आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
पिछले 43 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-44
विषय - "समाज और बेटियाँ "
आयोजन की अवधि- 13 जून 2014, शुक्रवार से 14 जून 2014, शनिवार की समाप्ति तक
(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दिए हुए विषय को दे डालें एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति. बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए.आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)
अति आवश्यक सूचना :-
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 13 जून 2014 दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तोwww.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका
डॉo प्राची सिंह
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.
Tags:
Replies are closed for this discussion.
बेटियों के गुणगान और इस सुंदर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई विजय भाई
बहुत बढ़िया , सुंदर रचना । आ0 विजय शंकर जी बधाई आपको ।
महोत्सव में आपकी रचना का स्वागत है...बेटियों को समर्पित बहुत खूबसूरत भावों को शब्दबद्ध किया है आदरणीय डॉ० विजय शंकर जी
समाज की क्या सूरत होती जो न होतीं बेटियां................बहुत सही प्रश्न उठाया आपने
कुछ नासमझों को बोझ नजर आती हैं बेटियां.................कितना शोचनीय है बिटिया को बोझ समझा जाना
सृजन के लिए सृजन का भार उठाती हैं बेटियां................सही
मातृत्व और ममता को साकार करती हैं बेटियां |..............सहमत हूँ
बहुत खूबसूरत भाव बेटियों के लिए
लेकिन आदरणीय , निम्न बंद में मैं कुछ समझ नहीं सकी की आप क्या कहना चाहते हैं....
समाज गर चोट दे तो समाज पर चोट होती हैं बेटियां...............समाज पर चोट ..कैसे?
समाज गर दाग दे तो समाज पर दाग होती हैं बेटियां...............समाज पर दाग .... उफ्फ्फ ये क्या कह गए आप आदरणीय..या मैं ही स्पष्ट समझ नहीं पायी ?
समाज का मान , अभिमान , ईमान होती हैं बेटियां................वो तो बेटे भी हैं
बददिमाग ,बदमिजाज पर कानून का वार हैं बेटियां |.................बेटियाँ क़ानून का वार किस तरह..
मुझे इस बंद में कोइ तार्किकता नज़र नहीं आयी...या फिर मैं ही अपनी सीमित समझ से समझ नहीं सकी.... देख लीजिएगा
मात्र इस एक बंद को छोड़ कर बाकी पूरी प्रस्तुति पर मेरी सहमति है
अंतिम बंद की अंतिम दो पंक्तियाँ बहुत अच्छा सन्देश भी देती हैं...इस प्रस्तुति पर मेरी दिली बधाई स्वीकारिये आदरणीय
आदरणीय डॉ० विजय शंकर जी
मेरे कहे को इतना मान देने के लिए और बिन्दुवत संशय स्पष्ट करने के लिए आपका धन्यवाद
'पर बेटियों का किसी भी हाल में समाज पर दाग होना या चोट होना' ऐसी तार्किकता को क्या सामान्य पाठक आपके अनुसार समझते हुए स्वीकार कर पायेगा? मुझे संशय है !!
आपकी सकारात्मक उपस्थिति और धैर्यपूर्ण प्रत्युत्तर के लिए पुनः पुनः आभार आदरणीय
आदरणीय
जहां तक मेरे मानने की बात है...मैंने अपना पक्ष..अपनी समझ भर रखा है .. ...अन्य गुणीजन भी यदि इन कुछ पंक्तियों पर अपनी बेबाक राय रखें तो इन पंक्तियों में जो आप संप्रेषित करना चाह रहे हैं क्या वो उसी रूप में संप्रेषित हो भी पाया है...यह काफी कुछ स्पष्ट हो सके...
सादर.
यथा संशोधित
आदरणीय विजय शंकर जी,
प्रश्नगत पंक्तियाँ वह कह नहीं पा रही हैं जो आपने उपरोक्त टिप्पणी में कहने का प्रयास किया है.
//काव्य की कुछ सीमाएं, कुछ विशेषतायें होती ही हैं //.... आदरणीय काव्य एक सशक्त विधा है. काव्य वह सब कुछ कह सकता है जो गद्य करता है. कहन की दृष्टि से काव्य की कोई सीमा नहीं है.
कहन की दृष्टि से आपको अपनी रचना की उन चार पंक्तियों पर पुनः विचार करना चाहिए जिन पर मंच संचालक महोदया द्वारा आपत्ति उठाई गई है.
हाँ काव्य की विशेषताएं अवश्य होती हैं और उस दृष्टि से भी आपकी रचना पर चर्चा की आवश्यकता है.
सादर!.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |