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क्यों बे साले तेरी ये मजाल ... दो टके का मजदूर हो के मुझसे ज़बान लड़ाता है !

साहेब, गरियाते काहे हैं, मजदूर तो आपौ हैं  

क्या बकता है हरामखोsss

माई बाप ... पिछले हफ्ता एक मई का आपै तो कहे रहेन ,,, "हम सब मजदूर हैं"  

(मौलिक व अप्रकाशित) 

 

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Comment by rajesh kumari on October 13, 2013 at 2:08pm

वाह्ह्ह इसी को कहते हैं गागर में सागर भरना चंद शब्दों में आपने एक मासूम के द्वारा साहेब की कलई उतार  दी ,बाल मजदूरी ,बाल शोषण ,बेरोजगारी ,साहब लोगों की तानाशाही सभी का सच्चा आईना है ये लघु कथा नाम से लघु पर मर्म अथाह ,हार्दिक बधाई आपको वीनस जी 

Comment by Shubhranshu Pandey on October 13, 2013 at 1:48pm

आ. वीनस जी,

सुन्दर कथा.

मजदूरों की भी कैटेगरी होती है...बडे़ मजदूर, छोटे मजदूर और सबसे बडी़ बात ये कि सभी मजदूर शोषित होते हैं...

सुन्दर कथा. बधाई 

सादर

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 13, 2013 at 10:47am

  आदरनीय  केसरी जी , आपने चार ही लाइन में काफी कुछ कह दिया है । बहुत बढ़िया लघु - कथा । आपको बहुत बहुत बधाई । 
Comment by अजीत शर्मा 'आकाश' on October 13, 2013 at 10:33am

दिखावटी मज़दूर नेताओं के मुँह पर तमाचा ....... वाह वीनस जी ....... शानदार !!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 13, 2013 at 10:10am

वाह! साहेब की हवा निकाल दी, वास्तविकता की धूप में, साहेब का काला चश्मा उतार दिया...   :)

बहुत बढ़िया लघुकथा, बहुत बहुत बधाई आदरणीय वीनस जी

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