पग-रज पाकर तरें, कामी क्रोधी वन्य..
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 गुरुवर जिस पर सदय हों, उसके जागें भाग्य.
 लोभ-मोह से मुक्ति पा, शिष्य वरे वैराग्य..
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 गुरु को पारस जानिए, करे लौह को स्वर्ण.
 शिष्य और गुरु जगत में, केवल दो ही वर्ण..
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 संस्कार की सान पर, गुरु धरता है धार.
 नीर-क्षीर सम शिष्य के, कर आचार-विचार..
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 माटी से मूरत गढ़े, सद्गुरु फूंके प्राण.
 कर अपूर्ण को पूर्ण गुरु, भव से देता त्राण..
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 गुरु से भेद न मानिये, गुरु से रहें न दूर.
 गुरु बिन 'सलिल' मनुष्य है, आँखें रहते सूर.
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 टीचर-प्रीचर गुरु नहीं, ना मास्टर-उस्ताद.
 गुरु-पूजा ही प्रथम कर, प्रभु की पूजा बाद..
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