For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नवगीत//उत्तर यहीं अड़ा है//'कल्पना रामानी'

 

पावस का इस बार भूमि पर

प्यार बहुत उमड़ा है।

लेकिन क्या सुख संचय होगा?

संशय नाग

खड़ा है।

 

मक्कारी, गद्दारी, लालच,

शासन के कलपुर्ज़े। 

बूँद-बूँद को चट कर देंगे,

घन बरसे या गरजे।

 

भरे सकल जल-स्रोत लबालब,

सागर ज्वार चढ़ा है।  

मगर उसे नल नहलाएगा?

चिंतित मलिन

घड़ा है।

 

बन मशीन मानव ने भू के,

रोम-रोम को वेधा।

क्यों कुदरत फिर क्षुब्ध न होगी,

रुष्ट न होंगे मेघा!

 

अमृत वर्षा से खेतों का,

कण-कण जाग पड़ा है।

पर किसान का उत्सव होगा?

उत्तर यहीं

अड़ा है।

 

मौलिक व अप्रकाशित

 

----कल्पना रामानी

Views: 616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Aditya Kumar on August 15, 2013 at 6:07pm

मक्कारी, गद्दारी, लालच,

शासन के कलपुर्ज़े। 

आदरणीय  कल्पना रामानी  जी , बहुत ही सुन्दर आपका काव्य। सुभकामनाये और बधाई !

Comment by कल्पना रामानी on August 13, 2013 at 9:29am

अन्नपूर्णा जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by annapurna bajpai on August 7, 2013 at 11:18pm

आदरणीया कल्पना जी बहुत ही भाव पूर्ण नवगीत के लिए आपको हार्दिक बधाई । सादर ।

Comment by कल्पना रामानी on August 3, 2013 at 8:47am

आदरणीय सौरभ जी, लक्ष्मण प्रसाद जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद

सादर  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 2, 2013 at 3:44pm

अमृत वर्षा से खेतों का,कण-कण जाग पड़ा है।

पर किसान का उत्सव होगा?

उत्तर यहींअड़ा है।------------बहुत सुन्दर प्रस्तुति आपकी आदरणीया कल्पना रामानी जी 

प्रकृति की सुन्दर देंन को मानव किस रूप में ग्रहण करता है,

उपयोग या दुरूपयोग करता है, यह मानव पर् है | यह बखूबी आपकी रचना में निहितार्थ प्रकट हो रहा है | 

हार्दिक बधाई स्वीकारे 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 2, 2013 at 3:18pm

संवेदना का संयत विस्तार भावदशा को कहाँ तक की मनस सैर कराता है, उसकी बानग़ी आपकी रचना है. 

मानव का प्रकृति से बन गया असंयमित सम्बन्ध प्रकृति के किस अनगढ़ व्यवहार का कारण बन गया है, यह कितनी शिद्दत से मुखरित हुआ है, कि मन बार-बार वाह कह उठता है.

इस सफल नवगीत के लिए आपको अतिशय बधाइयाँ तथा हार्दिक शुभकामनाएँ.

Comment by MAHIMA SHREE on July 31, 2013 at 11:44am
बहुत ही सुंदर नवगीत आदरणीया हार्दिक आपको
Comment by कल्पना रामानी on July 30, 2013 at 10:32pm

आदरणीय मित्रों, राजेश जी, अरुण अनंत जी, वंदना जी,सत्यनारायन जी, केवलप्रसाद जी,श्याम नरेन जी, विजय मिश्र जी,वीनस जी,जितेंद्र जी, आप सबका प्रोत्साहित करती हुई प्रशंसात्मक सुंदर टिप्पणियों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by राजेश 'मृदु' on July 30, 2013 at 2:44pm

बहुत ही बढि़या नवगीत रचा है कल्‍पना दी आपने, ढेरों बधाईयां

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 30, 2013 at 11:37am

अहा!! अहा!! अहा!! ह्रदय स्पर्शी नवगीत आदरणीया बहुत बहुत सुन्दर मनोहारी, ह्रदय से भर भर के ढेरों बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई। गौरैया के झुंड का, सुंदर सा संसार…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post यह धर्म युद्ध है
"आदरणीय अमन सिन्हा जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
10 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service