For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - रोज़ करवट हम बदल के देखते हैं ( गिरिराज भंडारी )

2122    2122      2122 

 

नाम  अपना  चल  बदल  के देखते हैं

घेरे से  बाहर  निकल  के  देखते   हैं

 

चाँद  सुनता  हूँ  कि थोड़ा पास आया

आ  ज़रा  फिर से  उछल के देखते हैं

 

पैरों  को  मज़बूतियाँ  भी  चाहिये कुछ

चल  ज़रा  काटों पे चल  के  देखते हैं

 

रोशनी  की  चाह में तो  हैं  बहुत, पर 

कितने हैं ? जो ख़ुद भी जल के देखते हैं 

 

कुछ मज़ा फिसलन में है,गर है यक़ीं तो  

हम  कभी  यूँ  ही  फिसल के देखते हैं

                                              

ख़्वाब  शायद  हो सुनहरा, क़िस्मतों में

रोज़  करवट  हम  बदल  के  देखते हैं

 

बह  के  जाने का  कहाँ  तक दायरा है

आ  किसी दिन हम पिघल के देखते हैं 

 

क्या  ख़रीदें ,  हम  बजारों  में हमेशा

जेब खाली , बस  टहल  के  देखते  हैं 

 

बचपने की फिर उन्हीं खुशियों की खातिर 

हम  भी  बच्चों  सा  मचल के देखते हैं  

 

आधुनिकता  क्या  बला है  जान तो लें 

एक दिन आ , हम भी  ढल के देखते हैं

 

शर्म  जैसी  बात  बरसों  से  नहीं पर

आज  भी ‘ उनको ’ सँभल के देखते हैं

************************************ 

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

Views: 819

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2014 at 11:26pm

आपही का आपही को समर्पित .. .

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 21, 2014 at 11:16pm

आदरनीय सौरभ भाई , अपना किया भुगतने के लिये हमेशा तैयार हूँ ॥ क्षमा चाहूंगा अब की आपको वो संतुष्टि नही दे पाया ॥ आगे प्रयास रत रहूंगा ॥

इज़ाजत हो तो आपका सुझाया मतला मै ले लूँ ?

यथोचित सलाह के लिये आपका आभारी हूँ ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2014 at 2:43am

आदरणीय गिरिराज भाई, इस ग़ज़ल पर सही कहूँ ? .. वो मजा नहीं आया जैसा कि आपकी पिछली कुछ ग़ज़लों में मैंने लिया है.
कुल मिला कर आदत खराब आपने की है, तो भुगतेगा कौन ? .. सो, भुगतिये. ..  :-)))

भाई, ऐसा लगता है, यह ग़ज़ल पूरी पकने के पहले ही उतार ली गयी बिरयानी की तरह सामने आ गयी है. जबकि इसे मद्धिम आँच पर कुछ देर और पकना था.

देखिये न, जान तो है मतले में. मगर मैं इस निहायत ज़िन्दा सोच को कुछ और आयाम देने की कोशिश करता.

केन्द्र अब अपना बदल के देखते हैं
वृत्त से बाहर निकल के देखते हैं..  .. हा हा हा हा...  :-)))

बहरहाल, प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय.
शुभेच्छाएँ

Comment by Zaif on July 17, 2014 at 6:37pm
छा गये सर जी, बहुत उम्दा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 14, 2014 at 8:54pm

आदरणीय जवाहर भाई , ग़ज़ल की रारीफ के लिये आपका बहुत शुक्रिया ॥

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 14, 2014 at 8:16pm

एक से बढ़कर एक शेर आदरणीय गिरिराज भडारी साहब!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 13, 2014 at 5:26pm

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , आपकी सराहना ने गज़ल कहना सार्थक कर दिया ॥ उत्साह वर्ध न के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 13, 2014 at 5:24pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया ॥

Comment by vijay nikore on July 13, 2014 at 4:49pm

सभी शेर एक से एक बढ़ कर... हर शेर पर दाद , भाई गिरिराज जी।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 13, 2014 at 9:45am

बहुत ही खुबसूरत गजल आदरणीय गिरिराज जी, एक एक शेर बहुत खूब हुआ . दिली बधाइयाँ लीजियेगा

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
15 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
18 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई। गौरैया के झुंड का, सुंदर सा संसार…"
21 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post यह धर्म युद्ध है
"आदरणीय अमन सिन्हा जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
25 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"वाह वाह वाह... क्या ही खूब शृंगार का रसास्वाद कराया है। बहुत बढ़िया दोहे हुए है। आखिरी दोहे ने तो…"
27 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Ashok Kumar Raktale's blog post कैसे खैर मनाएँ
"आदरणीय अशोक रक्ताले जी, बहुत शानदार गीत हुआ है। तल्ला और कल्ला ने मुग्ध कर दिया। जो पेड़ों को काटे…"
33 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"आपकी ज़िंदगी ओबीओ  मेरी भी आशिकी ओबीओ  इस समर में फले कुछ समर ऐ समर ये खुशी…"
41 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बढ़िया ग़ज़ल हुई है। शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं। सादर।"
55 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . रोटी
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति। हार्दिक बधाई। आख़री दोहे में  गोल गोल ये रोटियां,…"
59 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय सुशील सरना जी, मयखाने से बढ़िया दोहे लेकर आए हैं। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया दोहा छंद की प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। इस दोहे…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"वक्त / समय बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ ।। आदरणीय सुशील सरना…"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service