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विद्यालय 
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विद्यालय को तू मंदिर मान 

बसता  ईश्वर अल्लाह जान 
संस्कार पुष्पित पल्लवित होते 
मिलता जीवन का सारा  ज्ञान
विद्यालय को तू मंदिर मान
साथ बैठ मिल सब जन पढ़ते 
सुनहरे भविष्य की मूरत गढ़ते
खेल खेल में लड़ते झगड़ते 
जाति भेद से हैं अनजान 
विद्यालय को तू मंदिर मान 
पढ़ें पाठ जाने अनुशासन 
करें देश पर बढ़िया शासन 
धर्म जाति का भेद न करते 
न्याय करते  एक समान
विद्यालय को तू मंदिर मान
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 
२४-१२-२०१२ 

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Replies to This Discussion

मैं हि तुझे कई बार पढ़ा हूँ. 

आदरणीय प्रदीप जी 

यह रचना बहुत उत्कृष्ट भाव सांझा करती है ...जिसके लिए आपको हृदय से बधाई 

परन्तु बच्चों के लिए इसमें सिर्फ निर्देश हैं...इसे बालमन के स्तर पर उतर कर बच्चों की समझ के अनुरूप, उनके शब्द-ज्ञान के अनुरूप लिखना होगा..तभी यह एक सफल बाल रचना कहलायेगी 

सादर.

आप एक बच्चा बन के इन्हीं भावों को महसूस कीजिये फिर लिख कर देखिये...

उदाहरणतः...

विद्यालय मंदिर के जैसा, रोज वहाँ मैं जाता हूँ 

सुबह पहुँच सबसे पहले टीचर को शीष नवाता हूँ ...

कथ्य यही रखना है... बस प्रस्तुति में थोड़ी सी फेर बदल करने का प्रयास कीजिये और मात्रा पर भी साधिए 

सादर. 

आदरणीय, प्रदीप कुमार सिंह जी,  ’विद्यालय को तू मंदिर मान, बसता  ईश्वर अल्लाह जान ’ सार्थक सुन्दर रचना।  बधाई स्वीकारें।  सादर,

स्नेही केवल प्रसाद जी 

प्रोत्साहन हेतु आभार 

सादर 

आदरणीया प्राची जी 

सादर 

आपके मार्गदर्शन में ..स्कूल .. पोस्ट की है. ३० मात्रा  में बांधने का पहला प्रयास है. 

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