For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस नगर में

मेरे कुछ सपने

हुए साकार

और कुछ

बिखरे किरचियाँ बन

पर

इन सपनों की

फ़ेहरिस्त थी लम्बी

इन्हें पूरा करने

जी जान से थी जुटी

कभी

भावुकता में बही

तो कभी

व्यावहारिकता ओढ़ी

कहीं

करना पड़ा संघर्ष

इसके

विद्रोही मोड़ों पर

लेकिन

इस नगर की

एक बात है ख़ास

मुस्कुराहटों में इसने

दिया मेरा साथ

पर एक बात

है इसकी विचित्र

ग़मों में सहारा देने

कोई हाथ भी न उठा

यही   

ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव 

समझा गए मुझे हर बार

नई सीख नए विचार

 

 

विजयाश्री

०५.०७.२०१३

 

 ( मौलिक और अप्रकाशित )

 

 

Views: 665

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijayashree on September 16, 2013 at 10:26pm

हार्दिक आभार सुरेन्द्र कुमार शुक्ला जी 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 14, 2013 at 11:53pm

एक बात है ख़ास

मुस्कुराहटों में इसने

दिया मेरा साथ

पर एक बात

है इसकी विचित्र

ग़मों में सहारा देने

कोई हाथ भी न उठा

---------

कोई भी ना उठा हाथ
आदरणीया विजयश्री जी ..जिन्दगी के दोनों पहलुओं को दिखाती सच को बयाँ करती अच्छी रचना जिन्दगी के ये रंग आज कुछ ज्यादा ही दिखते हैं
भ्रमर ५
प्रतापगढ़

Comment by vijayashree on September 3, 2013 at 10:20pm

हार्दिक आभार राजेश कुमार झा जी 

Comment by vijayashree on September 3, 2013 at 10:18pm

हार्दिक आभार 

डॉ प्राची सिंह जी 

जितेन्द्र 'गीत ' जी 

रविकर जी 

Comment by vijayashree on September 3, 2013 at 10:10pm

हौंसलाअफजाई के लिए शुक्रिया 

अभिनव अरुणजी 

डॉ आशुतोष मिश्रा जी 

विनीता शुक्ला जी 

Comment by राजेश 'मृदु' on September 2, 2013 at 7:09pm

मुक्‍तछंद में प्राय: रचनाएं अपने आप को ही ढूंढती हुई सी मुझे मिली हैं पर कुछेक इतनी समृद्ध मिली हैं कि छंद का वजन वहां कम पड़ जाता है। आपकी रचना ऐसी ही है । स्‍पष्‍ट भाव, स्‍पष्‍ट विचार एवं सतत प्रवाह से युक्‍त अपना उद्देश्‍य हासिल करती हुई । आपको हार्दिक बधाई इस रचना पर, सादर

Comment by रविकर on September 2, 2013 at 10:26am

उत्तम प्रस्तुति
आभार आदरेया-

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 2, 2013 at 12:18am

बहुत ही प्रभावशाली रचना, बहुत बहुत बधाई, आदरणीया विजयश्री जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2013 at 12:20pm

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति आदरणीया विजयाश्री जी 

स्वप्नों के पूरा होने, टूटने , मुस्कुराहटों में लोगों का साथ मिलने और मुश्किल वक़्त में अकेले रह जाने ..और इस सबसे सीख लेते आगे बढते हुए व्यक्ति के अनुभवी और मज़बूत बनते जाने को बहुत संवेदनशीलता से अभिव्यक्त किया है 

हार्दिक बधाई 

Comment by Vinita Shukla on September 1, 2013 at 11:15am

ज़िन्दगी की जेद्दोजेहद का जीवंत वर्णन. बधाई आ. विजया जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service