For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दीवाली पर एक नवगीत

क्यों रे दीपक
क्यों जलता है,
क्या तुझमें
सपना पलता है...?!

हम भी तो
जलते हैं नित-नित
हम भी तो
गलते हैं नित-नित,
पर तू क्यों रोशन रहता है...?!

हममें भी
श्वासों की बाती
प्राणों को
पीती है जाती,
क्या तुझमें जीवन रहता है...?!

तू जलता
तो उत्सव होता
हम जलते
तो मातम होता,
इतना अंतर क्यों रहता है...?!

तेरे दम
से दीवाली हो
तेरे दम
से खुशहाली हो,
फिर भी तू चुप - चुप रहता है...?!

चल हम भी
तुझसे हो जायें
हम भी जग
रोशन कर जायें,
मन कुछ ऐसा ही करता है...!!

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

- विशाल चर्चित

Views: 824

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kiran Arya on December 9, 2013 at 1:29pm

चल हम भी
तुझसे हो जायें
हम भी जग
रोशन कर जायें,
मन कुछ ऐसा ही करता है........एक सुंदर चाहना विशाल

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on November 6, 2013 at 11:20pm

विजय सर जी आभार !!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on November 6, 2013 at 11:20pm

बहुत - बहुत शुक्रिया जितेंद्र भाई !!!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on November 6, 2013 at 11:20pm

गिरिराज सर जी आभार !!!!

Comment by विजय मिश्र on October 29, 2013 at 3:15pm
बहुत सुंदर गीत , उत्तम भावों से युक्त .बधाई चर्चितजी
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 29, 2013 at 11:09am

सुंदर गीत, मन को छू गया, बधाई स्वीकारें आदरणीय विशाल भाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 28, 2013 at 9:55pm

आदरणीय विशाल भाई , बहुत लाजवाब गीत रचना की है !!!! आपको तहे दिल से हार्दिक बधाई !!!!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 28, 2013 at 9:31pm

आशुतोष सर जी प्रणाम.... आपको इस मंच पर देख कर अतिशय प्रसन्नता हुई है....!!!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 28, 2013 at 9:30pm

अरे विचार क्या करना राजेश भाई.... मैंने तो फौरन अमल भी कर दिया.... आखिर आपने इतनी अच्छी सलाह ही दी थी..... सच में हृदय से आभारी हूं आपका भाई कि आपने ध्यान दिलाया....!!!!

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 28, 2013 at 6:43pm

शरदिंदु जी आपका हृदय से आभार....... बहुत अच्छा लगा कि आपने गौर से पढा.... और कुछ सलाह के लायक समझा.....वैसे अब मैं आपको अपनी बात बता दूं कि क्यों //मन कुछ ऐसा ही करता है.../// लिखा.....दरअसल अपनी रचनाओं में कोशिश करता हूं कि मैं वैसा ही लिखूं जैसा कि हम रोजमर्रा की जिन्दगी में रहते हैं बात करते हैं.... जिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं.....आम बोलचाल में चूंकि 'मन करता है' ही बोला जाता है 'मन कह्ता है' नहीं..... इसलिये ये प्रयोग ज्यादा सटीक - आम जिन्दगी के ज्यादा करीब लगा.....बस इसलिये....!!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
15 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service