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                ग़ज़ल

हर   रिफअत  मुझसे  फकत,   सादमां  रहा |

ज़ुल्म  थी  ज़मीं   और   कहर  आसमां  रहा ||

खुर्शीद -ओ- चाँद-तारे,  शोले  बने  हैं  आज,

गुल  है  न   कोई   गुलशन  न  बागवां  रहा ||

मिलते   नहीं   हैं   रिश्ते,  वज्मे - ज़हान  में,

साकी  के  मय को मयक़स,  है आजमा रहा ||

हसरत है ज़िंदा लेकिन अब मर चुका है दिल,

काबिल   किसी  बहार  के,  न  ये  स
मां रहा ||

दामन  किसी  का  थाम लूं , है ज़ुश्तजू मेरी,
लेकिन  न मेरे दिल का,  कोई पास
वां   रहा ||

कहती  है  आज  दुनिया,  है
वां  बने  तो  जी,
इंसानियत  को  सबने, बस  बदगु
मां  कहा ||

इंसान  बन  के  जीने,  देते  नहीं  हैं  लोग,
इंसान   बन   के  मैंने,   बस  दर्द  ही  सहा ||

आवाज़  दी-   कहाँ  है  ?  इंसान  का  जुनूँ ,
तो दिल ने बद्सुकूं का,  मुझे  कारवाँ  कहा ||

          रचनाकार - अभय दीपराज

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Comment by आशीष यादव on February 5, 2011 at 8:14am
abhay sir, padhte samay lagta hai ki bs padhte rahe. behad umda ghazal lagi mujhe, yadyapi mujhe ghazal ka knowledge nahi hai, fir bhi agar padhne me mujhe achchhi lagi to mai to yahi kahunga na|

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