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मैं हूँ बीमारे गम :हरि प्रकाश दुबे

मैं हूँ बीमारे गम लेकिन ऐसा नहीं,

जैसे जुल्फ से जुल्फ टूटकर गिर पड़े !

मेरा दिल कांच की चूड़ियां तो नहीं,

एक झटका लगे टूटकर गिर पड़े !

मैं हूँ बीमारे गम …………

 

मेरे महबूब ने मुस्कराते हुए ,

नकाब चेहरे से अपने सरका दिया !

चौदहवीं का चाँद रात शरमा गया,

चौदहवीं का चाँद

जितने तारे थे सब टूटकर गिर पड़े !

मैं हूँ बीमारे गम …………

 

जिक्र जब छिड़ गया उनकी अंगडाई का,

शाख से फूल यूँ ,टूट कर गिर पड़े ,

जैसे दुल्हन कोई प्यार की सेज पर,

जैसे दुल्हन कोई

जिंदगी के मजे लूट कर गिर पड़े !  

मैं हूँ बीमारे गम …………

 

हुस्नवालों की गलियों से मैयत मेरी,

रो के काँधे पे जिस दिन उठाई गयी,

कंघियाँ गेसूओं में फँसी रह गयीं,

आइनें हाथ से छूट कर गिर पड़े ! 

 

मैं हूँ बीमारे गम लेकिन ऐसा नहीं,

जैसे जुल्फ से जुल्फ टूटकर गिर पड़े !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 9:16pm

आदरणीय समर कबीर जी, आप जैसे रचनाकार से उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया मिलना मेरे लिए किसी सम्मान से कम नहीं , बहुत बहुत शुक्रिया आपका ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 9:12pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी सर, आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह मिला आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 9:09pm

आदरणीय मोहन  सेठी जी , सही फरमाया आपने . आपके उत्साहवर्धन  एवं समर्थन के लिए हार्दिक आभार !

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 9:04pm

आदरणीय श्याम मठपाल जी सराहना भरी प्रतिक्रया के लिए हार्दिक आभार !

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 9:01pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर ,रचना पर आपकी उपस्थिति  और प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार ! सादर 

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 9:00pm

आदरणीय मिथिलेश भाई ,रचना पर आपका समर्थन मिला ,मन  प्रसन्न हो गया ,आभार आपका !

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 8:57pm

आदरणीय जीतेन्द्र भाईसाहब  उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर

Comment by Hari Prakash Dubey on March 30, 2015 at 8:54pm

आदरणीय  बृजेश नीरज जी , पहले इसे लिखना चाह रहा था जैसे जुल्फ़ो से जुल्फ टूटकर गिर पड़े ,पर लगा की ये सही नहीं होगा , मार्गर्शन अपेक्षित है ! सादर 

Comment by बृजेश नीरज on March 28, 2015 at 7:42am
"जैसे जुल्फ से जुल्फ टूटकर गिर पड़े"
मतलब?
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 27, 2015 at 11:21am

बहुत ही खूबसूरत अंदाज. दिली बधाई आदरणीय हरिप्रकाश जी

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