योगराज प्रभाकर
(प्रधान सम्पादक)
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आदरणीय प्रधान सम्पादक महोदय,साहित्य के प्रचार प्रसार में ये एक प्रशंसनीय निर्णय है ... प्रबंधन मंडल का बहुत बहुत आभार.
सादर आभार आदरणीय अविनाश बागडे साहिब.
इन पुरस्कारों की घोषणा से निश्चय ही साहित्य से अनुराग रखने वाले सभी सुधिजनों के अंदर एक नवीन ऊर्जा का संचार होगा| साहित्य के प्रसार और उन्नयन में भी यह सहायक होगा| ओ बी ओ प्रबंधन और सम्पादकीय मण्डल को हार्दिक शुभकामनाएँ और मंच के सदस्यों को भी| अशेष धन्यवाद सहित,
भाई संदीप द्विवेदी जी, अनुमोदन हेतु दिल से आभार व्यक्त करता हूँ.
हिंदी साहित्य के विकास और प्रचार के लिए बहुत सराहनीय कदम हार्दिक स्वागत है इस घोषणा का |
अभूतपूर्व निर्णय एवं शानदार घोषणा
सादर धन्यवाद भाई आशीष जी.
मेरे मित्र योगी भाई...मुझे यह जान कर अपार हर्ष हो रहा है कि आपका लगाया हुआ मासूम पौधा (ओ बी ओ) अपनी खूबसूरती के किस्से अब जगह जगह ब्यान कर रहा है, आपके प्रभामण्डल के जरिये..न जाने कितने शैदाई इस तहरीक से खुद को बांध रहे हैं, यह सब आपकी बेलाग मौहब्बत और आपकी समझ का असर है कि आपके नेतृत्व में एक ऐसी टीम बनती जा रही है जो इस तहरीक को अवश्य एक नया आयाम देगें. आप इन्हीं प्रतिबद्ध युवा नव कवियों का संचालन करेंगे बल्कि उनका मार्ग दर्शन करते हुए, साहित्य के सर्वोच्च कार्यभार को आवाम के सामने एक नज़ीर की तरह पेश करेंगे..आज सदभावना को उसके असल रुप में कायम करना उतना जरुरी नहीं जितना कि इंसान को बचाना एक प्रमुख प्रश्न बन गया है. बडे भाई सौरभ पाण्डेय जी का आपके शाना बशाना देख बहुत सुँकु होता है. बागी जी, राणा जी, वीनस जैसी नव प्रतिभायें भारत में किसी नये मानव को जन्म देने की प्रसव पीड़ा से भरपूर हैं.
दुष्यंत पुरुस्कार की घोषणा करके आपने अपनी मंशा साफ़ कर दी है कि कौन प्रेरक है और कौन आराध्य, इस फ़ैसले पर पूरा संपादक मण्डल बधाई का पात्र है.
बस तकलीफ़ इस बात की है, कि मैं बहुत समय से गैर हाजिर हूँ, उसकी वजह यह है कि मैं आपकी उपस्थिती से इतना आश्वस्त हूँ कि मैंने ये मान ही लिया कि जो कुछ होगा ठीक ही होगा.
विनम्र अभिवादन के साथ आपका
शमशाद इलाही शम्स, कनैडा
शमशाद भाई जी, इस पौधे का बीजारोपण दर हकीकत मेरे ओबीओ से जुड़ने से तकरीबन एक महीने पहले भाई गणेश बागी जी ने श्री प्रीतम तिवारी और रवि कुमार गुरु के साथ मिलकर किया था. मुझे बेहद मसर्रत है कि आज यह पौधा एक अच्छा ख़ासा दरख्त बनने की राह पर अग्रसर है. आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ओबीओ के बारह मजबूत स्तंभों में से एक हैं जिनकी ताक़त के सहारे हम खड़े हैं.
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दुष्यंत दरअसल विरोध के नही बल्कि विद्रोह के प्रतीक थे, जिन्होंने हिंदी ग़ज़ल को एक विलक्षण कलेवर दिया. अत: उनके नाम से सम्मान की घोषणा करके हम ने उनसे ज्यादा खुद को सम्मानित किया है.
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वैसे आपकी इतनी लम्बी गैर हाजरी से बेचैनी हो जाती है सरकार. बहरहाल, हमारे इस फैसले की ताईद की खातिर मैं तह-ए-दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ.
आदरणीय योगराजभाईसाहब, अपने अभिन्न शमशाद भाई को आपका कहा हुआ आपके हृदय और मस्तिष्क के संतुलित होने और उनके निर्द्वंद्व होने का सटीक उदाहरण है.
योगस्थ कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनन्जय ।
सिद्धयसिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्चते।। [२-४८]
हम सभी आपके सक्षम सानिध्य में साहित्य की राह पर उद्येश्यपूर्ण यात्रा पर हैं.
आपका सादर आभार.
निर्णायक समिति का यह निर्णय अत्यंत ही प्रशंसनीय है और बहुत ही महत्वपूर्ण है. इससे साहित्य के प्रति लोगों का रुझान तो बढेगा ही रचनकारों को प्रेरणा भी मिलेगी. बहुत बहुत बधाई.
सादर आभार आदरणीया नीलिमा जी.
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