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हर दिन बन कर मलयज बयार 

सब पर होती रहती निसार

माँ से मिलतीं खुशियाँ हजार l

 

वो बन कर ममता की बदरी 

भरती रहती जीवन-गगरी   

छाया बन कर धूप-शीत में

बन जाती संबल की छतरी   

हर बुरी नजर देती उतार l

 

वो है बाती की स्वर्ण-कनी

हर दुख को सह लेती जननी 

पलकों पर सदा बिठाती है

बच्चे होते कच्ची माटी से

ढाले वो उनको ज्यों कुम्हार l

वो हृदय में रहे चाशनी सम 

स्नेह कभी ना होता कम 

सबकी खुशियों में रम कर 

छिपा के रखती अपने गम  

उसमें क्षमता भू सी अपार l

 

वो है तो है घर में बसंत

आँचल उसका निर्मल अनंत

स्पर्श है उसका मरहम सा

वह ही है जग का आदि अंत

अक्षत-रोली और पुष्प-हार l

 

वो घर के नभ में चंदा-तारा

उस जैसा ना कोई न्यारा

झिड़की देकर गले लगाती   

बन कर कश्ती और पतवार    

हर आफत करती दरकिनार l 

 

हर दिन बन कर मलयज बयार 

सब पर होती रहती निसार

माँ से मिलतीं खुशियाँ हजार l

 

-शन्नो अग्रवाल 

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Comment

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Comment by Shanno Aggarwal on May 24, 2012 at 1:34am

बहुत-बहुत शुक्रिया...गणेश जी. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 23, 2012 at 8:41pm

//

झिड़की देकर गले लगाती   

बन कर कश्ती और पतवार   ///

वाह शन्नो दी , बहुत ही सही बात कही हैं, माँ ऐसी ही होती है |

Comment by Shanno Aggarwal on May 20, 2012 at 6:55pm

अशोक जी, रचना आपको पसंद आई इसके लिये आपका हार्दिक धन्यबाद. 

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 20, 2012 at 8:32am

शन्नो जी सादर नमस्कार,
                             वो है बाती की स्वर्ण-कनी
                हर दुख को सह लेती जननी
                पलकों पर सदा बिठाती है
                बच्चे होते कच्ची माटी से
                ढाले वो उनको ज्यों कुम्हार l
आपकी माँ के प्रति सुन्दर अभिव्यक्ति से मन में माता के प्रति आदर में और वृद्धि होती है. बधाई.

Comment by Shanno Aggarwal on May 16, 2012 at 11:36pm

अजय जी, अरुण जी, हसरत जी एवं राजेश कुमारी जी, रचना की सराहना हेतु आप सभी का साभार धन्यबाद. 

और हसरत जी, शेर के लिये शुक्रिया...बहुत खूबसूरत है...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 15, 2012 at 8:30pm

शन्नो जी माँ सच  में ऐसी ही होती हैं कभी भुलाई नहीं जाती मात्र महिमा से सराबोर कविता की हार्दिक बधाइयां 

Comment by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on May 15, 2012 at 3:37pm

bahut khoob ahanno ji 

apki rachna ko padhkar ek sher yaad aa gaya

jiske bhi dil se maa ki mohabbat chali gayi

samjho ke uske haath se jannat chali gayi

Comment by Abhinav Arun on May 15, 2012 at 3:31pm

वो है तो है घर में बसंत

आँचल उसका निर्मल अनंत

स्पर्श है उसका मरहम सा

वह ही है जग का आदि अंत

अक्षत-रोली और पुष्प-हार

ऐसी हर माँ और उसकी ममता को नमन है आपको  is  रचना के लिए हार्दिक बधाई !!

Comment by AjAy Kumar Bohat on May 15, 2012 at 2:06pm

Waah Shanno ji, bahut hi sundar....

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