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नारी शशक्ति करण पर सुन्दर आयोजन

नारी शशक्ति करण पर सुन्दर आयोजन 

पुरुष स्त्री साथ बैठ कर रहे थे भोजन 
कवि लेखकों की नारी रही सदैव रही प्रेरणा 
प्रत्येक क्षेत्र में नारी आगे कमी कोई दिखे न 
फिल्म , गीत, मंजन , साबुन या हो वस्त्र 
जग का हो कोई उत्पाद इन बिन बिके न 
नारी पुत्री, नारी बहना, नारी देवी, नारी माता
कोई धर्म हो कोई जाति हो है अनोखा नाता 
कई रूपों में देती सुख ये सम्मान की अधिकारी 
जन्मते जिस कोख से मानव भोगते उन्हें व्यभिचारी 
जिसके हाड मांस से निर्मित नोचते उसकी मज्जा 
कितना नैतिक पतन तुम्हारा आती क्यों न लज्जा 
लगती क्यों दांव सदा अबला है बेचारी 
नारी नारी का करती शोषण कैसी ये लाचारी 
नित लुटती नित मरती किसकी हो आभारी 
नारी शोषण जो करते उनपर करो प्रबल प्रहार 
लें शपथ आज हम तभी मनाएंगे तीज और त्यौहार 

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 26, 2012 at 1:42pm

आदरणीया विनीता जी, सादर अभिवादन 

इस रचना में कविता बिंदु पर श्रम करने की आज्ञा मिली है, कैसे किया जाये. मदद क्रप्या 

प्रोत्साहन हेतु आभार. 

Comment by Vinita Shukla on October 26, 2012 at 11:30am

बहुत गंभीर बात उठाई है आपकी इस रचना ने. सार्थक प्रस्तुति.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 25, 2012 at 3:44pm

आदरणीय बागी जी, 

सादर अभिवादन 

प्रोत्साहन हेतु आभार.

कविता बिंदु पर श्रम करना है. मेरा तो येही स्कूल है . कैसे इसे सुधार  जाये. मार्गदर्शन क्रप्या . सुधार दीजिए. ताकि रचना उत्क्रष्ट हो सके. 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on October 25, 2012 at 3:40pm

आदरणीय रविकर जी, सादर अभिवादन 

प्रोत्साहन हेतु आभार 

Comment by रविकर on October 25, 2012 at 9:18am

बढ़िया प्रस्तुति |
आदरणीय प्रदीप जी ||


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2012 at 6:59pm

कथ्य में दम है, रचना कविता बिंदु पर और अधिक श्रम की मांग करती है, बधाई इस प्रयास पर |

कृपया ध्यान दे...

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