“दादी ये पराया घर क्या होता है ?” नन्ही जूही ने मचलते हुए दादी से पूछा । दादी ने प्यार से समझते हुए कहा “जब तुम बड़ी हो जाओगी खूब पढ़ लिख जाओगी तब हम तुम्हारा ब्याह एक अच्छे से राजकुमार से कर देंगे वो तुम्हें अपने घर ले जाएगा, उसी को कहते है पराया घर ।” उसने पूछा - " तो दादी जैसे आप भी पराए घर मे हो और माँ भी । बुआ को भी आपने पराये घर भेज दिया ।” दादी ने स्वीकृति मे सिर हिला दिया । उसकी उत्सुकता शांत नहीं हुई थी उसने फिर पूछा - “क्या भैया भी पराए घर जाएगा , दादा जी भी गए थे और पापा भी गए थे ।” दादी बोली – “ धत् ! पगली कहीं की , केवल लड़कियां ही जाती है लड़कों का अपना घर होता है वे तो ब्याह के पराये घर की लड़की लाते है और फिर वो लड़की हमेशा उसी घर मे रहती है ।” “ क्यों क्या लड़कियों के पास अपना घर नहीं होता जो उन्हे पराए घर मे भेज दिया जाता है , क्या मुझे भी भेज दोगी ?” नन्ही जूही ने फिर दागा । अब दादी निरुत्तर थी ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शुभ्रांशु पांडे जी अपने सही कहा । वैसे भी नेट की कनेक्टिविटी तो आजकल मनमोहन की सरकार की तरह है ।
आदरणीय कुशवाहा जी ये ही विडिम्बना है इस मानसिकता को ही बदलने की आवश्यकता है । आपाक आभार ।
घर तो बसाती हैं पर घर उनका नही कहलाता
आदरणीया अन्नपूर्णा जी, बहुत सही कहा आपने...दरसल कभी कभी नेट के झमेले में विचारों से ज्यादा नेट की कनेक्टिविटि के साथ दो चार होना पड़ता है और कई बार के बाद जब विचार पोस्ट होता है तो शब्द क्या पूरी लाइन ही उड़ जाती है......
सादर
आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डे जी लड़कियों को जन्म के बाद नहीं , विवाह के बाद पराये घर जाना ही होता है यही नियम है । बाकी तो बच्चे की कोमल भावनाएं जिधर चाहे जैसे चाहे मोड कर रुख दे दिया जाय ये निर्भर करता है समझाने वाले पर ।
आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया अन्न्पूर्णा जी,
जन्म के बाद लड़कियों को दूसरे के घर जाना ही रहता है. ये एक परिपाटी है, जिसका पालन सभी करते हैं.ये एक समस्या पूर्ति की तरह होता है. एक महिला ही होती है जो इस पराया घर को अपना कर, अपना घर बना लेती है. उसका अपना घर.
अगर औरतों में, इस पराया घर की धारणा केवल पराया घर ही रह गयी या केवल मेरा-अपना, इसका-उसका बन जाता है तो उसी वक्त से पारिवारिक समस्यायें अपना मुँह उठाने लगती हैं.
आज समाज बदल गया है जहाँ समस्या के हिसाब से भी महिलायें अपने माँ पिता को विवाह के बाद साथ रखती हैं.
लेकिन ये बात तो सबसे पहले अभिभावकों का है कि उस पराया घर के किस रुप को किसी बच्ची के मन में डालते हैं.
सादर.
आदरणीय जितेंद्र जी आपका आभार ।
छोटे बच्चों के सवालों का जबाव,कभी कभी बड़ों के पास नही होता है, बहुत ही सुंदर लघुकथा , बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा
आपका हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र कुमार जी ।
आदरणीया अन्नपूर्णा जी ..माह के सक्रिय सदस्य चुने जाने पर ढेर सारी बधाई ....प्रभु से कामना है कि ब्लागिंग के हर क्षेत्र में आप यों ही सक्रिय रहें और समाज रोशन हो
जय श्री राधे
भ्रमर ५
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online