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संत वाणी 

अवतार या अवतार के अंश को ईश्वरकोटि कहते हैं और साधारण लोगों को जीवकोटि ! जो जीवकोटि के हैं, वे साधनाएँ करके ईश्वर का लाभ प्राप्त कर सकते हैं ! वे निर्विकल्प समाधि से कभी लौटते नहीं ! जो ईश्वरकोटि के हैं , वे मानो राजा के बेटे हैं और मानो सात मंजिल वाले मकान की चाबी उनके हाथ में हैं ! वे सातों मंजिलों तक चढ़ जाते हैं , फिर इच्छानुसार उतर भी आ सकते हैं ! जीवकोटि मानव छोटे कर्मचारी हैं ! वे कुछ दूर तक ही सीढियाँ चढ़ पाते हैं !
श्री रामकृष्ण परमहंस

 

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Replies to This Discussion

भाई रविजी, आपने संतवाणी की बेहतर शुरुआत की है.

 

परमहंस रामकृष्ण के इस कथ्य के आलोक में कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दों और उनकी प्रतिच्छाया से परिचय हो रहा है, यथा,  समाधि, निर्विकल्प समाधि, सात मंजिलों की चढ़ान, उनपर चढ़ना और फिर उतर भी आना.

बेहतर होगा यदि कुछ सदस्य इन शब्दों का पारिभाषिक प्रारूप दें ताकि कथ्य स्पष्ट हो सके.  

सौरभ भैया आपने इस संत वाणी को सत्संग का रूप दे दिया है.

नहीं.   किन्तु बिना मुख्य शब्दों को जाने इन उक्तियों को कैसे समझा जा सकता है ?

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