For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“कार से एक लड़की उतरी और बस स्टैंड की तरफ बढ़ी, एक बुजुर्ग से बोली, अंकल ये ‘मौर्या शेरेटन’ जाने का रास्ता किधर से है, बेटा आगे से जाकर दायें हाथ पर मुड़ जाना, जी शुक्रिया, तभी उसके कानों में एक मधुर संगीत गूँज उठा, “ये रेशमी जुल्फें, ये शरबती आँखे इन्हे देखकर जी रहे हैं सभी....! “

“उसने पलट कर देखा,  रंगीन चश्मा लगाए हुए एक लड़का गा रहा था, बस देखते ही लड़की का पारा गर्म हो गया और तभी उसने उसे एक झापड़ दे मारा, ये ले!”

“बस इतना देखते ही वहाँ खड़े लोग उस पर टूट पड़े और चप्पल, लात, घूँसों से उसे धो दिया !”

“ अरे, तुम लोग इसे क्यों मार रहे हो ... बुजुर्ग व्यक्ति जोर से चिल्लाये, ये बेचारा तो अन्धा है, किसी तरह गाना गा –गा कर अपने परिवार का गुजारा करता है , भीड़ शर्मिंदा थी , लड़के का निस्तेज चेहरा ,बगल में रखा दानपात्र और उसका टूटा हुआ रंगीन चश्मा अब उसके अंधे होने की गवाही दे रहा था !”

“लड़की अपने किये पर शर्मिंदा थी, माफ़ी मांगते हुए बोली, माफ़ करना भईया मुझसे गलती हो गयी, ये कुछ रूपये रख लीजिये !”

“पर आपने गाना तो सुना ही नहीं बहन जी, मैं ये नहीं ले सकता !”

“अच्छा चलिए आपको घर तक छोड़ देती हूँ, अंकल आप भी साथ चलिए रास्ता बता दीजियेगा !”

“नहीं मैं चला जाऊंगा, मेरा दुर्भाग्य हमेशा मेरे साथ –साथ चलता है , और वो पुनः गाते हुए चल दिया ... चुप रहना, ये अफसाना, कोई इनको ना बतलाना ......!”

चश्मा तो लड़के की आँखों से गिरा था, पर आँखे लड़की की खुल चुकी थीं !

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित”     

Views: 628

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Hari Prakash Dubey on March 31, 2015 at 11:44pm

आदरणीय मिथिलेश भाई ,रचना पसंद करने के लिए आपका  बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर

Comment by Shyam Mathpal on March 31, 2015 at 8:29pm

आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी,

Aapne ek dusra paksh pesh kiya hai. Esa bhi aksar hota hai. Sundar sandesh ke liye dheron badhai.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 31, 2015 at 6:04pm

सुन्दर लघुकथा पर बधाई! आदरणीय

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 31, 2015 at 3:37pm

आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी इस सुन्दर कथा के लिए हार्धिक बधाई ...... आखों वाले अंधे समाज के लिए एक कटाक्ष की तरह है आप की ये कथा.

Comment by Gaurav Nigam on March 31, 2015 at 12:48pm

उम्दा , पूर्वाग्रह से ग्रसित मानसिकता पर अच्छी लघुकथा 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 30, 2015 at 8:22am

सुंदर लघुकथा साझा की आपने ,आदरणीय हरिप्रकाश जी.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 29, 2015 at 11:54am

आदरणीय हरिप्रकाश जी

बहुत बेहतरीन कथावस्तु  है . यादगार  रचना .  हरी जी आख़िरी पंक्ति की आवश्यकता नहीं थी वह सन्देश तो आपकी कहानी दे ही रही है.   लघुकथा में संक्षेपण आवश्यक है . रचना की सामग्री  के लिये  आपको पुनः बधाई . सादर . .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 29, 2015 at 3:22am
आदरणीय हरिप्रकाश भाई जी गीत के समानांतर सुन्दर कथा गढ़ी है इस बेहतरीन प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service