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शब्द नहीं आते है ( कविता )

शब्द नहीं आते है

 

देख दुर्दशा   

सुन कर व्यथा

गूँजता करुण क्रंदन  

न पिघला मानव मन

कुछ कहने को शब्द नहीं आते है ....

लुट रही अस्मिता

मिट रहा सुहाग

छिन रहे माँओ के लाल

रक्तरंजित हो रही धरा

व्यथा सुनाने को शब्द नहीं आते है .......

जन्मांध न होकर भी जो

बन चुके धृतराष्ट्र

हलक तक शुष्क हो चला  

जिह्वा चिपक गई तालु से

पुकार लगाने को शब्द नहीं आते हैं ..........

द्रौपदी तब थी आज भी है

परंतु आज कृष्ण नहीं आते है

संवेदना हीन समाज

जगाने को राम नहीं आते है

क्या लिखूँ ...... शब्द नही आते है............

 

अन्नपूर्णा बाजपेई

 

अप्रकाशित एवं मौलिक

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Comment

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 1, 2013 at 9:22pm

आ0 अन्नपूर्णा जी, //द्रौपदी तब थी आज भी है
परंतु आज कृष्ण नहीं आते है
संवेदना हीन समाज
जगाने को राम नहीं आते है
क्या लिखूँ ...... शब्द नही आते है............//-----बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by वेदिका on September 1, 2013 at 8:15pm

सुंदर भाव से रची बसी कविता .....गहरे विवश हालात दर्शाती हुयी कविता ....

किन्तु हम क्यू किसी हीरो का इंतजार करते है, हमारे उद्धार के लिए, हम कोई परजीवी तो नही| एक नायक था 'महात्मा बुद्ध' जिनहोने कहा था 'अपना दीपक स्वयं बनो'|    

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2013 at 7:37pm

द्रौपदी तब थी आज भी है

परंतु आज कृष्ण नहीं आते है

संवेदना हीन समाज

जगाने को राम नहीं आते है

क्या लिखूँ ...... शब्द नही आते है... सुन्दर भाव रचना प्रस्तुति के लिए बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेयी जी 

Comment by Meena Pathak on September 1, 2013 at 6:06pm

बहुत सुन्दर ... बधाई आप को अन्नपूर्ण जी

Comment by Aditya Kumar on September 1, 2013 at 2:41pm

राष्ट्रीय वेदना को दर्शाती कविता ! 

Comment by Vinita Shukla on September 1, 2013 at 11:33am

निःशब्द करने वाली परिस्थितियां...हार्दिक साधुवाद अन्नपूर्णा जी.

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