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गुरु पूर्णिमा पर : दोहे गुरु वंदना के... संजीव 'सलिल'

गुरु को नित वंदन करो, हर पल है गुरूवार.
गुरु ही देता शिष्य को, निज आचार-विचार..
*
विधि-हरि-हर, परब्रम्ह भी, गुरु-सम्मुख लघुकाय.
अगम अमित है गुरु कृपा, कोई नहीं पर्याय..
*
गुरु है गंगा ज्ञान की, करे पाप का नाश.
ब्रम्हा-विष्णु-महेश सम, काटे भाव का पाश..
*
गुरु भास्कर अज्ञान तम्, ज्ञान सुमंगल भोर.
शिष्य पखेरू कर्म कर, गहे सफलता कोर..
*
गुरु-चरणों में बैठकर, गुर जीवन के जान.
ज्ञान गहे एकाग्र मन, चंचल चित अज्ञान..
*
गुरुता जिसमें वह गुरु, शत-शत नम्र प्रणाम.
कंकर से शंकर गढ़े, कर्म करे निष्काम..
*
गुरु पल में ले शिष्य के, गुण-अवगुण पहचान.
दोष मिटा कर बना दे, आदम से इंसान..
*
गुरु-चरणों में स्वर्ग है, गुरु-सेवा में मुक्ति.
भव सागर-उद्धार की, गुरु-पूजन ही युक्ति..
*
माटी शिष्य कुम्हार गुरु, करे न कुछ संकोच.
कूटे-साने रात-दिन, तब पैदा हो लोच..
*
कथनी-करनी एक हो, गुरु उसको ही मान.
चिन्तन चरखा पठन रुई, सूत आचरण जान..
*
शिष्यों के गुरु एक है, गुरु को शिष्य अनेक.
भक्तों को हरि एक ज्यों, हरि को भक्त अनेक..
*
गुरु तो गिरिवर उच्च हो, शिष्य 'सलिल' सम दीन.
गुरु-पद-रज बिन विकल हो, जैसे जल बिन मीन..
*
ज्ञान-ज्योति गुरु दीप ही, तम् का करे विनाश.
लगन-परिश्रम दीप-घृत, श्रृद्धा प्रखर प्रकाश..
*
गुरु दुनिया में कम मिलें, मिलते गुरु-घंटाल.
पाठ पढ़ाकर त्याग का, स्वयं उड़ाते माल..
*
गुरु-गरिमा-गायन करे, पाप-ताप का नाश.
गुरु-अनुकम्पा काटती, महाकाल का पाश..
*
विश्वामित्र-वशिष्ठ बिन, शिष्य न होता राम.
गुरु गुण दे, अवगुण हरे, अनथक आठों याम..
*
गुरु खुद गुड़ रह शिष्य को, शक्कर सदृश निखार.
माटी से मूरत गढ़े, पूजे सब संसार..
*
गुरु की महिमा है अगम, गाकर तरता शिष्य.
गुरु कल का अनुमान कर, गढ़ता आज भविष्य..
*
मुँह देखी कहता नहीं, गुरु बतलाता दोष.
कमियाँ दूर किये बिना, गुरु न करे संतोष..
*
शिष्य बिना गुरु अधूरा, गुरु बिन शिष्य अपूर्ण.
सिन्धु-बिंदु, रवि-किरण सम, गुरु गिरि चेला चूर्ण..
*
गुरु अनुकम्पा नर्मदा,रुके न नेह-निनाद.
अविचल श्रृद्धा रहे तो, भंग न हो संवाद..
*
गुरु की जय-जयकार कर, रसना होती धन्य.
गुरु पग-रज पाकर तरें, कामी क्रोधी वन्य..
*
गुरुवर जिस पर सदय हों, उसके जागें भाग्य.
लोभ-मोह से मुक्ति पा, शिष्य वरे वैराग्य..
*
गुरु को पारस जानिए, करे लौह को स्वर्ण.
शिष्य और गुरु जगत में, केवल दो ही वर्ण..
*
संस्कार की सान पर, गुरु धरता है धार.
नीर-क्षीर सम शिष्य के, कर आचार-विचार..
*
माटी से मूरत गढ़े, सद्गुरु फूंके प्राण.
कर अपूर्ण को पूर्ण गुरु, भव से देता त्राण..
*
गुरु से भेद न मानिये, गुरु से रहें न दूर.
गुरु बिन 'सलिल' मनुष्य है, आँखें रहते सूर.
*
टीचर-प्रीचर गुरु नहीं, ना मास्टर-उस्ताद.
गुरु-पूजा ही प्रथम कर, प्रभु की पूजा बाद..
********

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Comment

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Comment by sanjiv verma 'salil' on July 26, 2010 at 9:20am
आपने दोहों को आत्मसात किया, धन्यवाद... प्रिय गणेश जी! आपका आग्रह उचित है... पर मेरी कुछ कतिनाई है. रचनाएँ पढता तो हूँ... पर टिप्पणी के लिये एक तो समय का अभाव, दूसरे केवल प्रशंसात्मक टिप्पणी की चाह और रीते तथा हर विधा की समझ न होना बाधक हैं. अपनी रचनाओं पर हो रही टिप्पणियाँ भी केवल प्रशंशात्मक पाता हूँ, पाठक रचनाकार यदि उनकी कमियाँ इंगित करें अथवा उनमें कुछ अच्छा पायें तो अपनी रचना में उत्तरें या कुछ नया देखें तो उस बारे में पूछें तो टिप्पणी में लगा समय सार्थक हो. मुझे प्रतिदिन कई साइट्स पर अलग-अलग विषयों और विधाओं में लिखने का आग्रह आप जैसे मित्र करते हैं... माना करने का स्वभाव न होने से कार्य अधिक और समय कम हो जाता है. नकारी के पहले और बाद इमं ही कुछ कर पाता हूँ. ऑंखें और कमर भी कुछ घंटों के बाद साथ देना कम कर देती हैं. अस्तु...आपके आग्रह की रक्षा का प्रयास करूँगा.
Comment by Sanjay Kumar Singh on July 25, 2010 at 2:01pm
Guru purnima key din ees sey badhkar kuchh bhi nahi ho sakta , achhi rachna , thanks sir,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 25, 2010 at 10:37am
गुरु को पारस जानिए, करे लौह को स्वर्ण.
शिष्य और गुरु जगत में, केवल दो ही वर्ण..
परम श्रद्धेय आचार्य जी, चरण स्पर्श, आज के पावन बेला पर आपकी यह दोहे सोने पर सुहागा सरीखे हैं, बहुत बहुत धन्यवाद है आपका जो इतने बहुमूल्य दोहे हम लोगो के मध्य रखे, सभी के सभी दोहे काफी अर्थपूर्ण और उच्च भाव से भरे हुये है,
एक निवेदन है आचार्य जी, OBO पर हम सभी एक दुसरे से ही कुछ कुछ सीखते है और लिखते है यदि आप का आशीर्वाद यहाँ पोस्ट हुये रचनाओं को भी मिलता रहे तो हम सभी बहुत बहुत आप के आभारी होंगे,धन्यवाद,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 25, 2010 at 10:05am
श्रद्धेय आचार्य जी
गुरु की महिमा के गुणगान करते हुए यह दोहे अपने गुरुजनों के प्रति आदर के भाव को और बढ़ा देते है......
अपना आशीर्वाद बनाये रखे

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on July 25, 2010 at 9:57am
परम श्रधेय आचार्य सलिल जी - गुरु पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर समस्त OBO परिवार की ओर से मैं आपको शत शत प्रणाम कहता हूँ ! अपनी छाँव हम बच्चों पर बनाये रखिये !

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