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ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 33 की समस्त एवं चिह्नित रचनाएँ

सुधिजनो !

दिनांक 22 दिसम्बर 2013 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 33 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी है.

संकलन का यह अति दुरूह कार्य इस मंच के ऊर्जस्वी, लेखकीय बहुमुखी प्रतिभा के धनी, अपार संभावनापूरित, साहित्यानुरागी एवं अभ्यासी-रचनाकार भाई राम शिरोमणि के अथक सहयोग के बिना संभव ही न हो पाता.

उनके इस उदार और अपरिहार्य सहयोग के लिए व्यक्तिगत तौर पर मैं ही नहीं, यह पूरा मंच आभारी है. इस बार हम रचना संकलन सम्बन्धी किसी भी सूचना के लिए भाई राम शिरोमणि के प्रयासों पर ही पूर्ण रूप से निर्भर हैं.

कहा भी गया भी है, जल के एक-एक बूँद का सहयोग विशाल समुद्र की निर्मिती का कारण हो सकता है.

भाई राम शिरोमणि को हार्दिक धन्यवाद तथा अनेकानेक शुभकामनाएँ. 


वस्तुतः इस मंच की अवधारणा ही बूँद-बूँद सहयोग के दर्शन पर आधारित है, जहाँ सतत सीखना और सीखी हुई बातों को परस्पर साझा करना, अर्थात, सिखाना, मूल व्यवहार है.


छंदोत्सव के इस दो दिवसीय आयोजन में 16 रचनाकारों से निम्नलिखित -
दोहा छंद
कुण्डलिया छंद
मत्तगयंद सवैया छंद
वीर या आल्हा छंद
मनहरण घनाक्षरी
कामरूप छंद

जैसे छंदो में यथोचित रचनाएँ आयीं, जिनसे छंदोत्सव समृद्ध हुआ ! कहना न होगा, दोहा तथा कुण्डलिया इस मंच के दुलारे छंद हैं.

पुनः निवेदित करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि मंच के आयोजनों का मूल उद्येश्य ही यही है कि इन्हें रचनाकर्म के प्रस्तुतीकरण के साथ-साथ छंद-कविताई हेतु कार्यशाला की तरह लिया जाय. इस हेतु कई रचनाकार सकारात्मक रूप से आग्रही भी दीखते हैं.

इस बार के आयोजन की मुख्य बात रही उन सदस्यों द्वारा उत्साहपूर्वक अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना जो अबतक शास्त्रीय छंदों पर कलमगोई नहीं करते थे. पहली बार उनका इस तरह से किसी छंद आधारित ऑनलाइन आयोजन में शिरकत करना सभी सदस्यों के लिए आश्वस्ति का कारण बना है. विश्वास है यह उत्साह बना रहेगा.

नये रचनाकारों में भाई शिज्जूजी, आदरणीय गिरिराजजी, आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवजी, भाई विनोद कुमार पाण्डेयजी, भाई सचिन देव के नाम प्रमुख रूप से उभर कर आये हैं. भाई अरुन शर्मा 'अनन्त' जी, आदरणीया राजेश कुमारीजी, भाई रमेश कुमार चौहानजी, आदर्णीय अशोक कुमार रक्तालेजी, आदरणीय सुशील जोशीजी, भाई गणेशजी, डॉ. प्राचीजी, आदरणीय अविनाश बागड़ेजी, आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी आदि की प्रस्तुतियों से यह बात स्पष्ट हो गयी कि छंद रचना के प्रति आग्रह इन सभी के मन में कितना स्थायी भाव बना चुका है.

लेकिन मैं इस बार इस आयोजन की मुख्य सु-घटना इस ई-पत्रिका-सह-मंच के प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराजभाईसाहब की मुखर प्रतिभागिता को मानता हूँ. एक अरसे बाद रचना दर रचना प्रतिक्रिया छंदों के माध्यम से आपने अपनी मज़ूदग़ी जतायी.

परन्तु, अपनी समस्त कार्यालयी व्यस्तता के बावज़ूद जिस तरह से आदरणीय अरुण निगमजी ने न केवल अपनी एक समृद्ध रचना के माध्यम से, बल्कि हर प्रस्तुति पर प्रतिक्रिया छंद के माध्यम से जिस तरह से अपनी प्रतिभागिता बनायी, वह अत्यंत श्लाघनीय है. अपने आप में यह बहुत सार्थक प्रमाण है कि दीर्घकालीन अभ्यास और सतत संलग्नता से कोई प्रयासकर्ता क्या कुछ पा सकता है !

लेकिन इसके साथ यह भी अवश्य साझा करना समीचीन होगा कि इस बार कई उन सदस्यों की कमी खली जिनकी रचनाओं और सक्रीय प्रतिभागिता से आयोजन समृद्ध होता है. यह अवश्य है कि, व्यक्तिगत व्यस्तताएँ अपना बहुत बड़ा रोल निभाती हैं. वैसे, आयोजन की सफलता और सदस्यों में इसकी लोकप्रियता यही बताती है कि जो रचनाकार इस सकारात्मक वतावरण का लाभ ले रहे हैं वे काव्यकर्म के कई पहलुओं से जानकार हो रहे हैं.

इस बार पुनः इस आयोजन में सम्मिलित हुई रचनाओं के पदों को रंगीन किया गया है जिसमें एक ही रंग लाल है जिसका अर्थ है कि उस पद में वैधानिक या हिज्जे सम्बन्धित दोष हैं या व पद छंद के शास्त्रीय संयोजन के विरुद्ध है. विश्वास है, इस प्रयास को सकारात्मक ढंग से स्वीकार कर आयोजन के उद्येश्य को सार्थक हुआ समझा जायेगा.

मुख्य बात -  तुम्हारे, नन्हें, नन्हा आदि शब्दों के प्रयोग में सावधान रहने की आवश्यकता है. आंचलिक शब्दप्रधान रचनाओं और खड़ी हिन्दी की रचनाओं में इनकी मात्राएँ अलग होती हैं, जोकि स्वराघात में बदलाव के कारण होता है.

आगे, यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव
*********************************************************************

1- श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी

छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

पुलिस यहाँ की देखिये, कैसा रूप दिखाय।
बदमाशों से दोस्ती, बच्चों पर गुर्राय॥

गलती जिनकी थी नहीं, वो बन गये शिकार।
आये थे जो देखने, यह मीना बाज़ार॥

मन बहलाने के लिए, करती पुलिस उपाय।
कुछ मस्ती भी हो गई, कुकड़ू कू बुलवाय॥

जींस में तकलीफ बहुत, मुर्गा बना न जाय।
कौन समझे दर्द कहाँ, कोई तरस न खाय॥

टेंट में सब मज़ा करें, किशोर तन झुलसाय।
गुंडो से डरती पुलिस, सब पर रोब जमाय॥

ये बेचारे गाँव के, अब तक समझ न पाय।
किस कसूर की दी सज़ा, कोई तो बतलाय॥

बच्चे हैं सहमे हुये, खूब हुआ सत्कार।
घर तक पहुँची बात तो, और पड़ेगी मार॥

खाकी वर्दी देखकर, हर कोई घबराय।
चालीसा के जाप से, बुरी बला टल जाय॥
********************************
2. सौरभ पाण्डेय

छंद - मत्तगयंद सवैया
संक्षिप्त विधान - भगण X 7 + गुरु गुरु, यानि, 211 X 7 + 2 2

नाम नशावन नीच सदा बहके बिफरे बलवा करते थे
लोग सभी इनकी करनी दुख-आतप भाँति सहा करते थे
काम खराब किया करते मुँहज़ोर बने टहला करते थे
मानव रूप भले इनको पर काम सदा घटिया करते थे

गाँव-समाज रहा इनसे अतित्रस्त.. खुला व्यभिचार मचावें
पातक था व्यवहार, मलेच्छ विचार, कुलच्छन पूत कहावें
शासन हाथ चढ़े सब-के-सब मुण्ड झुका चुप दण्ड लगावें
लोफर लंपट लीचड़ थे अब.. मुर्ग़ बने तशरीफ़ दिखावें

देह जवान, खिले तन पौरुष, रक्त भरी धमनी यदि भावे
काम करें सब लोग कि गाँव-समाज खुली जयकार मनावे
जोश भरा हर सैन्य-जवान कवायद में जब स्वेद बहावे
यार ज़रा कुछ काम करो शुभ.. भारत-माँ निज कोख जुड़ावे
**********************************************************
3. श्रीमती राजेश कुमारी जी

कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

.
गुंडा गर्दी की करें, पुलिस शिविर में जाँच
उनके हत्थे चढ़ गए, देखो मुर्गे पाँच
देखो मुर्गे पाँच, जलाती गरमी काया
बैठे तंबू तान, लुभाती खुद को छाया
एक घुमाता डंड पहन के खाकी वर्दी
मुर्गों का दे दंड, सिखाता गुंडागर्दी
*********************************
4. श्री सचिन देव जी

छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

नियमों का पालन करो, कबहुं न रखो ताक
इंसान भी मुर्गा बने, देख पुलिस की धाक

बढे-बूढ़े कह गईन, मत करियो हुडदंग
मुंह से कुकडू कू कढे, मारते जब दबंग

हवलदार बतला रहे, पकड लिए हैं चोर
पीठ पूजा लगे हुई , मार पड़ी घनघोर

मुर्गा बनकर लड़कों की, फितरतें हुई ठीक
नस-नस ढीली हो गई, टाँगे लगतीं वीक

दण्ड भोग कर आज का, बेटा जाओ सुधर
काम न ऐसा तुम करो,कि पड़े झुकाना सर
*********************************************
5. श्री अरुण शर्मा अनंत जी

छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.


दिल बहलायेंगे जरा, अँखियाँ लेंगें सेंक ।
चले गए बाजार में, कुछ आशिक दिल फेंक ।१।


उधम मचाएंगे बहुत, और करेंगे मौज ।
यही सोच बाजार में, चली पाँच की फ़ौज ।२।


देखा थानेदार जब, जुबां हुई खामोश ।
झट से ठंडा हो गया, इनका सारा जोश ।३।


लगा सिपाही ने दिया, मुर्गों वाला दाँव ।
होंगे सीधे जब सभी, बहुत दुखेगा पाँव ।४।


इनको धानेदार नें, ऐसे लिया दबोच ।
खुशियों पे पानी फिरा, उल्टी पड़ गई सोच ।५।


माफ़ी वाफी मांग लें, चलो यार चुपचाप ।
हम बेटे हैं इस समय, गधा यही है बाप ।६।
*****************************************
6. श्री शिज्जु शकूर जी

छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

जाने कौन कर्म किया, मुर्गा दिया बनाय
सूरत से मजनू लगे, सड़क छाप कहलाय
सड़क छाप कहलाय, सो अनोखी सज़ा मिली
आई नानी याद, एक- एक हड्डी हिली
अपने पकड़ के कान, सभी लगे कसम खाने
हम को कर दो माफ, अब तो दें हमें जाने
*********************************
7. श्री लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला जी
छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.


लाठी के हथियार से,पुलिस खेलती खेल,
अनुशासन के नाम पर,उनके हाथ नकेल |

देख पुलिस की हेकड़ी,बच्चों को हड़काय,
रुतबा अपना गाँठते, डंडा खूब चलाय |

बच्चों को मुर्गा बना, ऐंठ रहे है मूँछ,
लाठी फटकारे बिना, कैसे उनकी पूँछ |

लाठी इनका आत्मबल, खाकी में इन्सान,
बच्चों के भी खेल में, डाले ये व्यवधान |

भूखे प्यासे सर झुका, ले आँखों में पीर,
अपनी प्यास बुझा रहे, अश्कों का पी नीर |

बिगड़े इन हालात के, हम भी जिम्मेदार,
दोष पुलिस के दे रहे, वे है पह्र्रेदार |

निभा रहे कर्तव्य वे, करे नहीं बदनाम,
बच्चे अनुशासित रहे, हम सबका यह काम ।

(2) कुंडलिया

छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

बच्चे मुर्गा बन रहे, पुलिस लगाती गस्त,
खुली सड़क क्यों घूमते, आवारा से मस्त |

आवारा से मस्त, फिरे, माँ बाप लजाते,
लेते सुंदर सीख, समय क्यों व्यर्थ गँवाते |

माँ बाप दे ध्यान, बने सपूत वे सच्चे,
भविष्य के आधार, सभी संस्कारी बच्चे ||
**********************************************
8. श्री गिरिराज भंडारी जी

छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान


(1)
जाने क्या ग़लती किये , जाने क्या है पाप
क्या हाथों मे जल लिये, दिया किसी ने श्राप
दिया किसी ने श्राप , दुखी हो इन पाचों से
पाला इनका है पड़ा , सही में अब साचों से
अब इनका अवतार , सभी मुरगा पहचाने
कब तक ऐसा रूप, बात कोई ना जाने

(2)
बैठे हैं कुछ छाँव में , एक खड़ा मैदान
मुर्गों से है ले रहा , लगता है श्रम दान
लगता है श्रम दान , पुलिस की बात अनूठी
क्यों पाँचों से आज , लगे है रूठी रूठी
जाने क्यों ये कौम , चले है ऐंठे ऐंठे
बिना काम के दाम, चाहते बैठे बैठे
******************************************
9. श्री विनोद कुमार पाण्डेय जी

घनाक्षरी - वर्णिक छंद (31 वर्ण)

(16, 15 वर्ण पर यति होती है चरण के अंत में गुरू होता है)


निकले थे पाँच यार,घूमने चले बाजार
लगी थी बाजार मीना गाँव सुनसान में ,

कच्ची थी सड़क और तम्बू भी तने थे वहाँ
ढेर सारे खरीदार खड़े थे दूकान में ,

पाँचों लडकें वहीं पे आपस में भीड़ गए
सारे कस्टमर लग गए समाधान में,

तभी एक थानेदार आ गया कहीं से और
मुर्गा बनवाया सब को वहीं मैदान में,
*************************************************
10. श्री अरुण कुमार निगम जी

छंद - आल्हा 

16, 15 मात्राओं पर यति देकर दीर्घ,लघु से अंत, अतिशयोक्ति अनिवार्य


लोफर लम्पट लीचड़ लुच्चे, बिगड़े अधिक लाड़ से लाल
करते हलाकान जनता को और व्यवस्था को बदहाल
इन जैसे टुच्चों को रखते,तथाकथित कुछ लोग सम्हाल
मुर्गा इन्हें बनाते क्या हो , खूब उधेड़ो इनकी खाल

नई उमर के फूल दिखें पर , ये हैं जहरीले मशरूम
इनकी नजरें पड़ी नहीं औ’ लुट जातीं कलियाँ मासूम
देर नहीं इनके आने की , हो जाते हैं बटुवे पार
किसी रेल की बोगी , बस हो , चाहे हो मीना-बाजार

शिविर लगाया , तम्बू ताना , किया योजनाओं को मूर्त
जागा ही था अभी प्रशासन , चढ़े पुलिस के हत्थे धूर्त
जींस हो गई गीली इनकी , मुर्गे जैसे हुए हलाल
आज बना कर मुर्गा इनको, किया पुलिस ने खूब कमाल

रजनी ढलते देर नहीं औ’ पूरब में उगता आदित्य
नव -पीढ़ी नव -ऊर्जा पाती , जहाँ सजग शिक्षा-साहित्य
दिशाहीन को राह दिखायें , बदलें नक्षत्रों की चाल
आओ हम दायित्व निभायें , भारत को कर दें खुशहाल ||
*********************************************************
11.  श्री गणेश जी "बागी"
छंद - दोहे
संक्षिप्त विधान - 13-11 की यति का द्विपदी छंद जिसका विषम चरणान्त लघु-गुरु या लघु-लघु-लघु और सम चरणान्त गुरु-लघु से अनिवार्य. विषम चरण के प्रारम्भ में जगण (।ऽ।) निषिद्ध.

किट्टी पार्टी मॉम की, डैडी का व्यवसाय,
तब ही बेटा रोड पर, गुटका पान चबाय ।
 
*चित चंचल मन मौज में, सबसे करते बैर,
धरती पर टहलें मगर, रखें गगन पर पैर ।
 
मेला देखन को गये, बिगड़े राजकुमार,
तन से दिखते स्वस्थ पर, मन से हैं बीमार ।
 
दारोगा ने धर लिया, इनको रंगे हाथ,
थुकम फजीहत जो हुई, दिया न कोई साथ ।
 
कान पकड़ बैठक उठक, दिया दंड निहुराय,
अबकी कर दो माफ़ भी, कसम बाप की खाय ।

मेले में मजनू बने, तनिक न आये लाज,
हिम्मत चौगुन हो गयी, हम चुप हैं जो आज ।
*************************************
12. श्री रमेश कुमार चौहान जी
छंद कामरूप
(चार चरण, प्रत्येक में 9, 7, 10 मात्राओं पर यति, चरणान्त गुरु-लघु से)
मीना बाजार, देखो यार, सजे सुंदर स्टाल ।
चलो करे मेल, नाना खेल, दिखे सुंदर माल ।।
कहते मनचले, बोल बल्ले, दिखा रहे मिजाज ।
करते करतूत, वे तो खूब, कौन देखे काज ।।
पड़े अब पाले, जिगर वाले, बने थे दिल फेक ।
ये पुलिस वाले, ले हवाले, दे सजा अब नेक ।।
बार बार गुने, मुर्गा बने, मनचले ये बात ।
छोड़ छेड़ छाड़, करें जुगाड़, दे नई सौगात ।।
**********************************************
13. डा० प्राची सिंह जी

छंद - कुण्डलिया

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कलुषित मानस वृत्ति का , हो यथार्थ उपचार
पुलिस प्रशासन हों सजग, सद्चरित्र सरकार
सद्चरित्र सरकार, नियोजित शासन लाए
तत्क्षण दे कर दंड , समस्या को सुलझाए
कर्म करें सब श्रेष्ठ, सदा हो कर संकल्पित
मनस प्रज्ञ उपचार, सुधारे चिंतन कलुषित.!!
********************************************
14. श्री सुशील जोशी जी

छंद - कुण्डलिया

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मुर्गा कुकड़ू बोलता, नई हुई है भोर।
ध्वनि अचानक सुनी तभी, पकड़ो, मारो, चोर।।
पकड़ो, मारो, चोर, पकड़ में आए सारे,
उगल दिया सब सत्य, पुलिस ने डंडे मारे,
पढ़ लिख कर बेकार, न कोई बॉस न गुर्गा,
कड़ी धूप में रखा, बनाकर घंटों मुर्गा।
****************************************
15. श्री अशोक रक्ताले जी

छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान


आये सज शृंगार कर, पांच मित्र बाजार,
देख न पाए पुलिस का, सजा हुआ दरबार,
सजा हुआ दरबार, छोड़ता कब ये मौका,
वसुधा पर सरकार, कराया दर्शन घौ का,
मुर्गा बन कर मार, सही बिन मीना पाये,
पांच मित्र लाचार, देख कर रोना आये ॥
****************************************
16. श्री अविनाश बागडे जी

छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान


वर्दी की दादागिरी ,वर्दी का ये खौफ।
डंडा जिनके हाथ में ,घूम रहे बेखौफ।
घूम रहे बेखौफ ,मिला अधिकार कहाँ से !
तलब कीजिये उन्हें ,ये आया हुक्म जहाँ से।
कहता है अविनाश ,कानूनी गुंडागर्दी।
हद्द पार जो बढे ,उतरो ऐसी वर्दी।
*********************************

छंद - कुण्डलिया

संक्षिप्त विधान - 1 दोहा + 1 रोला ; प्रथम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह और क्रमशः अंतिम शब्द या शब्दांश या शब्द समूह समान

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Replies to This Discussion

दोनो की बातें लगती हैं मुझको रुचि कर

सोचा छंद रचूँ क्या मै भी सब कुछ तज कर

अल्प ज्ञान लेकिन मेरा है आड़े आता

मेरा लंगड़ापन मुझको पर नहीं सुहाता

भाई सौरभ मुझ पर जब भी कृपा करेंगे

उसी दिवस से हम भी भाई छंद रचेंगे

:-))))

खुली  रखें  जो  आँख, ’’हुआ  संप्रेषण  कैसा’’

सतत  करें  अभ्यास, तभी हो लिखना वैसा

समझेंगे खुद शिल्प,  लिखें फिर  चाहे  जैसा

छंदों   का   माहौल,    हुआ   तारी  है   ऐसा..

सादर

प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी,

स्नेहिल नमन.

चारों तरफ़ गूँज रही आपकी जय-जयकार से मन -सुमन पुलकित और प्रफुल्लित हो उठा है.अपने अनुज की प्रशंसा भला किसे नहीं भाए-सुहाएगी.इसी तरह निरंतर उन्नति करते रहो.फरवरी में सूरत आ रहा हूँ.ज़रूर मिलना.अपना न.अवश्य देना .आपके  साथ-साथ आपकी पूरी टीम को ह्रदय से साधुवाद.

आपका अग्रज

गुणशेखर

 छंदोत्सव के सफल समापन और त्वरित संकलन पर पूरी टीम को हार्दिक बधाई । साथ ही उन रचनाकारों और पाठकों  को भी बधाई जो आयोजन की  सफलता में सह्भागी रहे॥

........... आयोजन यह टीम का, फिर भी है दो नाम ।

........... सौरभ   भाई  एक  हैं ,  दूजे  हैं  श्री  राम ॥

 आदरणीय अरुण भाई निगम एवं योगराज भाई को भी हार्दिक धन्यवाद जिन्होंने अपनी काव्यात्मक टिप्पणी से पूरे उत्सव  को खुशनुमा बनाये रखा और् हमें बहुत कुछ सीखने का अवसर प्रदान किया॥                                                               

                                                                  ....सादर...  सप्रेम राधे- राधे  - अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

 

आदरणीय अखिलेशकृष्ण जी,

नहीं जरूरी आप लें, दो नामों को मात्र
सब ही रचनाकार हैं, सब हैं यहाँ सुपात्र.. .

सादर

बीज  खाद  पानी  मृदा, दवा  मेड़  समवेत

फसल उगाते स्वर्ण-सी , वही मित्रवर  खेत  ...

जय ओबीओ ............

आदरणीय अरुणभईजी,


अंकुर  को  पौधा करे,  तत्पर  उर्वर  खेत 
आपस का सहकार ही, रखता हमें सचेत 

सादर

रामशिरोमणि धन्य है,त्वरित संकलन काज 

छंदों को  चिन्हित  किया , वाह खूब  अंदाज ||

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"हार्दिक आभार आदरणीय मयंक कुमार जी"
19 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
" छंदों की प्रशंसा के लिये हार्दिक आभार आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी"
20 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"    गाँवों का यह दृश्य, आम है बिलकुल इतना। आज  शहर  बिन भीड़, लगे है सूना…"
20 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी,आपकी टिप्पणी और प्रतिक्रिया उत्साह वर्धक है, मेरा प्रयास सफल हुआ। हार्दिक धन्यवाद…"
20 hours ago

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