For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमने घर की दीवारों में    

जीवन की इक आस सजायी

 

रत्ती-रत्ती सुबह बटोरी

टुकड़ा-टुकड़ा साँझ संजोई

इस चुभती तिमिर कौंध में

दीपों की बारात सजायी

 

तिनका-तिनका भाव बटोरे 

टूटे-फूटे सपन संजोये

साँसों की कठिन डगर पे

आशा ही दिन-रात सजायी  

 

भूख सहेजी, प्यास सहेजी 

सोती-जगती रात सहेजी 

यूँ चलते, गिरते-पड़ते 

कितनी टूटी बात सजायी

 

तेरे हाथों के स्पर्शों ने   

इन होठों की मुस्कानों ने  

मेरे इस सूने मन में

सहज सुनहरी प्रीत सजायी  

 

                  - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 720

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 16, 2013 at 7:25pm

भाई बृजेश कुमार जी 

आपने मेरे कहे को मान दिया मैं आपकी आभारी हूँ... आपके लेखन की अपार संभावनाओं को देख बहुत खुशी होती है.. आपसे बहुत सुन्दर सुन्दर गीतों रचनाओं का इंतज़ार सदा ही रहता है..

शुभकामनाएँ 

सादर.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 15, 2013 at 8:25am

आदरणीय बृजेश भाई जी, आप ने मेरे कहे को मान दिया. आभार सहित धन्यवाद.  सादर,

Comment by बृजेश नीरज on September 14, 2013 at 7:25pm

आदरणीया प्राची जी, आपका हार्दिक आभार! आपने जो सुझाव दिए हैं उनके अनुसार रचना को रूप देने का प्रयास करूँगा. आगे रचनायें आपकी कसौटी पर खरी उतर सकें ऐसा मेरा प्रयास होगा.

सादर!

Comment by बृजेश नीरज on September 14, 2013 at 7:21pm

आदरणीया गीतिका जी, मार्गदर्शन के लिए आपका हार्दिक आभार! आप निशंकोच रचना की कमियां इंगित किया करें. आप जैसे गुनी लोगों का मार्गदर्शन मेरे लिए महतवपूर्ण है.

Comment by बृजेश नीरज on September 14, 2013 at 7:18pm

आदरणीय आशुतोष मिश्र जी, आपका हार्दिक आभार! आपके शब्दों से बहुत बल मिला.

Comment by बृजेश नीरज on September 14, 2013 at 7:17pm

आदरणीय बागी जी, आपका हार्दिक आभार! आपको रचना पसंद आई, मेरा प्रयास सार्थक हुआ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 14, 2013 at 5:17pm

आदरणीय बृजेश जी..

ऐसे गीत बस हृदय से बह निकलते हैं...निर्झर, बिना रुके..अपने आप.

 इस रचना के भावों के लिए बहुत बहुत सारी बधाई स्वीकार करें 

हमने घर की दीवारों में    

जीवन की इक आस सजायी.......................सीधे हृदय में घर कर गयी यह पंक्ति ..बहुत सुंदर! सहज ! 

 

रत्ती-रत्ती सुबह बटोरी..................वाह, पुर कशिश 

टुकड़ा-टुकड़ा साँझ संजोई................बहुत सुन्दर ...अद्भुत 

इस चुभती तिमिर कौंध में............बरबस चुभती तिमिर घड़ी में //यदि ऐसा किया जाए तो ....( तिमिर के साथ कौंध शायद उपयुक्त नहीं.. और यदि हर पंक्ति को १६ की मात्रा पर साधा जाए तो गेयता अप्रतिम हो जायेगी )

दीपों की बारात सजायी.......................बस..वाह ही निकल रहा है 

बाद के बंद थोड़ा सा समय और चाहते हैं..

इस खूबसूरत अभिव्यक्ति के लिए पुनः बहुत बहुत बधाई 

सादर.

Comment by वेदिका on September 14, 2013 at 1:50pm

वाह!! बहुत ही सुंदर कविता, सुंदर कथ्य समाहित ...आदरणीय बृजेश जी! सारे अभावों मे से भाव निचोड़ कर कविता को उच्च आयाम दिये है आपने| 

कहीं मुझे प्रवाह बाधित लगा सो आपको बता देना अपना फर्ज समझती हूँ|

//इस चुभती तिमिर कौंध में// .... इस के स्थान पर 22 की मात्रा वाला ऐसी शब्द ठीक लगे शायद

//तेरे हाथों के स्पर्शों ने  // मे भी मुझे प्रवाह बाधित लगा|

आदरनीय ये मेरे व्यक्तिगत विचार है| हो सकता है की बड़े बोल बोल दिये हों सो उसकी अग्रिम क्षमा सहित 

शुभकामनायें !!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2013 at 12:38pm

आदरणीय ब्रिजेश जी .हर मुस्कान के पीछे एक संघर्स होता है ..हर ख़ुशी के पीछे तिनका तिनका करके ही संघर्ष किया जाता है ..सरिता समान बहती आपकी यह रचना पाठक को अपने साथ बहा ले जाती है ..तिनका तिनका शब्द सहेजे ..सुंदर कविता एक बनायी ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई ..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2013 at 9:15am

//

भूख सहेजी, प्यास सहेजी 

सोती-जगती रात सहेजी 

यूँ चलते, गिरते-पड़ते 

कितनी टूटी बात सजायी//

बृजेश भाई आप दंग कर जाते हैं कभी कभी, इस रचना का स्तर देखते बनता है, जिस उचाई से आपने भावों को सहेजा है वह मन मुग्ध कर देता है, बहुत ही अच्छी और प्रवाह्युक्त रचना हुई है, बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
12 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
18 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
19 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service