मुक्त छंद कितने समसामयिक है. यह आज के काव्य जगत मे प्रमुख विषय है .. क्या मुक्त छंद कालजयी है.
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मेरा मानना है श्रीवास्तव जी
//मुक्त छंद कितने समसामयिक है.//
आज के तथाकथित ’कवियों’ और साग्रही कवियों द्वारा रचनाकर्म का बहुत बड़ा प्रतिशत मुक्तछंद में ही होता है. यह् असमसामयिक होने का बहुत बड़ा प्रमाण है.
//क्या मुक्त छंद कालजयी है.//
निराला की वह तोड़ती पत्थर.. या अज्ञेय की दुख मांजता है.. तमाम कालजयी रचनाओं में से ही हैं. यह सूची बहुत-बहुत लम्बी है.
लेकिन तथ्यपरक बात यह है कि रचनाओं का कथ्य प्रमुख है. लेकिन काव्य की अन्यान्य सक्षम विधाओं को प्रखर व सामयिक रखना कवियों का ही सबसे दायित्व है, सबसे बड़ा दायित्व. शास्त्रीय विधाएँ संप्रेषण का सार्थक साधन हैं.
भाई विंध्येश्वरी ’विनय’, मुक्तिबोध का सही नाम लिया है आपने. यों, यह फ़ेहरिश्त बहुत लम्बी है जहाँ रचनाकारों ने मुक्तछंद कविताओं में गहन वैचारिकता में पगे ऐसे-ऐसे सान्द्र तथ्य प्रस्तुत किये हैं कि मात्र उनकी नहीं आने वाली पीढ़ियाँ लाभान्वित होती रहेंगीं.
//लेकिन हम यह नहीं कह सकते की सनातनी छंद आज के परिवेश में आप्रासंगिक हो गये हैं या वे वर्तमान समाज का यथानुरूप चित्रण करने में समर्थ हैं।//
इस पंक्ति की आवश्यकता ही नहीं थी. झट विषयांतर हो जायेगा. चर्चाओं में बातें विन्दुवत रखना आवश्यक है. है न ?
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