For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीता हूँ हर पल इस दुनिया में मगर 

डरता हूँ इस दुनिया से ,यह मुझे गुमनाम न बना दे 

लड़ता हूँ हर पल एक जंग सी खुद से
खो देता हूँ  सपनों के पूरा होने की आस 
टूट सा जाता है विश्वास खुद से 
सजाये थे जो ख्यालों के जो आशियाने 
उम्मीदों के बनाये थे जो शामियाने 
जैसे एक बवंडर सा आया और सब तबाह कर गया 
रह गयी तोह बस वोह नीव जिस पर सब टिका था 
कभी खुद की नज़रों का तारा था मैं 
लेकिन अब वोह तारा टूटता सा नज़र आता है 
कभी दूसरों का सहारा था मैं 
अब खुद को बेसहारा सा पता हूँ मैं 

एक लौ  सी थी  मुझमे
जो आग की तलाश  में जल रही थी  
आई एक घनघोर घटा 
जो सब कुछ बुझा सी गयी 
 अब तो  खुद की तलाश भी मुश्किल सी हो गई है 
चुबक की सुइयां भी सो सी गई है 
चरों दिशाओं में एक रोशन सा अँधेरा है 
जो आँखों को चोंधिया सा  रहा है 
न जाने क्यों फिर भी एक उम्मीद सी है दिल में
की अपने ख्वाबों को फिर से जी लूँ 
हर दर्द को एक घूंट में पी लूँ 
अंधेरों को तो  जुगनू भी चीर जाते हैं
हम तोह फिर भी इंसानियत की मशाल थामे हुए हैं 
कुछ पल तोह सूरज को भी ग्रहण लगता है
तो क्या वो सुबह फिर लौटना छोड़ देता है
इरादों में अगर तेरे दम है , तो तू क्यों उमीदों का दामन छोड़ता है
तुझे किसी से कम नहीं बनाया हे भगवान  ने
तू क्यों  डरता है फिर इस  इन्सान से
बस पहचान ले तू अपने उस हूनर को
लगा दे जी जान तू पहुच अपने मुकाम पे 
रख हौसला ये दो पल के अँधेरे भी मिट जायेंगे 
तुझे गुमनाम बनाने वाले ये दुनिया वाले तेरे मुरीद बन जायेंगे | 
 

Views: 496

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rohit Dubey "योद्धा " on March 11, 2012 at 11:13pm
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 10, 2012 at 6:53pm

प्रिय रोहित जी,

उम्मीद का दामन ही वो चीज़ है जो जीवन के हर पग पर काम आती है और हमारे कार्य सिद्ध भी करती है| निराशा और आशाके बीच के अंतर्द्वंद को बहुत ढंग से प्रस्तुत किया आपने| बहुत अच्छे|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 9, 2012 at 4:10pm

आत्मविश्वास को सबल करती रचना.. .

 

निवेदन : प्रविष्टियों को अपलोड करने के पूर्व अक्षरी दोष ठीक कर लिया करें.

Comment by Rohit Dubey "योद्धा " on March 9, 2012 at 4:00pm

Thankyou so much Pradeep Ji and Aushutosh Ji

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 9, 2012 at 3:59pm

तुझे किसी से कम नहीं बनाया हे भगवान  ने

तू क्यों  डरता है फिर इस  इन्सान से
बस पहचान ले तू अपने उस हूनर को
लगा दे जी जान तू पहुच अपने मुकाम पे 
रख हौसला ये दो पल के अँधेरे भी मिट जायेंगे 
तुझे गुमनाम बनाने वाले ये दुनिया वाले तेरे मुरीद बन जायेंगे | 
 great sprit. badhai. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
18 hours ago
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service