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आग लगाते वो कुछ इस तरह जो धुआँ तक नहीं होता(ग़ज़ल 'राज')

२११२ २१२२  १२२१  २२१२ २२

लोग हुनरमंद कितने किसी को गुमाँ तक नहीं होता

आग लगाते वो कुछ इस तरह जो धुआँ तक नहीं होता

 

जह्र फैलाते हुए उम्र गुजरी भले  बाद में उनकी

मैय्यत उठाने कोई यारों का कारवाँ तक नहीं होता

 

आज यहाँ की बदल गई आबो हवा देखिये कितनी

वृद्ध की माफ़िक झुका वो शजर जो जवाँ तक नहीं होता

 

मूक हैं लाचार हैं जानवर हैं यही जिंदगी इनकी  

ढो रहे हैं  बोझ पर दर्द इनका बयाँ तक नहीं होता

 

 ख़्वाब सजाते सदा आसमां पर महल वो बनायेंगे

 दिल की जमीं पर मुहब्बत भरा आशियाँ तक नहीं होता

 -------------------------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 14, 2015 at 10:35am

आ० डॉ. आसुतोष जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार आपका|  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on December 30, 2014 at 3:25pm

आदरणीया राजेशजी ..सन्देश देती उम्दा ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 12, 2014 at 7:03pm

आ० योगराज जी,तहे दिल से आभार आपका ग़ज़ल आपको पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ|  


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 10, 2014 at 11:21am

अच्छी ग़ज़ल हुई है आ० राजेश कुमारी जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 4, 2014 at 5:33pm

आ० विजय निकोर जी,इस उत्साह वर्धन के लिए तहे दिल से आभारी हूँ सादर.  

Comment by vijay nikore on December 4, 2014 at 4:23pm

//ख़्वाब सजाते सदा आसमां पर महल वो बनायेंगे

 दिल की जमीं पर मुहब्बत भरा आशियाँ तक नहीं होता//

खूबसूरत गज़ल के लिए हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 4, 2014 at 10:09am

आ० योगराज जी,ग़ज़ल फीचर करने के लिए दिली आभार मेरे लेखन को सार्थकता मिली सादर.  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 4, 2014 at 10:08am

आ० गिरिराज जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लेखन कर्म सार्थक हुआ तहे दिल से आभार | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 3, 2014 at 3:54pm

आदरणीया राजेश जी , बढ़िया बात कही है गज़ल के ज़रिये , बहुत खूब ! दिली बधाइयाँ !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 2, 2014 at 8:11pm

प्रिय रामशिरोमणि पाठक जी,आपकी प्रतिक्रिया दिल से स्वीकार मेरी लेखनी को संबल मिला बहुत बहुत शुक्रिया.  

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