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रूह प्यासी बहुत घट ये आधा न दो
आज ला के निकट कल का वादा न दो
रूख से जुल्फें हटा चाँदनी रात में
चाँद को आह भरने का मौका न दो
फिर दिखा टूटता नभ में तारा कोई
भोर तक ही चले ऐसी आशा न दो
प्यार के नाम पर खेल कर देह से
रोज मासूम सपनों को धोखा न दो
सात फेरों की रस्में निभाओ मगर
देह तक ही टिके ऐसा रिश्ता न दो
चाहिए अब समाजों को ताजी हवा
तंग नजरों का खिड़की पे ताला न दो
है शिकारी सी फितरत पता है हमें
जाल फैला के थोड़ा सा दाना न दो
याद घर की मुसाफिर को आ जाएगी
वक्त गौधूलि के आज दीवा न दो
रचना - 10 जनवरी 15
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
ग़ज़ल पर उपस्थिति दर्ज कर उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए सभी आ० प्रभुद्ध जानो का हार्दिक आभार आशा है सहयोग बनाये रखेंगे l
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बधाई.
आदरणीय लक्षमण धामी जी,
फिर दिखा टूटता नभ में तारा कोई
भोर तक ही चले ऐसी आशा न दो......... सुन्दर रचना हार्दिक बधाई आपको !
सुंदर ,दिलकश गज़ल
आदरणीय लक्ष्मण जी कमाल की ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत बहुत बहुत बेहद उम्दा ग़ज़ल .... एक एक अशआर कमाल ....
रूह प्यासी बहुत घट ये आधा न दो
आज ला के निकट कल का वादा न दो............ कमाल का मतला
रूख से जुल्फें हटा चाँदनी रात में
चाँद को आह भरने का मौका न दो.........वाह वाह
फिर दिखा टूटता नभ में तारा कोई
भोर तक ही चले ऐसी आशा न दो..... दिल से दाद कुबूल करे
प्यार के नाम पर खेल कर देह से
रोज मासूम सपनों को धोखा न दो........ क्या कटाक्ष है सीधा वार करने वाला
सात फेरों की रस्में निभाओ मगर
देह तक ही टिके ऐसा रिश्ता न दो....... ग़ज़ल का सुन्दर मोती
चाहिए अब समाजों को ताजी हवा
तंग नजरों का खिड़की पे ताला न दो..... आह दिल निकाल लिया इस शेर ने
है शिकारी सी फितरत पता है हमें
जाल फैला के थोड़ा सा दाना न दो..... वाह वाह वाह
याद घर की मुसाफिर को आ जाएगी
वक्त गौधूलि के आज दीवा न दो ... क्या खूब कहा ! आनंद आ गया
दिल से लाखों बधाइयाँ .... बस कमाल ही कमाल .... दिल में उतर गया एक एक अशआर
प्यार के नाम पर खेल कर देह से
रोज मासूम सपनों को धोखा न दो
वाह क्या खूब ग़ज़ल हुई है वाह क्या बात है
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