“ए बच्ची सुन,यहाँ जेल में किससे मिलने आई है !”
“जी सरकार ,अपने पिताजी से !”
“ पर तू तो भले घर की लगती है, और तेरा बाप जेल में, क्या हुआ था ?”
“साहब एक हादसा हो गया था !”
“कैसा हादसा ,कब ?
“ जी ,सब कहतें हैं मेरे पैदा होने के समय !”
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
अजीब हादसा ...लघुकथा का निचोड़ ! सादर!
आदरणीय हरिप्रकाश भाई जी सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई निवेदित है सादर
इस सशक्त एवं श्लाघनीय प्रयास के लिए हृदयतल से बधाइयाँ, आदरणीय हरि प्रकाशजी.
लघुकथा समस्त विशेषताओं के साथ सामने आयी है.
शुभ-शुभ
बहुत खूब. चंद पंक्तियों में कमाल कर दिया आपने आदरनिय हरिप्रकाश जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें
आ.हरि प्रकाश दुबेजी. अति लघुकथा. अंत रहस्यमई ?
हार्दिक बधाई .
इस अच्छी लघु कथा के लिए बधाई, आदरणीय |
सुन्दर लघुकथा पर हार्दिक बधाईयां आदरणीय!
"मेरे पैदा होने के समय " बस यही वो शब्द है जो पाठक को बार बार सोचने के लिए विवश कर देते है .... आदरणीय हरी प्रकाश दुबेजी .बेहतरीन कथा, बधाई स्वीकार करे.
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