आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
पिछले 31 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने 31 विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है.
इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
विषय - "पाखण्ड"
आयोजन की अवधि- रविवार 09 जून 2013 से मंगलवार 11 जून 2013 तक
उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)
अति आवश्यक सूचना : ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 32 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में तीन । नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी ।
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 09 जून दिन रविवार लगते ही खोल दिया जायेगा )
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दोनों कुंडलियां सार्थक हुईं हैं, विषय से न्याय करती हुई अच्छी अभिव्यक्ति, एक पक्ति पर पुनः गौर करें, अर्थ उलझ सा रहा है ।
अफसर है सब भ्रष्ट, और हैं सब नेता जी ||
बधाई इस प्रस्तुति पर ।
आदरणीय बागी जी सादर नमस्कार, छंद विषयानुकूल लगे जानकर रचनाकर्म सार्थक हुआ. सादर आभार.
मैं नहीं समझ पा रहा ये पंक्ति क्यों उलझा रही है. इसमे मैंने रोले को पूर्ण करते हुए यही तो कहा है "सारे रिश्वतखोर अफसर भ्रष्ट और पाखंडी हैं." प्रथम पंक्ति में मैंने नेता को परिभाषित किया है और अंतिम पंक्ति में उसके बिम्ब का उपयोग किया है. फिरभी यदि कुछ त्रुटिपूर्ण लग रहा है तो मैं सुधार का प्रयास करूंगा.सादर.
अफसर है सब भ्रष्ट, और हैं सब नेता जी ||
आदरणीय , //अफसर है सब भ्रष्ट// यह तो स्पष्ट है कि अफसरों को भ्रष्ट बताया जा रहा है ।
//और हैं सब नेता जी // नेता जी क्या हैं ??? यहाँ मैं आपका ध्यान चाहता हूँ ।
जी..... आप अधूरे वाक्य की ओर इशारा कर रहे हैं.सादर, क्या हम इसे ऐसे पूरा नहीं मान सकते
//और है सब नेताजी// और सब नेताजी हैं.
यदि यह उचित नहीं है तो क्या मैं इसको // दिखे हैं ज्यों नेता जी // कहूँ तो यह उचित होगा.यदि हाँ तो
मेरी आदरणीय एडमिन से गुजारिश है प्रस्तुत कुण्डलिया में यह संशोधन कर दें.सादर.
सादर आभार आदरणीय जीतेन्द्र जी.
सादर.
आदरणीय अशोकजी, बहुत-बहुत विलम्ब से आपकी और आपकी रचना के बाद प्रस्तुत हुई रचनाओं पर आ रहा हूँ. इस हेतु सादर क्षमाप्रार्थी हूँ लेकिन दोष परिस्थितियों का भी है. पाँच दिनों से पैरों में चक्करघिन्नी लगी है. कोलकाता, गया, इलाहाबाद, पटना.. फिर आज गया और कल कोलकाता होते हुए परसों इलाहाबाद ताकि पन्द्रह को हलद्वानी में हो सकूँ !!
९ तारीख को इलाहाबाद में वीनसजी के साथ था, कल पटना में भाई गणेश बाग़ीजी के साथ अच्छी शाम गुजरी. लेकिन नेट रुलाता रहा. गणेश भाई ने अभी तक अपने फोटो ओबीओ पर अपलोड नहीं किये हैं.... :-((((
विश्वास है, आप मेरी पारिस्थिक विवशता को समझ कर मुझे क्षमा करेंगे.
आपकी कुण्डलिया परत-दर-परत पाखण्ड के रूप खोलती जाती है. इस संयत रचनाकर्म के लिए हार्दिक धन्यवाद और अतिशय बधाइयाँ.
आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, आपके क्षमा माँगने से हम शिष्यों का लज्जित होना स्वाभाविक है, हम सभी मंच से आपके लगाव को भलीभांति जानते हैं तब यह समझ पाना कोई कठिन कार्य नहीं की आपकी अनुपस्थिति अकारण नहीं है.हाँ आपकी प्रतीक्षा की बेसब्री अवश्य ही थी.आपसे प्रतिक्रया पाना सदा ही उत्साहवर्धक रहा है.आज भी आपकी प्रतिक्रया से उत्साहवर्धन हुआ है सादर आभार.
हाँ फोटो कुछ देर पहले ही मैं देख चुका हूँ आपका और बागी जी का साथ में बैठे हुए. कुछ छाया चित्र सबेरे वीनस जी के साथ के भी देखे हैं.सभी सुन्दर हैं.सादर.
कहीं कुछ त्रुटिपूर्ण लिख गया हो तो क्षमा करें सादर.
यानि बाग़ी जी ने फोटो अपलोड कर दिया ?
चलिये मैं और मेरी बातो का साक्ष समक्ष है .. :-)))))
जी.....
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