For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार माथे का पसीना पोछ दे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२१२२   २१२२२ २१२

*********************

हो गया  है  सत्य  भी मुँहचौर  क्या
या  दिया हमने ही उसको कौर क्या

****
कालिखें  पगपग  बिछी  हैं निर्धनी
तब  बताओ  भाग्य होगा गौर क्या

****
मार  डालेगा  मनुजता  को  अभी
जाति धर्मो का उठा यह झौर क्या

****
हैं  परेशाँ   आप   भी   मेरी   तरह
धूल पग की हो गयी सिरमौर क्या

****
फूँक  दे  यूँ  शूल  जिनके घाव को
मायने  रखता है  उनको धौर क्या

****
प्यार  माथे  का  पसीना  पोछ दे
राहतें  इससे  बड़ी  हों  और क्या

****
आज इस पथ पाँव कल को फिर कहीं
इक ‘मुसाफिर‘  आदमी  का  ठौर क्या

****

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 815

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:30am

आदरणीय भाई  दिनेश जी , गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:25am

आदरणीय भाई गिरिराज जी गजल की प्रशंसा के लिए बहुत बहुत आभार । आप और भाई गणेश जी आपनी जगह बिलकुल सही हैं । मुंहचौर शब्द का प्रयोग प्रायः देखने को नहीं मिलता । इस अप्रचलित शब्द का प्रयोग यहां संकोची स्वभाव के लिए किया गया है । हिंदी भार्गव शब्दकोषानुसार भी इसका अर्थ यही है । जबकि मुंहचोर शब्द का प्रयोग जहां तक मेरा ज्ञान है, गलत कार्य कर मुंहछिपाते फिरने से और मुंहजोर का अर्थ दबंग बोल्ड प्रक्रिति से  है । शेष आप सभी प्रबुद्धजनों से मार्गदर्शन की आकांक्षा है । शुभ ... शुभ.......






Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:23am

 आदरणीय भाई गणेश जी, आपकी उपस्थिति से गजल का मान बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद । आपने सही फरमाया मुंहचैर शब्द का प्रयोग प्रायः देखने को नहीं मिलता । इस अप्रचलित शब्द ( मुंहचौर ) का प्रयोग यहां संकोची स्वभाव के लिए किया गया है । हिंदी भार्गव शब्दकोषानुसार भी इसका अर्थ यही है । जबकि मुंहचोर शब्द का प्रयोग जहां तक मेरा ज्ञान है, गलत कार्य कर मुंह छिपाते फिरने से है । शेष आप प्रबुद्धजनों से मार्गदर्शन की आकांक्षा है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:21am

आदरणीय भाई अजय जी उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:21am

आदरणीय भाई मिथिलेश जी गजल पर शेर दर शेर प्रतिक्रिया देने  के लिए हार्दिक धन्यवाद । स्नेह बनाए रखें....

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:20am

आदरणीय भाई विजय शंकर जी आपका स्नेह पाकर धन्य हुआ .... आभार ....

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:20am

आदरणीय भाई हरिप्रकाश जी , प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:20am

आदरणीय भाई आशुतोष जी, नये काफिये को स्वीकार्यता प्रदान करने के लिए आभार । इस बह्र को २१२२   २१२२  २२१२ पढंे़ ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:19am

आदरणीय भाई गोपाल नारायन जी गजल का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन के लिए कोटि कोटि धन्यवाद ।

Comment by Krishnasingh Pela on January 21, 2015 at 11:00pm
दूसरा शेर कुछ नयाँ अर्थ लिए हुए है । पहली बात तो निर्धनता को कालिख से तुलना की गयी है जो कि प्राय:बदनामी को इंगित करने के लिए प्रयुक्त होता है । दूसरी बात :'अक्सर यह कहा जाता है कि भाग्य में ही निर्धनता हो तो ...' पर आपने कहा है कि निर्धनता जब है तो भाग्य भी क्या करे ! वास्तव में यह कथन भाग्यवाद का निषेध करता है ।
कुछ कम प्रचलित शब्द जैसे 'धौर' (सफेद परेवा) 'झौर'(झगड़ा) आदि को
काफिया में प्रयोग करने के कारण कुछ जटिलता आ गयी है । मुँहचौर में चौर शब्द का अर्थ चोर तो होता है ।
जैसे 'न चौर हार्यम् न च राज हार्यम्...'। फिर भी चोर
के विकल्प में चौर कम ही (सायद ही) प्रयोग करते देखा
गया है । वैसे मैं इस बात के पक्ष में हूँ कि लेखक कुछ अपने प्रयोग कर सकता है । परंतु इस बात का ख़याल जरूर रखा जाना चाहिए कि उस प्रयोग से अभिव्यक्ति का सौन्दर्यवर्द्धन किस हद तक हुआ है ।
शेष चौथा, छठा और सातवाँ, ये शेर बढिया बने हैं । हार्दिक बधाइ कबूलें आ. लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर ' जी !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
56 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service