For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल ----" इस क़दर तारीक़ियों की लत लगी है "

2122     2122     2122

पूछता मैं फिर रहा हूं हर किसी से      

क्या निकल सकते हैं ऐसी बेबसी से

मंज़िलों के वास्ते कितने हैं पागल  

हर किसी को पूछना है तिश्नगी से         

इस क़दर तारीक़ियों की लत लगी है

लग रहे हैं ख़ौफ़ खाये रौशनी से

आदमीयत की महज़ तो आरजू है

और हमको चाहिये क्या आदमी से

धर्म सारे चल नदी में हम सिरा दें

धूल खाते लटकते जो अलगनी से

.

          गिरिराज भंडारी

 मौलिक एवँ अप्रकाशित 

 

Views: 844

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 4:26pm

:-))))))))))


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2013 at 3:09pm

आदरणीय सौरभ भाई , आपका आभार , गलती बताने के लिये !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2013 at 3:06pm

संजय भाई , आपका बहुत बहुत शुक्रिया , हौसला अफज़ाई के लिये !!

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on September 1, 2013 at 2:37pm

इस क़दर तारीक़ियों की लत लगी है,

लग रहे हैं ख़ौफ़ खाये रौशनी से। बहुत खूब....

आदरणीय गिरिराज जी खूबसूरत गजल के लिए सादर बधाई स्वीकारें....


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 2:28pm

//..झूलते जो अलगनी से.//

लटकते = १२२  यानि यह मात्रा समूह यहाँ के मिसरे के अनुसार काम में नहीं आना.

झूलते = २१२ .. सही है

आप समझ गये कि मेरा इशारा कहाँ है और आपने मिसरे को दुरुस्त कर लिया, आदरणीय, यही सबसे बेहतर तरीका है सीखने-सिखाने का.

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2013 at 1:44pm

श्याम भाई , आपकी लेख्ननी का मै कायल हूँ , जब से ओ बी ओ मे आया पढ़ रहा हूँ , मुझसे अपनी तुलना न करें !! मै तो सच मे प्रौढ़ शिक्षा वाला विद्यार्थी हूँ ! बेतरतीब डायरी भर के रखता था , खुद ही पढ़ के खुद खुश हो लेता था !! 59 वें साल मे बच्चों के कहने पर बाहर आया और सीखने की शुरुवात किया !!  सैकडों बे बहर गज़ल डायरी मे रोती पडी है !! अब कुछ समझ आ रही है !! मुझसे अपनी तुलना न करें ! कहीं ये मार्ग दर्शन से बचने का तरीक़ा तो नही ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2013 at 12:49pm

श्याम भाई , मै तो अभी  के जी 1 मे भर्ती हुआ हूँ , आप सुधि जनो का के मार्ग दर्शन की बहुत जरूरत है !! बुरा मानने की तो मै कभी सोच भी नही सकता !! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2013 at 12:30pm

वाह वा श्याम भाई , मज़ा आगया -

बेसबब ही पूछते हो हर किसी से

पूछ कर कूदे थे क्या तुम बेबसी में ----- क्या बात है !!

आपकी सराहना के लिये हार्दिक आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2013 at 11:44am

आदरणीय सौरभ भाई , आपका हारदिक आभार !! आप सुधि जनो का साथ भी तो जैसा चाहिये वैसा मिल रहा है , सुधार तो धीरे धीरे होना ही है !!  आदरणीय , अगर लटकते  की जगह " झूलते जो अलगनी से " कर दिया जाये तो शायद गलती सुधर जाये !! कृपा कर बतायें !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 12:49am

आपकी ग़ज़ल मॆं पकड़ पुख़्ता होती जा रही है. बहुत सही प्रयास हुआ है. आप बह्र निभा ले गये हैं. इसके लिए बधाई .

बस इस मिसरे को देख लें - धूल खाते लटकते जो अलगनी से

शुभ-शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
19 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service