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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
प्रस्तुत है.....
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126
विषय : पहचान
अवधि : 29-09-2025 से 30-09-2025
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
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5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
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.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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Replies to This Discussion

जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। 

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। कई सालों बाद लघुकथा का प्रयास किया है। अभी गुंजाइश है। कसावट का प्रयास करता हूं। सादर

आदरणीय मिथिलेश जी, इतना ही कहूँ,   ... ' पहचान पता न चले। बस। ' रहस्य - रोमांच का बेहतर सामंजस्य। बधाइयाँ।। 

आदरणीय मनन कुमार सिंह जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर

लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी हो चुके पिता का दर्द कहती हुई बहुत भावुक पंक्तियाँ हैं ये। पहचान विषय को सार्थक करती एक शानदार लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय मिथिलेश जी। ये अवश्य है कि कुछ एक जगह पर कसावट और स्पष्टता की गुंजाइश दिख रही है

आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा स्पष्टता और कसावट का प्रयास करता हूँ । सादर

कारण (लघुकथा):
सरकारी स्कूल की सातवीं कक्षा में विद्यार्थी नये शिक्षक द्वारा ब्लैकबोर्ड पर लिखे गए कुछ शब्दार्थ लिख रहे थे। एक विद्यार्थी नहीं लिख रहा था। शिक्षक ने गंदे से वस्त्र पहने अस्त-व्यस्त बालों वाले उस विद्यार्थी से पूछा, "क्यों नहीं लिख रहे हो? क्या नाम है तुम्हारा?" 
वह चुप रहा। सिर झुकाकर खड़ा रहा।
"सर यह न तो लिख पाता है और न ही पढ़ पाता है। अपना नाम भी ढंग से नहीं बताता!" एक चंचल छात्रा निधि बोली।
"आदिवासी है सर। ऐसे ही आ जाता है यह!" दूसरे विद्यार्थी ने कहा।
शिक्षक ने उसके नज़दीक़ जाकर उसकी उत्तरपुस्तिका पर नज़र डाली। 
"कुछ लिखने का प्रयास तो किया था तुमने! बैठ जाओ... और कोशिश करो बेटा!" यह कहकर शिक्षक वापस ब्लैकबोर्ड की तरफ़ जा ही रहे थे कि निधि बोली, "सर, ज़रा उसका बस्ता भी तो चैक करो!" 
"क्यों?" शिक्षक ने कहा।
"देखो तो सर, आप समझ जाओगे कि यह चुप क्यों रहता है और अपना नाम क्यों नहीं बताता!" उसने अपने मुॅंह पर हाथ रखकर हॅंसी रोकते हुए कहा।
शिक्षक ने उसका बस्ता चैक किया तो पाया कि उसमें घरेलू संगीत उपकरणों और मोबाइल वग़ैरह की मदरबोर्ड जैसी सर्किट-प्लेंटें वग़ैरह थीं।
"यह सब क्यों रखते हो बस्ते में? कॉपी-क़िताबें क्यों नहीं?" उन्होंने हैरान होकर पूछा।
वह चुपचाप सिर झुकाए खड़ा रहा।
"इंजीनियर है सर, इंजीनियर!" एक शरारती विद्यार्थी ज़ोर से बोला, "यही नाम है इसका!" 
"नहीं  सर,  मैकेनिक है... डीजे सुधार लेता है!" दूसरा बोला।
वह सिर उठाकर धीमे से मुस्कुराया। फिर सिर झुका लिया।
शिक्षक ने पूछा, "बेटे, तुम तो अच्छे मिस्त्री ही नहीं,  इंजीनियर भी बन सकते हो! पढ़ाई-लिखाई भी तो करनी पड़ेगी न! अच्छा अपना नाम तो बताओ अब?" 
वह चुप रहा और सिर खुजाने लगा। 
(मौलिक व अप्रकाशित)

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर।

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन हेतु।

पहचान की परिभाषा कर्म - केंद्रित हो, वही उचित है। आदरणीय उस्मानी जी, बेहतर लघुकथा के लिए बधाइयाँ प्रेषित हैं। 

तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई हेतु।

पहचान
______
नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर निगाहों से उसे ढूँढता हुआ उसकी आवत- जावत को ख़ुशबू से पहचानता निहाल और बेचैैन हुआ जा रहा है।
"बहू! बहू! बहू!" चक्करघिन्नी से पाँव दिनभर इसकी- उसकी जरूरतें पूरी करते हुए रात को दर्द से कराह रहे हैं। "कराह से पता चल जाता है तुम पास हो।तुम्हारा नाम कराह देवी रख देता हूँ" पति ने चिढ़कर  करवट बदल ली है।
"माँ मैडम ने डाँटा। ड्रैस साफ नहीं धोई थी आपने'' हाँ- हाँ करती गर्दन स्वीकारोक्ति और अपराधबोध में हिल रही है।
" कितना कुड़ - कुड़ करती हो माँ! कुड़- कुड़ माँ,ये नाम ठीक है आपका। हर साल कैसे आ सकते हैं विदेश से! फोन तो करता हूँ न हर हफ्ते" बेटा कह रहा है।
"दिन भर गली के कुत्तों से बातें करती रहती है ये कुत्तों वाली अम्मा। इतने बड़े घर में अकेली करे भी क्या बिचारी" पड़ौसी आपस में बातें कर रहे हैं।
जीवन की किताब में उसकी पहचान के पन्ने फड़फड़ा कर अब आँखरी पन्ने पर रुक गये हैं
 "बाॅडी को उठाने की तैयारी करो भई। बच्चे कब आयें पता नहीं विदेश से। तब तक पड़ी थोड़ी रहेगी बाॅडी!"
_____
मौलिक व अप्रकाशित 

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