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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
 महा-उत्सव के नियमों में कुछ परिवर्तन किये गए हैं इसलिए नियमों को ध्यानपूर्वक अवश्य पढ़ें |

पिछले 34 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 35
विषय - " निर्माता "
आयोजन की अवधि-  रविवार 08 सितम्बर 2013 से सोमवार 09 सितम्बर 2013 तक 

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दिए हुए विषय को दे डालें एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति. बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-
ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 35 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में दो. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.

सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 08 सितम्बर दिन रविवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आदरणीया सरिता जी,

आपका हार्दिक आभार कि आपने मेरे कहे को मान दिया।

एक बात निवेदन करना चाहता हूं कि शब्द विशेष पर मैं जब भी शंका व्यक्त करता हूं तो उसके पूर्व नेट पर उपलब्ध सामग्री देख जरूर लेता हूं इसलिए नेट के लिंक उपलब्ध कराने की आवश्यकता नहीं रह जाती। वैसे भी आपने जो भी लिंक उपलब्ध कराया है वह शब्द विशेष के समानार्थी शब्दों की सूची है।

अपनी छोटी समझ के साथ मैं सहमत नहीं हो पा रहा हूं।

बेहतर हो कि आप विद्वजनों से मार्गदर्शन प्राप्त कर लें।

सादर!

आदरणीय सरिता भाटिया जी 

सुन्दर भाव व सुन्दर कथ्य दोहावली के

मात्रिकता सही होने पर भी गेयता बहुत अवरुद्ध है..आप गेयता पर भी ध्यान देती चलें 

शुभकामनाएँ 

श्री अरुण शर्मा "अनंत" जी से सहमत होते हुए सुन्दर प्रयास केलिए हार्दिक बधाई आदरणीया सरिता भाटिया जी 

और हेतु औ, अरु आदि  प्रयोग तो देखा है किन्तु 'र का प्रयोग न देखा न सुना, हम लघु बाँधने हेतु "व" कर सकते है । 

दोहावली पसंद आयी, बहुत बहुत बधाई आदरणीया सरिता जी । 

aआदरणीय गणेश जी कृपया मार्गदर्शन करें हम ऐसा प्रयोग कर सकते हैं या नहीं 

"र" और की जगह प्रयोग करना गलत होगा आदरणीया । 

बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है आदरणीया  सरिता जी   //बहुत बहुत बधाई आपको 

शुक्रिया राम भाई 

कच्चा घड़ा सुधार दे, ठोक थपक कुम्हार 
गुरु संवारे छात्र को, देकर डांट 'र प्यार //--sunder bhaw 

देश निर्माण गुरु करे ,छात्र भविष्य सुधार 
गुरु सा निर्माता नहीं, करलो यह स्वीकार //nice

निर्माता तुम भी बनो, पेड़ लगाओ यार 
धरती को संवार दो , इसका कर शृंगार //wah!

युग निर्माता हैं सभी, धरती के वो लाल 
आजादी सौगात दी , रखो इसे संभाल //supperSarita Bhatia 

शुक्रिया अविनाश जी ,उत्साह बढाते रहें 

आपका कथ्य बहुत सुन्दर है  आदरणीय सरिता भाटिया जी,
आपने बहुत ही सरल शब्दों में  सार्थक  रचनाएं  प्रस्तुत की हैं
मुझे ऐसा लगा जैसे  कुछ दोहे आपने  जल्दबाजी में लिखे हैं या लिखने के बाद शायद उन्हें देखा नहीं, एक बार गौर से नज़र मार लें तो शायद और  भी निखार आ सकता है

___आपको बधाई

बहुत बहुत आभार अलबेला जी गौर करने की पूरी कोशिश करुँगी 

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