For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार , तुझे एक नया नाम देते हैं ---डा० विजय शंकर

प्यार चलो, तुझे एक नया नाम देते हैं ,
नव रूप ,नव रंग , नई पहचान देते हैं.
तेरे मतलब से मतलब निकाल देते हैं ,
बेमतलब प्यार का मतलब बता देते हैं.
तुझे तेरे स्व- अर्थ से मुक्त कर देते हैं ,
अपनत्व में लीन निस्वार्थ रूप देते हैं .
ये तेरे बदरंग , रंग निकाल देते हैं ,
पारदर्शी प्रिज्म सा रूप तुझे देते हैं .
तकने वालों को तू कांच नज़र आएगा ,
पास जिसके हो उसे ,सब रंग दिखायेगा .


मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Views: 709

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 29, 2014 at 7:43pm
आ o जवाहर लाल जी , रचना स्वीकार करने के लिए धन्यवाद ।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 29, 2014 at 7:25pm

ये तेरे बदरंग , रंग निकाल देते हैं ,
पारदर्शी प्रिज्म सा रूप तुझे देते हैं .
तकने वालों को तू कांच नज़र आएगा ,
पास जिसके हो उसे ,सब रंग दिखायेगा .

सुन्दर भाव! 

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 29, 2014 at 4:55pm
आदरणीय जीतेन्द्र जी , हार्दिक बधाई के लिए ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद .
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 29, 2014 at 4:54pm
आदरणीय गिरिराज जी , बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2014 at 10:56am

पारदर्शी प्रिज्म सा रूप तुझे देते हैं .
तकने वालों को तू कांच नज़र आएगा ,
पास जिसके हो उसे ,सब रंग दिखायेगा...........बहुत सुंदर, नमन नमन . हार्दिक बधाई आदरणीय डा.विजय जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 29, 2014 at 10:44am

आदरनीय विजय भाई , प्यार को नया रंग रूप देने के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 28, 2014 at 2:44am
आदरणीय सुश्री शालिनी रस्तोगी जी , आपको रचना अच्छी लगी , बहुत बहुत सादर धन्यवाद ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 27, 2014 at 10:52pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी , बहुत बहुत सादर धन्यवाद ।
Comment by shalini rastogi on June 27, 2014 at 12:02pm

नए बिम्बों का प्रयोग .. सुन्दर रचना आदरणीय !

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 27, 2014 at 11:29am

आदरणीय भाई विजय शंकर जी इस गरिमामय प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
11 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service