ओपन बुक्स ऑनलाइन के सभी सदस्यों को प्रणाम, बहुत दिनों से मेरे मन मे एक विचार आ रहा था कि एक ऐसा फोरम भी होना चाहिये जिसमे हम लोग अपने सदस्यों की ख़ुशी और गम को नजदीक से महसूस कर सके, इसी बात को ध्यान मे रखकर यह फोरम प्रारंभ किया जा रहा है, जिसमे सदस्य गण एक दूसरे के सुख और दुःख की बातो को यहाँ लिख सकते है और एक दूसरे के सुख दुःख मे शामिल हो सकते है |
धन्यवाद सहित
आप सब का अपना
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शायद कल थी ठोकी देशी, तभी बहकते फिरें गणेशी
मेरे परदादा के भाई, इनको लाज तनिक नहि आई
तुम सबके पोतों के पोते - काहे इंतना व्याकुल होते
अब जो चुप ना बैठे भाऊ, चाचा से कर दूँगा "ताऊ"
जय हो, जय हो गांजा घोलें । ’परदादा के भाई’ बोलें ॥
परम पूज्य हैं सदा प्रभाकर । मगन गनेसी बबुआ पाकर ॥
’तुम’ का मतलब समझ न आया । पर ’पोते का पोता’ पाया ॥
चाहे कोई रिश्ता मानो । नेह हृदय में बहता जानो ॥
जो कहना हो पहले तोलो, तोल मोल कर ही कुछ बोलो
जाने दिल्ली और दोआबा, "बेबी" को भी कहते "बाबा"
भई मिरासी सुत जो होता, रोता भी तो सुर में रोता
जो छंदों की काया माया, ओबीओ से है सब पाया,
ऐसा काहे कहें गुसाईं । गुड़ही नहीं, भले ही झाईं ॥
लेकिन जीम 'जबेली' आली । योगी खाली करते थाली॥
हा हा हा हा...
भोजपुरिन की बात निराली। खुद तो खाते भर भर थाली
योगी मांगे जभे जलेबी ! बागी सौरभ भएँ फरेबी !
खाने पर क्या साहब ताना । हमने देखे हैं भट नाना ॥
अधध पसेरी चखना करते । तिसपर हाँड़ी चावल धरते ॥
बल्टी बुनिया दही कनस्तर । कढ़ी-फुलौरे छइँटी भर-भर ॥
गिने जलेबी या रसगुल्ला । समझो पाहुन हैं दुमदुल्ला ||
:-))
मैं भी पहुँची पार्टी में लेट, ओ बी ओ का खुला था गेट
कर रही थी बकरी एक जुगाली, बजा रहे गणेश थे ताली
थी बात बड़ी नाइंसाफी वाली, सभी रखी थीं खाली थाली
एक और बात बेतुकी हुई, न ही कोई जबेली बची थी मुई
खाकर चले गये सब यार, तब योगी पहुँचे टपकाते लार
टेबिल के नीचे देख रसगुल्ले, हो गई उनकी वल्ले-वल्ले
एक उठाकर खाली प्लेट, सब रसगुल्ले उसमे लिये समेट
मैं भी लपकी पर स्लो था नेट, नहीं कर सके वह मेरा वेट
योगी भाई ने छुपकर खाया, पर गणेश को नहीं बताया l
:):)
शन्नोजी आशीष दें, हृदय कहे आभार
बनी रहे शुभकामना, औ’ आपस में प्यार
सादर आभार आदरणीया शन्नोजी..
सौरभ जी के जन्मदिवस की खुशी में मुँह भी मीठा करती चलूँ....मुफ्त की जलेबियाँ रोज तो मिलती नहीं :):):):)
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