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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा"अंक २९ मे शामिल सभी ग़ज़लें एक साथ

ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi) 

मेरे मौला तू ये करम कर दे I
सहने गुलशन में ताज़गी भर दे II

मीर-ओ-ग़ालिब का दर्द दे मुझको I
मेरी ग़ज़लों को मोतबर कर दे II

मैं जलाऊंगा हक़ की राहों में I
''तू चरागों में रौशनी भर दे II''

ऐ ख़ुदा उनके ग़म मुझे दे कर I
उनके दामन में हर ख़ुशी भर दे II

बेटियां पढ़ के सबकी आलिम हों I
ऐ ख़ुदा रौशनी ये घर घर दे II

मैं भी उड़ता फिरूं बलंदी पर I
हौसलों का मुझे तू शहपर दे II

आज उर्दू पढ़ें सभी 'गुलशन' I
ऐसी तौफिक तू अता कर दे II

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Mohd Nayab 

ऐ खुदा मुझपे इक नज़र कर दे l
मेरी हस्ती को मोतबर कर दे ll

मेहरबां हो जो ऐसा दिलबर दे l
साथ मेरा वो हर क़दम पर दे ll

ये दुआ तुझसे मेरे मौला है l
मेरे दिल को किसी का घर कर दे ll

तूने अय्यूब को दिया था कभी l
मेरा दामन भी सब्र से भर दे ll

खुद को भूला हूँ याद में उनकी l
कोई जा कर उन्हें खबर कर दे ll

इल्म हांसिल करे अमीर-ओ-ग़रीब l
ये तलब सबको मेरे दावर दे ll

ऐ ख़ुदा तह से जो भी लाऊं मैं l
अपनी कुदरत से तू गुहर कर दे ll

ज़ोम टूटे तो इन अंधेरों का l
इन चरागों में रौशनी भर दे ll

मैं जो उड़ने लगूं फ़ज़ाओं में l
ऐ खुदा मुझको बाज़ु-ओ-पर दे ll

मेरे गुलशन में फूल खिल जाएँ l
इस दुआ को तू बा-असर कर दे ll

जिसके 'नायाब' हों सभी गौहर l
मुझको वो फ़िक्र का समंदर दे ll

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Tilak Raj Kapoor 

दिल दिया है तो ये करम कर दे
साथ इसके हदे-समन्‍दर दे।

कौन कहता है तू बराबर दे 
पर ज़रूरत तो एक सी कर दे।

मूसलों से तुझे लगे डर तो
ओखली में कभी न तू सर दे।

पैर फ़ैला मगर तू उतने ही
जिन हदों तक तुझे वो चादर दे।

बढ़ रहा है हदों से आगे वो
आइना उस के सामने धर दे।

वो जिसे छत खुदा ने दी नीली
काश उसके लिये कभी घर दे।

क्‍या दिया है किसे, बता न बता
पर मुझे ऐ खुदा तेरा दर दे।

इन किताबों के वर्क खाली कर
प्रेम के सिर्फ़ ढाई आखर दे।

नेह बाती सभी तो है इनमें
इन चिराग़ों में रोशनी भर दे। 

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डॉ. सूर्या बाली "सूरज" 

आँख सोती नहीं तो यूं कर दे।
उम्र भर रतजगे का मंज़र दे॥

प्यास तो आसमान जैसी है,
दे सके तो मुझे समंदर दे॥

बेरुख़ी, ज़ुल्म और नफ़रत दी,
प्यार थोड़ा सा ऐ सितमगर दे॥

गुल खिलाकर तुझे दिखाऊँगा,
आजमा ले, ज़मीन बंजर दे॥

क्या करूंगा मैं लेके शीश महल,
जो मेरा था मुझे वही घर दे॥

रात भर तीरगी से लड़ना है,
“इन चरागों में रौशनी भर दे”॥

कारवां ज़िंदगी का भटका है,
राहे मुश्किल में कोई रहबर दे॥

उसके जूड़े में लग के इतराऊँ,
फूल जैसा मुझे मुकद्दर दे॥

दर्द से जंग लड़नी है “सूरज”,
उसकी यादों का एक लश्कर दे॥

दूसरी ग़ज़ल

इतना एहसान ऐ ख़ुदा कर दे।
अम्न सुख चैन प्यार घर घर दे॥

तिश्नगी जो बुझा सके मेरी,
अबतो होठों को ऐसा सागर दे॥

धूप भरने से मर न जाएँ कहीं,
“इन चिरागों में रौशनी भर दे॥“

सबको तलवार जंग में दे दी,
कम से कम मुझको एक खंजर दे॥

ये सफ़र की है आख़िरी मंज़िल,
सर को ढकने को एक चादर दे॥

दर्द का ख़ुद इलाज़ करना है,
मेरे हाथों में सिर्फ़ नश्तर दे॥

धूप खुशियों की अता कर “सूरज"
सबके चाहत की झोलियाँ भर दे॥

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योगराज प्रभाकर 

घर नहीं गर तो एक छप्पर दे
या खुदा इतना तो मुकद्दर दे (1)

गर नवाज़ा विशाल बंजर दे
प्यास इसकी बुझे तू पोखर दे (2)

लाख दारा* हज़ार दे अकबर
भूल कर भी न एक बाबर दे (3)

मैं सभी सिम्त रौशनी बांटूँ
गर कोई आफताब सा कर दे (4)

इस पे धानी चुनर ही फबती है
जिंदगी को न सुर्ख चादर दे (5)

मंडियाँ सौंप कर विदेशी को
संखिया ले लिया है केसर दे (6)

खौफ कैसा तुझे बता सीता ?
इम्तिहाँ आग में उतरकर दे (7)

जो धरातल दिखा दे आदम को
फिर अदम सा कोई सुखनवर दे (8)

बन किनारा बिछा पड़ा हूँ मैं
आ मेरे पाँव में समंदर दे (9)

जो ग़ज़ल रूह से लगे बेवा
अपने हाथों से उसको जौहर दे (10)

इल्म का नूर तिफ्ल को देकर
इन चिराग़ों में रोशनी भर दे (11)

* दारा = दारा शिकोह

दूसरी ग़ज़ल

ज़र हरीफों को मुझसे बढ़कर दे
दर्द लेकिन मेरे बराबर दे (1)

कल मेरे हाथ एक पत्थर दे
आज कहने लगा कि शंकर दे (2)

चैन की नींद सो सके वालिद
नेक दुख्तर को नेक शौहर दे (3)

एक ज़माना से रूह तिश्ना है
आज होंटों से जाम छूकर दे (4)

फिर तमाशा बने न पांचाली
पांडवों के न हाथ चौसर दे (5)

खूब दुनिया ज़हर खरीदेगी
चाशनी में अगर डुबोकर दे (6)

तीरगी लाम ले के आ पहुंची
जुगनुयों को ज़रा खबर कर दे (7)

पास अपने गुलेल रखता है
हाथ उसके न तू कबूतर दे (8)

रक्स देखें ज़रा शमा का भी
इन चिराग़ों में रोशनी भर दे (9)
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Yogendra B. Singh Alok Sitapuri 

तश्ना लब को तू एक सागर दे 
साकिया रिंद का भला कर दे

मैं हूँ दीवाना मेरी जिद ये है
फूल दूंगा उसे जो पत्थर दे

वो अमीर-ए- नगर था अब उसकी
लाश फुटपाथ पर है चादर दे

कोठियों की छतें हैं टूट रहीं
मेरे मौला तू एक छप्पर दे

आँधियों ने इन्हें बुझा डाला
इन चिरागों में रोशनी भर दे

बेटा कहता है जेब है खाली
नोट सौ सौ के मेरे फादर दे

मैं तो भटका हुआ मुसाफिर हूँ
पाऊं मंजिल तू ऐसा रहबर दे

जबकि 'आलोक' खुद ही चाकर है
बीबी क्यों कह रही है नौकर दे

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 Er. Ambarish Srivastava 

दर पे आऊं तो काम ये कर दे
दिल में अल्लाह प्यार तू भर दे [१]

जब भी गाऊं दुखे न दिल कोई
मेरी ग़ज़लों में ऐसा स्वर भर दे [२]

मेरी राहों में साथ सच का हो
राह भूलूँ न ऐसा रहबर दे [३]

मैंने खुद को अभी कहाँ जाना
खुद को जानूं अगर दया कर दे [४]

ग़म की आँधी से बुझ गए ये हैं
इन चिरागों में रोशनी भर दे [५]

वक्त का राज जान ले 'अम्बर'
फिर जमाने को तेज ठोकर दे [६]

दूसरी ग़ज़ल

मेरे भारत को मत सिकंदर दे
खिदमत-ए-कौम करते रहबर दे

दूर आतंक करते अफ़सर दे
राज वीरों का हो ये अवसर दे

कोई आँधी बुझा न पाए इन्हें
इन चिरागों में रोशनी भर दे

जिंदगानी तो जिंदगानी है
मौत आनी है उसको आदर दे

कांपती रूह रात जाड़े की
जिस्म नंगा है ढांक चादर दे

सोने चाँदी के ख्वाब देखे हैं
तुझको देखूं मैं ऐसा मंजर दे

आज 'अम्बर' यकीन आया है
दार अफज़ल चढ़े ये आर्डर दे
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Harjeet Singh Khalsa 

दुश्मनों को भी हक बराबर दे,
फूल दे हाथ में न खन्जर दे

झोलियाँ खुद ब खुद भरेगा वो,
बस उठा हाथ औ' दुआ कर दे ...

ये वफ़ा की हवा से जलते है,
इन चिरागों में रौशनी भर दे

बात जज़बात जम से गये है,
आज पानी में मार पत्थर दे .....

कब महल ये गरीब मांगेंगे,
चार दीवार से बना घर दे....

ये किनारों हि पर न रह जाये,
कश्तियों को तुफान अक्सर दे

दूसरी ग़ज़ल

राह में दे, हजार पत्थर दे,
मंजिलो के भि हौसले पर दे //1//

ग़म मैं सारे कबूल कर लूँगा,
हर ख़ुशी बस उसे अता कर दे, //2//

कोशिशें वक़्त तो लगाती है,
वक़्त इनको जरा बराबर दे, //3//

शाम तनहा सुबह अकेली है,
कुछ रहम कर बदल ये मंजर दे, //4//

इक नजर का सवाल है तेरी,
इन चिरागों में रौशनी भर दे, //5//

ऐश आराम चाहता कब हूँ,
पाँव जितनी मुझे भि चादर दे, //6//

माँ पिता का जहां रहे साया
लाख छोटा सही वही घर दे। //7//
**************************************

Saurabh Pandey 

दर्द दे, ज़ख़्म दे.. सता कर दे..
इस नदी को मग़र समन्दर दे ||1||

वोह खामोश हो चुका है अब
खुद न माँगेगा, ये समझ कर दे ||2||

वक़्त के पाँव उम्र चलती है
ज़िंदग़ी काश रच महावर दे ||3||

देख कर ज़िंदग़ी यहाँ नंगी..
बेहया से लगें टंगे परदे ||4||

इस दिये पर जरा भरोसा कर
कौन जाने यही नयन तर दे ||5||

आँख भर देख लूँ तुझे ’सौरभ’
’इन चिराग़ों में रौशनी भर दे’ ||6||

दूसरी ग़ज़ल

सोच को शब्द और तेवर दे
फिर ज़ुबां को समय व अवसर दे ||1||

चुप रहे तो विचार कुढ़ते हैं
शब्द के भाव को प्रखर स्वर दे ||2||

उड़ रहे हो उड़ो सितारों में
याद रखना यही ज़मी घर दे ||3||

अब रसोई अलग़ न क्यों कर हो
जब कि सरकार छः सिलिंडर दे ||4||

रात भर कारवाँ गुजरता है
इन चिराग़ों में रौशनी भर दे ||5||

शेर मेरे वही सुने ’सौरभ’
दर्द को बेपनाह आदर दे ||6||
************************************

वीनस केसरी 

मेरी हर बात पर वो हाँ कर दे
आइना मांग लूं तो पत्थर दे

न मुझे कारवाँ न लश्कर दे
मुझको बस हौसले का गौहर दे

अपनी ग़ज़लों में रख वही तेवर
चाहे जैसा तू इसको फ्लेवर दे

कब ये चाहा तू कर दे कोई कमाल
आइना है तो मेरा पैकर दे

मुझको मेरी जमीं से जोड़े रख
फिर तू चाहे तो आसमाँ कर दे

अब ग़ज़ल में नए मआनी खोज
अब ग़ज़ल को नया कलेवर दे

कोई बच्चों से ले के बस्ते काश
इनकी नज़रों में तितलियाँ भर दे

मेरी मुश्किल को यूँ न कर आसान
कौन कहता है सारे उत्तर दे

अपने होने का भ्रम बनाए रख
मशविरा दे तो कुछ मुअस्सर* दे

दोस्त महबूब की खुशामद छोड़
अब तो ग़ज़लों को सख्त तेवर दे

हो न जाएँ सियाह** चश्म-ब-राह***
इन चरागों में रोशनी भर दे

* मुअस्सर = असरदार
** सियाह = अंधी,
*** चश्म-ब-राह = रास्ते पर आखें लगाए हुए, बेचैनी से प्रतीक्षा करने वाला

दूसरी ग़ज़ल

लड़ रही बिल्लियों को बन्दर दे
मस्अला इस तरह वो हल कर दे

दिल कि खिडकी से अब हटा परदे
रोशनी को भी एक अवसर दे

तंज़ लगने लगी हैं कुछ बातें
मुझको वो इतना भी न आदर दे

मुझको मुझसे ही मांग कर बोला
देने वाले तू आज हद कर दे

तीरगी की ही अब गुज़ारिश है
''इन चरागों में रोशनी भर दे''

वस्ल का चर्चा काश और छिड़े
काश गफ़लत में ही वो हाँ कर दे

आनलाइन जहीन नस्लों को
आफलाइन भी कोई फ्यूचर दे

या तो चुप रह जा सारे प्रश्नों पर
बोलता है तो सारे उत्तर दे

शाइरी की हसीन वादी को
कोई दिलकश ग़ज़ल अता कर दे

मशविरा माँगने की गलती की
सुबहो शाम अब वो मुझको आर्डर दे

छोड़ सारी फिजूल की बातें
तू बस अब कोई फैसला कर दे
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IMRAN KHAN 

इन नशेबों को' आब से भर दे,
अब तो' अल्लाह मौसमे तर दे।

खुश्क सहरा में' जल न जायें हम,
अब तो' रहमत की बारिशें कर दे।

घर में' कितना घना अँधेरा है,
इन चराग़ों में' रोशनी भर दे।

मुझको' तूफाँ से डर नहीं लगता,
मुझको' साहिल नहीं समन्दर दे।

कोई' भी अब दगा न दे मुझको,
अब के' साथी मुझे मुअतबर दे।

साथ रह के तो' सच नहीं कहता,
जा रहा है उठा भी' जा परदे।

मुझसे' मिलने वो आये इक बारी,
ऐ खुदा कोई' ऐसा' मन्ज़र दे।

तुझको' आये अगर सुकूँ यूँ कर,
सारे' इल्ज़ाम मेरे' सर धर दे।

महफिलों में वजूद जलता है,
चैन वीरान बस मेरा घर दे।

उसने' अपने महल बनाये हैं,
पीठ में मेरी' एक खन्जर दे।

अब तो' मेरी सज़ा हुई पूरी,
अब मुझे क़ैद से रिहा कर दे।
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arun kumar nigam 

मुझको हे वीणावादिनी वर दे
कल्पनाओं को तू नए पर दे |

अपनी गज़लों में आरती गाऊँ
कंठ को मेरे तू मधुर स्वर दे |

झीनी झीनी चदरिया ओढ़ सकूँ
मेरी झोली में ढाई आखर दे |

विष का प्याला पीऊँ तो नाच उठूँ
मेरे पाँवों को ऐसी झाँझर दे |

सुनके अंतस् को मेरे ठेस लगे
मेरी रत्ना को ऐसे तेवर दे |

साँस 'सौरभ' समाए शामोसहर
मुक्त विचरण करूँ वो 'अम्बर' दे |

सूर बन कर चढ़ाऊँ नैन तुझे
इन चिरागों में रोशनी भर दे ||
*****************************************

Arvind Kumar 

या मिरे ग़म सभी सिवा कर दे,
ख़ुश्क आँखों को या समंदर दे।

वो है जिस राह पर चला अबतक,
मेरी सब मंजिलें उधर कर दे।

जो तुझे आज तक नहीं समझा,
कैसे सजदे में वो जबीं धर दे।

दर्द, आंसू सभी मैं सह लूँगा,
कुछ मुझे अब मेरे सितमगर दे।

नर्म मिट्टी में अब नहीं टिकते,
इन जड़ों को कोई तो पत्थर दे।

तू मेरी दीद ही बुझा दे अब,
या मुझे इक सहर सा मंज़र दे।

मेरे सब नज़्म अब भटकते हैं,
इस कलम को भी कोई रहबर दे।

जिंदगी इक सियाह शब क्यूँ है,
इन चिरागों में रौशनी भर दे।

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rajesh kumari 

इन निगाहों को कोई मंजर दे
मछलियों को नया समंदर दे

शुष्क धरती की प्यास बुझ जाए
आज ऐसा सुकून अम्बर दे

बांटनी है अगर तुझे किस्मत
तू गरीबों में भी बराबर दे

अक्स अपना तलाश करना है
इन चिरागों में रौशनी भर दे

नींव भरनी यहाँ मुहब्बत की
प्यार का बेमिसाल पत्थर दे

गाँव उसने अभी बसाया है
तू न इतना बड़ा बवंडर दे

जो फराखी विराव रखता हो
इस जहाँ को नया पयम्बर दे

आज तक जो खता हुई मुझ से
माफ़ मेरी खता खुदा कर दे

दूसरी ग़ज़ल

ख़्वाब आँखों को कोई सुन्दर दे
पंछियों सी उड़ान अम्बर दे

डोर हाथों से छूट जायेगी
देश को तू नया सिकंदर दे

अंधियारे सवाल करते हैं
इन चिरागों में रौशनी भर दे

जिंदगी तब सुकून पायेगी
राह में वो पड़ाव अक्सर दे

मैं न अपना उसूल भूलूँगी
चाहे दुश्वारियां भयंकर दे

गर्दने हैं झुकी हुई उन की
माफ़ कर दे तु या कलम कर दे

डूबने को लिहाज़ ही काफी
आसुओं का न तू समंदर दे

तिमिर मन का मिटा न पायेगा
चाहे घर में उजास दिनकर दे
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 संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' 

इस नज़र को हसीन मंज़र दे;
मैं हूँ दर्या मुझे समंदर दे; (१)

ग़मज़दा शख़्स मुस्कुरा दे फिर,
कोई ऐसा कमाल तू कर दे; (२)

फुंकनी-चिमटा नसीब है जिसका,
कभी उस हाथ को भी ज़ेवर दे; (३)

स्याह रातें टटोलती आँखें,
इन चराग़ों में रौशनी भर दे; (४)

वो है भूखा बस एक रोटी का,
कौन कहता है उसको गौहर दे; (५)

मैं नहीं मांगता कोई दौलत,
पाँव जितनी ही मुझको चादर दे; (६)

मुत्लक़ी ये अजीब है यारों,
आईना आईने को पत्थर दे; (७)

दर्या=नदी; गौहर=मोती; मुत्लक़ी=निरपेक्षता

दूसरी ग़ज़ल

आज़माइश हमें बराबर दे;
लड़ सकें ज़ीस्त से वो जौहर दे; (१)

ज़िंदगी है तो मुश्किलें भी हैं,
हौसलों को नया कलेवर दे; (२)

हैं मुलाज़िम मगर नहीं जारी,
मह्कमः है तो एक अफ़्सर दे ; (३)

रतजगा छूट जाए महलों का,
मख़्मली घास का वो बिस्तर दे; (४)

चिमनियों के धुंए से बाहर आ,
सांस को अब गुलाब-ज़ाफ़र दे; (५)

भूल जाऊं जुदाई बरसों की,
प्यार इतना मुझे बिरादर दे; (६)

टूट जाए भरम अंधेरों का,
इन चराग़ों में रौशनी भर दे; (७)

दूरियां भी ज़रुरी होती हैं,
इस रिफ़ाक़त में कुछ अना कर दे; (८)

उठ खड़ा हो हुक़ूक़ की ख़ातिर,
आम इंसान को ये तेवर दे; (९)
**********************************

SURINDER RATTI 

जो देना है मुझे सजा कर दे I
अपने हाथों से पास सब धर दे I 1 I

वो जफ़ा ही करे वफ़ा करके I
प्यार तौले बखील कमतर दे I 2 I

बारहा टूटता है दिल क्यूँ कर I
रोज़ कोई न कोई ठोकर दे I 3 I

हूँ गुनहगार मैं के तुम जानाँ I
प्यार के बदले हाय खंजर दे I 4 I

आँख में धूल झोंकना आसां I
सिलसिलेवार दुख सितमगर दे I 5 I

ख़ुदकुशी न कर ले तेरे ग़म में I
आ अभी मिल गले ख़ुशी भर दे I 6 I

सदियों से थी तीरगी छायी I
इन चिरागों में रोशनी भर दे I 7 I

महफिलें सज गयी ग़ज़ल की फिर I
दाद पे दाद सब सुखनवर दे I 8 I

मुनफरिद राह प्यार की "रत्ती" I
जंग-ए-इश्क़ दर्द न भर दे I 9 I

*************************************************

SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" 

अब तो पूरी ये आरजू कर दे
मैँरे दामन मे तू खुशी भर दे

दर्द देकर तू अपनी चाहत का
मुझको उल्फत से आशना कर दे

कब से हैं मुंतज़िर मेरी आखें
इन चिरागोँ मेँ रोशनी भर दे

चँद कतरोँ से अब मैँरी हरगिज
प्यास बुझती नहीँ समँदर दे

या खुदा अब तो उनके कूचे मेँ
खत्म हसरत की जिन्दगी कर दे

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satish mapatpuri 

मेरी चाहत में ये असर कर दे .
उनकी सूरत मेरी नज़र कर दे .

काश ! कोई फ़रिश्ता आ जाये .
जो अमावास को भी सहर कर दे .

मेरी किस्मत में किनारा जो नहीं
मेरे हिस्से में फिर भँवर कर दे .

मुट्ठी भर ही उजाला हो तो सही .
इन चिरागों में रोशनी भर दे .

साँप ही बैठे जब सिंहासन पे .
ऐसे में मुझमें भी ज़हर भर दे .

*************************************************

UMASHANKER MISHRA 

धूप को खुशनुमा सा मंजर दे
जून के भाग्‍य में नवंबर दे।

जो कसाबों को जन्‍म देती हो
कोख़ धरती पे ऐसी बंजर दे।

खेलता है वो खेल बारूदी
वो बदल जाये ऐसा मंतर दे।

देश को खा रहे हैं दीमक ये
ये मिटें जड़ से ऐसा कुछ कर दे।

भीड़ है हर तरफ़ जम्‍हूरों की
कोइ इन्‍सान इनके अंदर दे।

अब मदारी को चाहिये हिस्‍सा
बिल्लियों से चुरा के बंदर दे।

इस घने अंधकार को जानें
इन चिरागों को रोशनी भर दे

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लतीफ़ ख़ान 

दूर दुनिया से तीरगी कर दे .
"इन चिराग़ों में रौशनी भर दे" ..

ज़ुल्मते-शब को नूर से भर दे .
अपनी रहमत से ऐसा कुछ कर दे ..

उनको हुस्नो-शबाब दे जी भर .
जान लेवा मगर न तेवर दे ..

हौसले जिनके हों फ़लक पैमाँ .
उन उड़ानों को बाल ओ पर दे ..

नस्ले - नौ भी जिये सलीक़े से .
नेक तौफ़ीक़ बन्दा - परवर दे ..

गढ़ते हैं जो महल अमीरों के .
सर छुपाने उन्हें भी छप्पर दे ..

दिलदिया है तो उसमें तू मौला .
ग़म उठाने का हौसला भर दे ..

जिन को ता उम्र देखना चाहूँ .
मेरी नज़रों को ऐसे मंज़र दे ..

कोयले की करे दलाली जो .
उनके चुल्लू तू पानी से भर दे ..

सर झुकाऊं जहाँ , झुके दिल भी .
बन्दगी को मेरी वही दर दे ..

छीनते हैं हक़ जो ग़रीबों का .
ऐ ख़ुदा उनको तू दर बदर कर दे ..

कांच के घर हों ' लतीफ़ ' जिनके .
उन के हाथों में तू न पत्थर दे ..

*************************************************

ASHISH ANCHINHAR 

फूल तितली हवा समंदर दे
फिर परीक्षा मे खूब नम्बर दे

गंध गायब हें देह से मेरे
अब कहो की उसे डियो भर दे

राजनीतिज्ञ तो गया हँस कर
जल गया सब कोई मिरा घर दे

क्यों रहेगा बुझा, खुदा घर के
इन चिरागों में रोशनी भर दे

दुश्मनी तो नहीं लगा हमको
यार एक्टिंग तो सही कर दे

*************************************************

Safat Khairabadi 

दिल में खुशियों का इक नया घर दे
ऐ खुदा दूर मेरे ग़म कर दे

नफरतों को निकाल कर या रब
प्यार सबके दिलों में तू भर दे

बुझ रहे हैं दिये मोह्हबत के
इन चरागों में रौशनी भर दे

कोई दुनिया में अब न हो मायूस
जिंदगी दे खुदा तो बेहतर दे

तीर कितने लगे मेरे दिल पर
ज़ख्म मुझको न अब सितमगर दे

चाहतों का न सिलसिला टूटे
कुछ तस्सल्ली तो मुझको दिलबर दे

ख़्वाब मेरे सभी महक उठ्ठे
एक ऐसा मुझे गुलेतर दे

मेरे होठों पे तशनगी न रहे
साकिया मुझको ऐसा सागर दे

टाल देगा तेरी मुसीबत को
कुछ तो खैरात माल की कर दे

मेरे अल्लाह तू शफाअत को
कामियाबी बरोजे महशर दे

*************************************************

HAFIZ MASOOD MAHMUDABADI 

मेरे गुलशन को मोतबर कर दे
गुन्चाओ गुल को नूर से भर दे

रौशनी की अगर तलब है तो फिर
ज़ुल्मतों के चराग गुल कर दे

मंजिलें खुद ब खुद क़दम चूमे
हौसलों को तू ऐसा जौहर दे

मेरे बच्चों को इल्म दे या रब
कोई शमशीर दे न खंजर दे

राहगीरों के काम आ जाये
इन चरागों में रौशनी भर दे

भूल जाऊं हर एक ग़म अपना
मेरी आँखों को ऐसा मंज़र दे

तशनगी मेरी मिट न जाये कहीं
यूं मुसलसल मुझे न सागर दे

अहले हक मौत से नही डरते
दावते जंग क्यूँ सितमगर दे

वा हकीक़त मेरी भी हो मसऊद
आइना ऐसा आइना गर दे

*************************************************

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Replies to This Discussion

एडमिन महोदय ओनलाइन हैं और इसी कार्य मे संलग्न हैं|...मैं पहले ही सरेंडर कर चुका हूँ |..... :-)

तरही मुशयारें में एक से बढ़कर एक ग़ज़लें !! सभी मुकम्मल बयान हैं एक मंजे हुए शायर की । ओ बी ओ के मंच के प्रति हार्दिक आभार जो इतनी सशक्त ग़ज़लें पढने और सीखने का अवसर मिलता है । सभी शायरों को और संचालक महोदय के प्रति शुभकामनायें !!

वाह 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
13 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
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Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
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'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

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