For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'ज़िन्दगी'... तू "ज़िन्दगी" क्यों है...???


बोझिल मन... आँखें... सांसें...
ऐसा तारतम्य...
ना देखा आज से पहले...
ऐसी सांठ-गाँठ...
क्यों नहीं कर पाती यें... खुशियों में...???
जितना खोलनें की कोशिश करती...
उतनी ही इसकी गांठें और गुथती जाती...
और उन गांठों में फंसती जाती...
ज़िन्दगी... ... ...
धीरे-धीरे घुटती... गिरती... संभलती...
पर उफ़ ना करती...
शायद अब इस घुटन से...
इस उतार-चढ़ाव से...
बाँध ली थी उसने भी गांठें अपनी...

मगर...
ये क्या... धीरे-धीरे... हर गाँठ खुलनें क्यों लगी...???
अब... जब आदत हो चुकी...
फिर ये ढीलापन... ये खुलापन...???
उफ्फ्फ... ... ...
ऐ ज़िन्दगी... क्यों... करती है तू ऐसे...???
ये 'परिवर्तन' हमेशा तब ही क्यों...
जब हमें आदत हो चुकी होती है...
उसमें ढलनें की... ... ...

ज़िन्दगी... क्या हक है तुझे...
यूँ खेलने का... खुद की जिंदगी से...
क्यों नहीं हर तरफ... सुकूँ... शान्ति... मोहब्बत...???
क्यों है हर तरफ... मजबूरी... उदासी... लानत...???
माय-सा ख़ुमार तुझमें...
चढ़नें में बरसों लगाती...
और फिर पानी के चंद छींटों से...
सारा ख़ुमार उतार डालती...

तुझे जीना चाहती तो तू भागती...
जो रुक जाती...
तो साये-सी पीछे आती... ... ...
खुद पे, हक दिया तुझे...
क्या मैं 'अभागन'... नहीं... खुद की ही ज़िन्दगी के...
भरोसे... के 'काबिल'...???
मेरी होके भी तू 'पराई' क्यों है...???
'ज़िन्दगी'... तू "ज़िन्दगी" क्यों है...???

::::::::जूली मुलानी::::::::
::::::::Julie Mulani::::::::

Views: 411

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Julie on November 25, 2010 at 12:53am
बहुत-बहुत शुक्रिया 'आशीष जी'...!! :-)
Comment by आशीष यादव on November 25, 2010 at 12:05am
waah, zindzgi tu zindzgi kyo hai?
usi se uske wajud par sawaliya nishan.
khubsurat
Comment by Julie on November 24, 2010 at 11:54pm
"बागी जी"... बस सब आप जैसे बड़े लेखकों की ही सांगत में सीख रही हूँ... बहुत बहुत आभार आपका...!! :-)

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 24, 2010 at 7:24pm
जुली, आपको पढ़ना हमेशा ही सुखद लगता है, उसी कड़ी मे यह कविता भी बेहद खुबसूरत है | आपकी शैली कुछ अलग इ फ्लेवर लिये होती है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  ______ जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार। जेब सोच में पड़ी हुई है,कैसे पाऊँ…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"चार पदों का छंद अनोखा, और चरण हैं आठ  चौपाई औ’ दोहा की है, मिली जुली यह ठाठ  विषम…"
4 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
13 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद : रौनक  लौट बाजार आयी, जी   एस   टी  भरमार । वस्तुएं …"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम..."
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Oct 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Oct 12

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service