For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

!!! बनो दिनमान से प्रियतम !!!

बनो दिनमान से प्रियतम,
नित्य ही नम रहे शबनम।।

उजाला हो गया जग में,
रंग से दंग हुर्इ सृष्टि।
लुभाता रूप यौवन तन,
गंध के संग हुर्इ वृष्टि।
समां भी हो गया सुन्दर, जलज-अलि का हुआ संगम।। 1

पतंगी डोर सी किरनें,
बढ़ी जाती दिशाओं में।
मधुर गाती रही चिडि़या,
नाचते मोर बागों में।
कल-कल ध्वनि करें नदिया, लहर पर नाव है संयम।। 2

किनारों पर बसी बस्ती,
सुबह औ शाम की मस्ती।
सितारों ने कहा जब से,
इशारों में मिलो रब से।
चांद भी झांकता छत पर, सुनाती चांदनी सरगम।। 3

सुखों का सार है सहना,
गहना क्रोध है दु:ख का।
उदासी छिप रही धन में,
ज्ञान को सोखती शंका।
मन क्रम बचन रहे सत से, राम का नाम लो हरदम।। 4

के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 469

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 7, 2014 at 7:26pm

आ0 सौरभ सर जी, शरदिन्दु सर जी व अन्नपूर्णा जी आप सभी का तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  मेरा मानना है कि किसी भी रचनाओं पर उनके प्रत्येक पहलुओं पर सार्थक विचार किया जाए। मुझे बेहद प्रसन्नता हुर्इ कि आपने अपनी अमूल्य टिप्पणियां अंकित कर मेरा मार्गदर्शन किया है। सादर, 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on February 7, 2014 at 12:46am
भाई केवल जी...यह क्या लिख दिया?!!!!!! आपकी अधिकांश रचनाओं को समझने लायक मेरी क्षमता नहीं है, इसीलिए उनपर टिप्पणी नहीं करता हूँ मैं आम तौर पर. लेकिन यहाँ, इस रचना पर सौरभ जी की टिप्पणी से सहमत हूँ पूर्णतया. आप बहुत समय से लिख रहे हैं और रचनाकर्म से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं बिना व्यवधान के. अत: अपेक्षित है कि आप जो भी लिख रहे हों उसके प्रति सजग रहेंगे, सचेत होंगे. "बधाई" किस बात की मेरे समझ में नहीं आता लेकिन शुभकामनाएँ अवश्य आपके साथ हैं हमेशा के लिए. सादर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 5:49pm

अभी थोड़ी देर पहले आपका एक समृद्ध नवगीत पढ़ कर कुछ अधिक ही निहाल हो रहा था मैं. आपने पूर्ववत संतुलन में ला दिया.

मज़ा यह कि आप इस रचना पर वाह वाही भी खूब पा गये हैं. अब इस पर मैं क्या कहूँ ? सभी पाठक हैं. सबको अपने अनुसार रचनाओं को समझने और तदनुरूप मुग्ध होने का अधिकार है.

देखिये न,  दिनमान और शबनम में बिम्ब के हिसाब से ही नहीं, भौतिक रूप से भी छत्तीस का आँकड़ा हुआ करता है. फिर कोई प्रियतमा अपने वातावरण को नम बनाये रखने का आग्रह रखे, अपने प्रिय से दिनमान होने का अनुरोध कैसे कर सकती है ? दूसरे, रचना में प्रयुक्त शब्दों या अंतरों (बंदों) की तुकान्तता में भी तारतम्यता नहीं है, भाई.

बहरहाल, मेरी ओर से भी बधाई हो.

सादर

Comment by annapurna bajpai on February 6, 2014 at 1:31am

सुंदर रचना ,बधाई आपको आ0 केवल भाई जी । 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 5, 2014 at 8:34pm

आदरणीय  जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 5, 2014 at 8:33pm

आदरणीय कुन्ती मैम जी आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 4, 2014 at 10:57pm

सुखों का सार है सहना,
गहना क्रोध है दु:ख का।
उदासी छिप रही धन में,
ज्ञान को सोखती शंका।
मन क्रम बचन रहे सत से, राम का नाम लो हरदम।।.....सफल जीवन का मार्गदर्शन करती पंक्तियाँ , बहुत बहुत बधाई आदरणीय केवल जी

Comment by coontee mukerji on February 4, 2014 at 9:49pm

सुखों का सार है सहना,
गहना क्रोध है दु:ख का।
उदासी छिप रही धन में,
ज्ञान को सोखती शंका।
मन क्रम बचन रहे सत से, राम का नाम लो हरदम।। 4.......इतनी सुंदर रचना हेतु आपको अनेक बधाइयाँ.भाई केवल जी.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service