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केसिया सँवरलि - हम रुपवा सजवलीं .
गजरा लगवलीं - हाथे मेंहदी रचवलीं.
धानी चुनर लहराइल- बाकिर, ननदी के भईया ना आइल.
अंखिया से दूर भागे रतिया में निदिया.
सजना के बाट जोहे मथवा के बिंदिया.
लोरवा से कजरा धोवाइल- बाकिर, ननदी के भईया ना आइल.
सपना में पिया जी के पंजरा बोलाइलां.
जेतना बा प्यार मन में उन पर लुटाइलां.
होठ काँपे देह थरथराइल - बाकिर, ननदी के भईया ना आइल.
साध लागे सइंया तोहके कजरी सुनइतीं.
निमिया के गछियाँ पे झुलुवा झूलइतीं.
सावन के बदरा मंडराइल - बाकिर, ननदी के भईया ना आइल.
गीतकार- सतीश मापतपुरी

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Replies to This Discussion

सतीश जी ! सावन के महिना के बहुत नीमन गीत प्रस्तुत कइनी । बहुत बढ़िया ।
jai ho intjar ke ant hoi jarur aaihan chinta mat kari
साध लागे सइंया तोहके कजरी सुनइतीं.
निमिया के गछियाँ पे झुलुवा झूलइतीं.
सावन के बदरा मंडराइल - बाकिर, ननदी के भईया ना आइल.
सावन पर नीमन रचना बा सतीश भईया , बहुत बढिया,

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