हनुमान जयन्ती पर सभी भाविकों और राष्ट्र भक्तों को बधाई और शुभकामनाएं. अनुशासित और मर्यादित आचरण के अप्रतिम प्रतीक हैं श्री हनुमानजी महाराज, और आज के युग में सर्वाधिक पूजित और संकटमोचक के रूप में प्रसिद्ध हैं. सेवा, समर्पण और सामर्थ्य का ऐसा समन्वय किसी और व्यक्तित्व अथवा चरित्र में दर्शित नहीं होता. निस्सन्देह पराभूति के इस काल खंड में आत्मिक संबल और जाग्रति के लिए इनका अवलंबन आवश्यक है.
आज के पुनीत पर्व पर प्रयास किया है, राम चरित मानस के सुंदरकांड को आधार बना कर एक भजन रूप प्रस्तुति, जिसका गायन एक प्रचलित भजन की धुन पर किया जा सकता है (.."मेरी छोटी सी है नाव, तेरे जादू भरे पाँव..." ;मुझे संगीत का ज्ञान नहीं है, अतः इससे अधिक स्पष्ट संकेत नहीं कर सकता).
सुन्दरकाण्ड की हनुमान गाथा
बने रामजी के दूत, माता अंजनी के पूत, श्रीकेसरी सपूत
सिया सुधी, लावें हनुमानजी। ओ हनुमानजी।।
सौ-योजन सागर-पार जाना, सीधे लंका, भीतर घुस जाना।
पहले सुरसा,को भी था मनाया, और सिंहिका, को भी तराया ।।
मुष्टि लंकिनी को मारा,
फिर किया-नगर पैसारा,
किया लंका का नज़ारा,
सिया-सुधी, लावें हनुमानजी। ओ हनुमानजी।।
रामशरण,विभीषण को प्रेरा, अशोकवन में, सियाजी को हेरा।
लंकपति की देखी ढिठाई, सियको त्रिजटा, ने धीर बंधाई।।
व्यथा सीताजी की जानी,
कथा राम की बखानी,
हुए मुद्रिका के दानी,
सीय आशिष, पाएं हनुमानजी। ओ हनुमानजी।।
बजरंगबली, फिर वाटिका उजाड़ें, असुरसेना और अक्ष को मारें।
इन्द्रजित को समर रस दीन्हां, प्रभु-काज-हित बन्धन लीन्हां।।
रावणसभा में नीति पुकारी,
पर उसने-तो पूंछ प्रजारी,
कपि लंक दहन कर डारी,
सीख मांगे, सीया से हनुमानजी। ओ हनुमानजी।।
प्रभु को चूड़ामणि का देना, सीय व्यथा संदेसा कहना।
प्रभुका कपि-को उर-से लगाना,
अविचल भक्ति, देके दुलराना।
रीछ वानर संग रघुराई,
सेना सागर तीर चलाई,
असुर-निकन्दन बेला आई,
सिया सुधि, ले आये हनुमानजी। ओ हनुमानजी।।
आया विभी षण शरणाई, सिंहलराज की पदवी पाई।
सिंधु-पीड़ा प्रभु ने मिटाई, जिसने सेतु की युक्ति बताई।
सुन्दर चरित ये भक्त का न्यारा,
गावत भवसागर हो पारा,
रघुवर भक्ति का साधन प्यारा,
सुधि लेना, हमारी हनुमानजी। ओ हनुमानजी।।
बने रामजी के दूत,माता अंजनी के पूत,श्रीकेसरी सपूत,
सुध-हमारी, भी लेना हनुमानजी। ओ हनुमानजी।।
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आ0 सुरेन्द्र वर्मा जी, बहुत खूब। जय जय हनुमान जी!.... बधाई स्वीकारे। सादर,
धन्यवाद, आप 'केवल' 'प्रसाद' ही नहीं हैं, कुछ क्लिष्ट अवधारणाएँ भी मन में रखते हैं. कोई टिप्पणी उन पर देना नहीं चाहता, मात्र इतना ही कि आध्यात्मिकता का कोई भी पक्ष व्यक्ति और विचारों को जटिल नहीं, सहज बनावे. मेरी बौद्धिक पृष्ठभूमि इतनी व्यापक नहीं अतः आपकी अवधारणा समझ ही नहीं पाया. लेकिन दाद अवाश्य दूंगा. बहुत अच्छा लिखते हैं. बधाई.
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