For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

छंद त्रिभंगी की परिभाषा:

{चार चरण, मात्रा ३२, प्रत्येक में  १०,८,८,६ मात्राओं पर यति  तथा प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत,  प्रथम दो चरणों व अंतिम दो चरणों के चरणान्त परस्पर समतुकांत तथा जगण वर्जित, आठ चौकल,  प्रत्येक चरण के अंत में गुरु अर्थात (२)}

त्रिभंगी का सूत्र निम्नलिखित है

"बत्तिस कल संगी, बने त्रिभंगी, दश-अष्ट अष्ट षट गा-अन्ता"

रामचरितमानस में सर्वत्र अन्तिम ८ और ६ के बीच यति न देकर १०-८-१४ का क्रम दिया गया है |

(इसके चरणान्त में दो गुरु होने पर यह छंद अत्यंत मनोहारी होता है )

प्रभु छंद त्रिभंगी, जगण न संगी, चौकल अष्टा, मन भावै .

है यति दस मात्रा, आठहिं मात्रा, आठ तथा छः, पर आवै.  

तुक गुरु हो अंतहिं, बाँचैं संतहिं, भाव मधुर हिय, सरसावै.

यह मन अनुरागी, प्रेमहिं पागी, मगन भजन करि, हरषावै..

--अम्बरीष श्रीवास्तव

_________________________________________________________________________

त्रिभंगी छंद के उदाहरण निम्नलिखित हैं

री शान्ति जिनेशं, नुतशक्रेशं, वृषचक्रेशं चक्रेशं |

हनि अरिचक्रेशं, हे गुनधेशं, दयाऽमृतेशं, मक्रेशं |

मंदार सरोजं, कदली जोजं, पुंज भरोजं, मलयभरं |

भरि कंचनथारी, तुमढिग धारी, मदनविदारी, धीरधरं ||    

--रचनाकार : ज्ञात नहीं 

रस-सागर पाकर, कवि ने आकर, अंजलि भर रस-पान किया.
ज्यों-ज्यों रस पाया, मन भरमाया, तन हर्षाया, मस्त हिया..
कविता सविता सी, ले नवता सी, प्रगटी जैसे जला दिया.
सारस्वत पूजा, करे न दूजा, करे 'सलिल' ज्यों अमिय पिया..

--आचार्य संजीव सलिल

साजै मन सूरा, निरगुन नूरा, जोग जरूरा, भरपूरा ,
दीसे नहि दूरा, हरी हजूरा, परख्या पूरा, घट मूरा
जो मिले मजूरा, एष्ट सबूरा, दुःख हो दूरा, मोजीशा
आतम तत आशा, जोग जुलासा, श्वांस ऊसासा, सुखवासा ||

--शम्भुदान चारण

रामचरितमानस में सर्वत्र अन्तिम ८ और ६ के बीच यति न होने के कारण १०-८-१४ का क्रम |

रसराज-रसायन, तुलसी-गायन, श्री रामायण मंजु लसी.

शारद शुचि-सेवक, हंस बने बक-जन-कर-मन हुलसी हुलसी..
रघुवर-रस-सागर, भर लघु गागर, पाप-सनी मति गई धुल सी.
कुंजी रामायण के परायण,से गयी मुक्ति-राह खुल सी..

परसत पद पावन, शोक नसावन, प्रगट भई तपपुंज सही |
देखत रघुनायक जन सुखदायक सनमुख होइ कर जोरि रही ||
अति प्रेम अधीरा, पुलक शरीरा मुख नहिं आवइ बचन कही |
अतिशय बड़भागी चरनन लागी जुगल नयन जलधार बही ||
--गोस्वामी तुलसीदास

Views: 6370

Replies to This Discussion

अर्थात दोनों की विधान सही हैं, रचयिता पर निर्भर है कि वे किस तरह से लिखते हैं, सादर

आप समझ गये, आदरणीय राजेश जी,और अनुमोदित भी हो गये.  देखिये न, हम जैसे जो कुछ समझे हैं तदनुरूप तथाकथित रूप से अशिल्पकारी करते मान लिये गये हैं.

आप वैसे इस छंद विधान पर मेरी उपरोक्त विशद टिप्पणी को कारिका मानें, आदरणीय राजेश जी.  विधान में स्पष्टता आवश्यक है. वर्ना, गेय पंक्तियों और रचनाओं के एक रचनाकार होने के नाते कब कहाँ शिल्पगत त्रुटियों में बद्ध हो जायेंगे, पता न चलेगा. और रचनाकर्म संदेह की परिधि में माना जायेगा.

हमारे पाठकगण स्वयं समझदार है |

बिल्कुल आदरणीय राजेश जी, आपको जो भी उचित लगे आप वैसा ही करें ! सादर |

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
2 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"सूरज के बिम्ब को लेकर क्या ही सुलझी हुई गजल प्रस्तुत हुई है, आदरणीय मिथिलेश भाईजी. वाह वाह वाह…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
yesterday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service