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याचना है सांथियों मुझको राह दिखाना 
मकसद जिंदगी का मुझको भी बतलाना 
 
जिंदगी  का मकसद,किस राह पर है चलना 
तक़दीर में पाने को, क्या लिखा है मिलना 
 
अतीत की यादों को दिल में बसाता इंसान है 
अतीत के गहरे जख्म छुपा लेता इन्सान है 
 
अतीत के पन्नो को जब पलटता इन्सान है 
अपनो को गहरी यादों में खोजता इन्सान है 
 
जिंदगी जैसे मोती मणियों से माला बनाना  
फिर आहिस्ता आहिस्ता टूटकर बिखर जाना 
 
हमारे पूर्वजों के मशवरे है, अनमोल खजाना 
याद करेगा उनकी यादों को  सारा जमाना |
 
-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर  
  

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 1, 2012 at 6:45pm
आदरणीय अलबेला जी आपके पास है बधाई का खजाना 
इसीलिए तो अलबेला है ओ बी ओ में सबका जाना-माना
हार्दिक धन्यवाद -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर  
Comment by Albela Khatri on August 1, 2012 at 11:30am

waah...........bahut unchi baat

badhaai ho lakshman prasad ji

हमारे पूर्वजों के मशवरे है, अनमोल खजाना 
याद करेगा उनकी यादों को  सारा जमाना |
__bahut khoob
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 1, 2012 at 9:31am
भाई अहोक कुमार रक्ताले जी, 
रचना पसंद आई इसके लिए धन्यवाद 
दरअसल यह रचना तरही मुशायरा में अंकित की 
गयी थी, अद्दर्निय बागीजी मेरे अनुरोध पर इसमें 
कुछ संशोधन कर रहे थे तब त्रुटिवश delite हो गयी 
फिर अधिक देर हो जाने के कारण इसे ३१ को ब्लॉग-
पर पोस्ट करना पड़ा | उससमय आदरणीय अम्ब्रिश्जी
सहित जिन्होंने भी उत्साहवर्दन किया उन्सब्को भी
हार्दिक धन्यवाद |-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर 
Comment by Ashok Kumar Raktale on August 1, 2012 at 8:02am

आदरणीय

        सादर प्रणाम,

          

जिंदगी जैसे मोती मणियों से माला बनाना  
फिर आहिस्ता आहिस्ता टूटकर बिखर जाना
वाह बहुत सुन्दर!

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