सुधीजनो,
दिनांक - 08 जनवरी’ 13 को सम्पन्न महा-उत्सव के अंक -27 की समस्त रचनाएँ संकलित कर ली गयी हैं और यथानुरूप प्रस्तुत किया जा रहा है.
यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिरभी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.
सादर
सौरभ
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विधा :- मतगयंद सवैया,
विधान :- भगण x 7 + गुरु गुरु
बीत गया इक साल पुरान प जात हि घाव दिया इक भारी ।
काल क गाल गई मनुजा अरु मानवता मनुजात सँ हारी ।
मानव माँहि पिशाच बसा नहि चिन्हत रे बिटिया-महतारी
लो प्रण, प्राण रहे जब ले, फिर पीड़ित होय सके नहि नारी ।।
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कुंडलिया छंद
दिल्ली के दरबार में,चले न जन का जोर,
बैठाए खुद आपने, ,मन के काले चोर/
मन के काले चोर, कर रहे भाषणबाजी,
लगता है यह शोर,नहीं अब जनता राजी,
जन जन में आक्रोश,उड़ाते जब ये खिल्ली,
धर लो मन संकल्प,न जाएँ अबके दिल्ली//
दिल्ली हांड़ी काठ की, ताप बढे जर जाय,
शीत लहर है देश में, दिल्ली तो झुलसाय/
दिल्ली तो झुलसाय, सुरक्षित रही न नारी,
दिल वाला हि बताय,फ़ैल रहि क्या बीमारी,
ले लो इस वर्ष प्रण,झौंक दो पूरी सिल्ली,
होवे नहि दुष्कर्म, बार दो चाहे दिल्ली//
दूसरी प्रस्तुति
दुर्मिल सविया (सगण x 8)
नव वर्ष निरंतर आवत है प्रण लोग अनेक उठावत हैं.
दिन माह ढले तब भूल परे सब बातहि यों बिसरावत है/
जस रात गई अरु बात गई समही प्रण आवत जावत है,
सब भूल रहे सियराम जहाँ क्षणही प्रण प्राण लुटावत हैं//
इस बार धरो प्रण लाज रखो तुम नार व देश क मान मिले.
सब साथ चलें अरु साथ कहें जय भारत की यह ज्ञान मिले/
अब नार व नीर सभी खुश हों जब भूख लगे तब धान मिले,
खुद लोग ढलें दुनिया बदलें इस वर्ष नवीन विधान मिले//
तृतीय प्रस्तुति
ललित छंद
छन्न पकैया छन्न पकैया,दिखे न ऐसा नेता,
लोभ संवरण कर ना पाये,घर अपना भर लेता/
छन्न पकैया छन्न पकैया,रहे न अब मजबूरी,
ना देना अब मत लोभी को,रखना थोड़ी दूरी/
छन्न पकैया छन्न पकैया,अबला हुई बिचारी,
गली गली चौराहे पे जो,छली जा रही नारी/
छन्न पकैया छन्न पकैया,साथी हाथ बढाओ,
रहे सुरक्षित हर नर नारी,ऐसी अलख जगाओ/
छन्न पकैया छन्न पकैया, मानवता दिखलाओ,
मन में प्रण नैतिकता धारो,सभ्य समाज बनाओ/
छन्न पकैया छन्न पकैया,नवीन वर्ष मनाओ,
आगाज करो तरुणाई का, भारतवर्ष बचाओ/
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प्रथम रचना :-
संकल्प है अंधेर की नगरी मिटानी है,
संकल्प है अपमान की गर्दन उड़ानी है,
दुश्मन हो बेशक मेरी लेखनी समाज की,
संकल्प है इन्सान की सीमा बतानी है,
अंग्रेज जिस तरह से हिंदी को खा रहे,
संकल्प है अंग्रेजों को हिंदी सिखानी है,
बहरे हुए हैं जो-जो अंधों के राज में,
संकल्प है आवाज की ताकत दिखानी है,
रीति -रिवाज भूले फैशन के दौर में,
संकल्प है आदर की चादर बिछानी है,
भटकी है युवा पीढ़ी दौलत की चाह में,
संकल्प है शिक्षा की सही लौ जलानी है....
इंसान की फितरत खुदा हर हाल बदलो,
थोड़ी समय की गति जरा सी चाल बदलो,
खोटी नज़र के लोग अब बढ़ने लगे हैं,
आदत निगाहों की गलत इस साल बदलो,
जीना नहीं आसान इस दौरे जहाँ में,
अपमान ये घृणा बुरा हर ख्याल बदलो,
नारी नहीं सुरक्षित दरिंदों की नज़र से,
कमजोरियां ये नारिओं की ढाल बदलो,
लाखों शिकारी भीड़ में हर ओर फैले,
सरकार है बेकार शासनकाल बदलो,
नारद उठाओ प्रभु को किस्सा सुनाओ,
कलियुग मेरे भगवान अब तत्काल बदलो.
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विधा - घनाक्षरी
(१)
बीत चुका होना-जाना, छोड़े हम घबराना
मन से जो ठान लिया, चले चलो भइया,
मन में न गिले रहें, लोग-बाग खिले रहें
जन-जीव मिले रहें, सधे बहो भइया
कर्म और संस्कार से, या सोच से, विचार से
रिश्तों से, व्यवहार से, बँधे रहो भइया
प्रण लो, उत्साह रहे, देश में उछाह रहे
जग वाह-वाह कहे, बढ़े चलो भइया
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(२)
साल गया बीत भाई, नई अब घड़ी आई
जोश औ उमंग लाई, पूर्ण प्रकल्प करें
भेद-भाव त्याग चलें, जगती के राग खिलें
आदमी की हीनता को, आज से अल्प करें
रात-कुहा गयी लगे, आस औ’ विश्वास जगे
सोया हुआ प्रात पगे, तंद्रा को गल्प करें
देश का विकास दिखे, जन फल-यास चखे
दुखिया न दीन कोई, हम संकल्प करें
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प्रथम प्रस्तुति
यही याचना माँ शारदे
अबके साल ठीस में गुजरा, मानवता ही हारी है,
लाख जतन करके ना सुधरा, मन ने हिम्मत हारी है ।
बीत गया सो बीत गया अब, नए सिरेसे सोचे हम,
असुरी प्रवर्ती त्यागे हम अब, मानव बनना चाहे हम ।
संकल्प तो हम लेते खूब है, जतन कर पूर्ण करना है,
रघुकुल के इस देश में हमें, प्राणों से वचन निभाना है ।
इच्छा शक्ति अभाव रहा तो,संकल्प का न रहे मान,
विकृत संस्कृति के प्रभाव से,माँ भारती का अपमान।
ले कर संकल्प नव वर्ष में, मन मे लिए हो भान,
द्रड़ इच्छा शक्ति रख मन में, तभी जीवन में शान ।
संकल्प करे हम सब मन में, शिष्टाचार आचरण हो
संस्कारित दीप जले मन में, फिर वर्ष भर संज्ञान हो ।
नव वर्ष फिर आगया देखो, लाया नई उमंग है,
उत्साह छाया है चहुओर,ख़ुशी का यह आगाज है।
द्रड संकल्पित हो स्व मन में,श्रम का भी तो रखो ध्यान,
द्रष्टि अपनी ऊँची रखे हम, सदा रहे लक्ष्य का भी भान ।
देश और समाज विकास में,हम सभी भागिदार बने,
ऐसी सद बुद्धि वरदान दे, यह याचना माँ शारदे ।
दूसरी प्रस्तुति
दोहे
खुद को कभी पुकार ले, भरे नया उत्साह,
मन में फिर संकल्प ले,कठिन नहीं यह राह ।
मन के असली भार से, तन का कम है मान
संतुलित ही भार रहे, जीवन तुला समान ।
नयनों बीच हिरदय पर,रखो अपना ध्यान,
गहरे जाकर ध्यान से, करे शांति का भान ।
मन में विरोध त्याग दे, चित्त शांत हो जाय,
शांत चित्त प्रसन्न करे, सफ़र सुलभ हो जाय ।
झूठ बोलना छोड़ दे,हिरदय कुचला जाय,
झूठ जुबाँ पर रोक ले,मन हल्का होजाय ।
हिरदय झूठ उठने लगे,मन को तुरत जगाय,
मन को तुरत जगाय ले,झूठ विदा हो जाय ।
थोड़ी गहरी साँस ले,रख ह्रदय पर कान,
गहराई अनुभव करे,मस्ती का हो भान।
न धीरज न कृतग्य रहे,लालच बढ़ता जाय,
लालच की सीमा नहीं,मन चिंतित हो जाय ।
ख़ुशी जीवन सूत्र समझ, नव अंतस हो जाय,
अन्दर से मन बदलकर, नई सुबह ले आय ।
संकल्प करके मन में, श्रम का रखे ध्यान,
द्रष्टि अपनी ऊँची रखे, रहे लक्ष्य का भान ।
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कुण्डलिया छंद
जीवन पथ पर दौड़ता, भटका मनस तुरंग
साध इसे अब लीजिये, बजता काल मृदंग //
बजता काल मृदंग, आज विष तन्द्रा तोड़े
दृढ़ संकल्पित यत्न, विषय अंधड़ भी मोड़े //
निश्चित कर सदमार्ग, थाम लगाम को प्रण कर
सरपट दौड़े मनस अश्व फिर जीवन पथ पर//
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विधा :- कुंडली उर्फ कुण्डलिया छन्द
(१)
मन वाणीं जब शुध्द हों, तब हों कर्म विशुद्ध।
पशुता के अवगुण हमें, कभी करें ना मुग्ध।।
कभी करें ना मुग्ध, आचरण हो अनुशासित।
दया प्रेम के संग, करें जन मन को हर्षित।।
करता सत्य हज़ार, यही संकल्प मनोमन।
आया नूतन वर्ष, शुध्द हों अब वाणीं मन।।
(२)
घटना पिछली सोचकर, बदलें कुछ परिवेश।
आने वाले दिनों में, कैसा हो निज देश ।।
कैसा हो निज देश, खाप ना आँख दिखाये।
शापित हो ना कोख, भ्रूणहत्या रुक जायें।।
सत्य यही संकल्प, देश की बदलो विधना।
मृत्यु दंड हो सजा, घटे ना दूजी घटना।
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(1)
अधिकार मिले अति भाग खिले, नहिं दम्भ दिखे प्रण आज करो
करना नहिं शासन ताकत से , दिल पे दिल से बस राज करो
कब कौन कहाँ बिछड़े बिसरे , लघु कौन यहाँ ,गुरु कौन यहाँ
उसकी फुँकनी सुर साज रही , वरना हर साज त मौन यहाँ ||
(2)
प्रण आज करो सब एक रहें , नहिं भेद रहे तुझमें मुझमें
उसके शुभ अंश बँटे सब में , जल में थल में इसमें उसमें
दिन चार मिले कट तीन गये , बस एक बचा बरबाद न हो
किस काम क जीवन हाय सखे, यदि जीवन में मधु स्वाद न हो ||
कर लो प्रण
हो न चीरहरण
हो चाहे रण
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मरते-मरते देश से कुछ कह गई।
वो न जीने में न मरने में रही,
आत्मा उसकी यहीं पर रह गई।
आज समझने हम लगे हैं हद हुई,
लडकियाँ पहले भी कितनी दह गई।।
खुद बदलने का कीजिये संकल्प
अब तो उठने का कीजिये संकल्प
दूसरों के सहारे मत चलिये,
आप चलने का कीजिये संकल्प।
ज़ुल्म की चोटियों पे चढते हो,
अब उतरने का कीजिये संकल्प।।
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कभी वक़्त की
कभी परिस्थितियों की
कभी बहानो की
तो कभी मजबूरियों की
होश तो तब आया जब
नए संकल्पों ने
अंतिम मुट्ठी की
मिटटी गिराई
गए वर्ष के संकल्पों के तन पर
31 दिसंबर की रात
दफना दिया उन्हें
हंसते हुए
जश्न मनाते हुए
घर ले आये नए संकल्प
जिन्हें दफनाने की प्रक्रिया
कल से फिर शुरू होनी है
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इन नए संकल्पों के तन पर
सिर्फ एक अंग
संकल्पों को पूरा करने के संकल्प का
उगाया जा सकता है क्या ?
तो चलिए एक संकल्प इस
अंग को उगाने का भी ले
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SANDEEP KUMAR PATEL
कल क्या लिया था संकल्प ???
के नहीं झुकेंगे
न झुकने देंगे
तिरंगा
नहीं रुकेंगे
अविरल बहेंगे
जैसे गंगा
नहीं मानेंगे हार
कितने भी हों
प्रहार
करेंगे कुशाशन का
प्रतिकार
ला देंगे हाहाकार
नहीं सहेंगे अत्याचार
मान मिलेगा सबको
नर हो या नार
जात पात की न हो मार
आपस में हो तो
बस प्यार
छीनेंगे अपने अधिकार
देंगे खुद को ये उपहार
और आज
फिर वही संकल्प
कोई और नहीं है विकल्प ???
अब आज़ादी चाहिए
संकल्प नहीं
हाँ आज़ादी चाहिए
इस
बीमार मानसिकता से
इन भ्रष्टाचारियों से
इन झूठे वादों से
कुछ कुरीतियों से
कुछ नीतियों से
और आज़ादी
संकल्प लेने भर से नहीं
लड़ने से मिलती है
और लड़ने के लिए
संकल्प नहीं
दिलेरी चाहिए
संकल्प लिया है तो लड़
क्यूँ मुंह ताकता है
कोई आएगा साथ
मिलाएगा हाथ
फिर हम होंगे एक से दो
दो से तीन
और कारवां बढेगा
तुम बंदरों के शहर में
मदारी ढूंढ रहे हो
वो तो दिल्ली में मिलेगा
यहाँ जीना चाहते हो न
तो संकल्पों से ऊपर उठो
अपनी रोटी आप वरो
किस्मत और संकल्प
पूरे होते नहीं किये जाते हैं
स्वयं
एकाकी
क्षमता है तो संकल्प लो
वरना
तुम्हे याद है
कल क्या लिया था संकल्प ???
दूसरी प्रस्तुति
कुछ क्षणिकाएं
"संकल्प"
संवेदनाओं की कोख से
असमय जन्म लिए
"वीर"
पानी की तेज फुहारों
और अश्रु गैस के गोलों के
सामने घुटने टेक देते हैं
"संकल्प"
किसी भी धर्म-युद्ध में
शिखंडी सी ढाल के आगे
"भीष्म" भी
धरासाई हो जाते हैं
"संकल्प"
रात के अंधेरों में
दर्द से चीखते
बिलबिलाते
कराहते
नग्न लेटी
संस्कृति
को
जब नोचते खंसोटते है
कुछ
नकाबपोश भेडिये
तब समाज
शर्म की चादर ओढ़
हाथों में "मशालें"
लिए निकलता है
"संकल्प"
पहाड़ों को चीर के
नदिया की "धार"
अपना रास्ता
बना ही लेती है
"संकल्प"
कितना भी कोहरा हो
कितनी भी धुंध हो
सूरज की एक "किरण"
पड़ते ही
बाग़ में
फूल खिल ही जाते हैं
"संकल्प"
इक चिंगारी ही काफी है
आग लगाने के लिए
लेकिन जब हर ओर
पानी ही पानी हो
तो "चिंगारी" दम तोड़ देती है
"संकल्प"
अँधेरे को मात देने
एक "दीपक" ही बहुत है
गर हवाएं साथ दें तो
पर हवाएं अक्सर
दीपक के साथ नहीं
अंधेरों के साथ होती हैं
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नए वर्ष के आते ही , लेते हम संकल्प .
कर देंगे हर चीज़ का , जड से काया-कल्प!
जड से काया-कल्प! , मगर जो देखे पीछे ,
असफलता के लिये , नजर होती है नीचे
कहता है अविनाश , संदेशे मिले हर्ष के ,
सही करें संकल्प , अगर हम नए वर्ष के .
यूँ तो बस हर आदमी, करता है संकल्प .
किन्तु पूर्णता पाने को,श्रम करता है अल्प!
पूरा हम प्रण को करे,यदि लगाकर प्राण।
बरसों देते लोग हैं , इसके खूब प्रमाण।।
पीछे अपने छोड़ कर,संकल्पों की भीड़ .
कभी नए संकल्प के,नहीं बनाना नीड़
जितनी क्षमता आपकी,उतने ले संकल्प .
फिर करनी की धार से,कर दें काया-कल्प .
कह गए लोग सुजान ये,बातें कितनी खास .
पूरे ना संकल्प हो ,बिना आत्म-विश्वास।
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shubhra sharma
आधी आवादी को बचाने का आज संकल्प करो
फूल की खुशबू भी जब कांटे बन डसने लगे
सज संवर निकला न करो ,लोग क्यों कहने लगे
झांक सकते जब नहीं खुद के अंतर्मन में
सभी दोष आज लड़की पर क्यों लगने लगे
दहेज़ हत्या ,यौन उत्पीडन का कोई हल करो
बलात्कारी ,वहशी को फांसी का प्रबंध करो
साथ पढ़ा लिखा पाल पोस कर बड़ा किया
एक को स्वतंत्र उन्मुक्त छोड़ बड़ा किया
बांध दिया क्यों हर बंधन में आज मुझे
झूठी मर्यादा के बोझ लाद घर में सडा दिया
सावित्री अनसुइया बचाने का संकल्प करो
माँ बहन बेटी बनाने का संकल्प करो
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संकल्पों का हाल तो, हमने देख लिया है .
कसमें - वादों का , फलाफल देख लिया है .
अब संकल्प का नया कोई, विकल्प बनाना होगा .
भूल गए मर्यादा जो, उन्हें हद में लाना होगा .
नारी की अस्मत लूट जाती, कली चमन में ही मिट जाती .
अपनों के ही बीच बहन और, बेटी की किस्मत फूट जाती .
उन वहशी - लंपट को अब तो, सबक सिखाना होगा .
भूल गए मर्यादा जो, उन्हें हद में लाना होगा .
यह भारत है जिसका जग ने, सदियों से अनुकरण किया .
इसी देश के बल पे जग ने, खड़ा एक आचरण किया .
भूल गये हैं जो उनको, इतिहास रटाना होगा .
भूल गए मर्यादा जो, उन्हें हद में लाना होगा .
लक्ष्मण - रेखा फिर से खींचो, रावण ना घुसने पाये .
कितना भी हो पतित भले वह, सीता तक न पहुँच पाये .
हर भेड़िये को खींच - खींच कर, पिंजड़े तक लाना होगा .
भूल गए मर्यादा जो, उन्हें हद में लाना होगा .
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क्यूँ मैं भटकता तामसी हो भ्रष्ट भावानल लिए।
अंतर कलंकित कर रहा हूँ पाप का काजल लिए।
मुझमें नहीं है अंश भी संतुष्टि का संतोष का।
अक्षय खजाना हूँ बना अज्ञानता का रोष का।
मन प्राण ऐसे दग्ध मानो तप रहा तंदूर में।
खुद आज मेरी कामनायेँ ढल गईं नासूर में।
हे ईश! मुझको सत्य समझाओ जलूँ मैं दीप सा।
संकल्प ले, सदभाव का मोती सम्हालूँ सीप सा।
या मनुजता की यह पताका गगन में फहरा सकूँ।
या आप ही मिटकर स्वयं को पुष्प सा बिखरा सकूँ।
हे नाथ! या फिर थाम मुझको चरण में स्थान दो।
अभिसिक्त कर निजनेह से सदमुक्ति दो, प्रस्थान दो।
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कुण्डलिया छंद
आएँ इस नव वर्ष में ,करें एक संकल्प
सच्चाई की राह का ,कोई नहीं विकल्प
कोई नहीं विकल्प , बात स्वार्थ की छोड़ें
दूजों के दुख देख ,कभी भी मुँह नहिं मोड़ें
रचें सुखी संसार ,सभी हिल मिल रह पाएँ
मिट जाएँ सब द्वेष ,प्रेम - पुष्प खिल जाएँ .
मन में हो संकल्प तो ,मंजिल होती पास
बिना आत्म विश्वास के ,भटके जिया उदास
भटके जिया उदास ,काम पूरे नहिं होते
प्रगति पराई देख ,सुअवसर अपने खोते
तपता जितना तेज़, स्वर्ण बन जाता कुंदन
पाना हो आसान,करे दृढ़ निश्चय जब मन
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'लें संकल्प सुरक्षा का'
कभी यौन दुष्कर्म न हो अब लें संकल्प सुरक्षा का.संकल्प - हाइकू
बेसहारा जो
उसकी मदद हो
यही संकल्प ।
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मुक्तक
लो किया संकल्प मैंने लेखनी ले हाथ में
अब नहीं झगड़ा करूँगा श्रीमती के साथ में
सो गयी तो मैं जगाऊंगा नहीं उसको कभी
रात पूरी काट लूँगा बैंच पर, फुटपाथ में
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Tags:
आदरणीय सौरभ जी,
सभी रचनाएँ एक स्थान पर संकलित करके आपने अत्यंत सराहनीय कार्य किया है ... इस श्रम साध्य कार्य के लिए हमारी ओर से बहुत बहुत बधाई स्वीकारें | सादर
सम्मानीय रचनाकार वर्ग,
यहाँ आईं सारी प्रस्तुतियाँ (रचनाएँ) सार्थकता से पूर्ण हैं। हार्दिक बधाई आप सबको। सादर।।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
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