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प्रिय शुभ्रांशु भाई, लघुकथा की आत्मा तक पहुँच आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार.
भाई गणेश बागी जी, कथानक के साथ साथ रचना की बुनावट और कसावट ने भी बहुत प्रभावित किया। बहुत ही सीधी साधी लगने वाली कथा अपने अंदर बहुत से प्रश्नचिन्ह लिए बैठी है। क्या अपने साथ हुई ज़्यादतियों के बारे में घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर ही पता चलता है? या बाहर का माहौल कहीं परिवार तोड़ने का काम तो नहीं कर रहा ? आखिर महत्वपूर्ण क्या है ? किसी संस्था का उच्च पद या परिवार? कोई भी सूझवान व्यक्ति इस रचना को पढ़कर बहुत देर तक बेचैन रहने वाला है, और यही इस रचना की सफलता है। मेरी दिली बधाई प्रेषित है, स्वीकार करें।
sahmat hun apse adarneey yograj ji ... ye rachna dikhne me jitni saral hai apne andar utni hi jatilta samete hai . is par ek lambi charcha bhi ho sakti hai . pariwaar or sanstha dono me kya mahayvpoornn hai ye istri ko hi tay karna hai .pariwaar se alag pahchaan hasil bhi hui to kis kaam ki ?
आदरणीय गुरुदेव योगराज जी, लघुकथा यदि आपके मापदंड पर खरी उतर गयी तो यह कथाकार के लिए पुरस्कार पाने के बराबर है, आपका आशीर्वाद और प्रोत्साहन ही है कि मेरे द्वारा लघुकथा सृजित हो पा रही है, बहुत बहुत आभार आदरणीय.
आदरणीय सुनील भाई आपसे सराहना पाकर लघुकथा कुछ और निखर गयी, बहुत बहुत आभार.
आदरणीया शशी बंसल जी, आपको लघुकथा पसंद आयी और कथा अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रही, कथाकार को और क्या चाहिए, बहुत बहुत आभार.
आदरणीय गणेश भाईजी
स्त्री ही नहीं मर्यादा में तो पुरुष को भी रहना जरूरी है। लेकिन स्त्री यदि सीमा लांघ जाये स्वार्थी होकर मात्र अपना ही हित देखे तो कई पीढ़ियाँ बर्बाद हो जाती हैं। यह भी नहीं सोचा कि पिता बिन बच्चों को किस प्रकार की विकट परिस्थितियों से जूझना पड़ेगा। सामाजिक राजनैतिक या किसी संस्था में बहुत अधिक समय देना हो तो बेहतर है कि अविवाहित रहें। दो नावों की सवारी ठीक नहीं। विधवायें या अविवाहित इन क्षेत्रों में ज़्यादा सफल होती हैं। राधिका दोनों नहीं थी इसलिए उसने तलाक लेना ही उचित समझा। दोनों हाथ में लड्डू बहुत कम लोगों को नसीब होता है। मर्द ताक में रहते हैं मौके का फायदा उठाने से नहीं चूकते, ऐसी कुल वधू को नगर वधू बनते देर नहीं लगती।
संस्कारों की बात है, औरत पिये शराब ।
कुल वधू से नगर वधू , परिस्थिति बड़ी खराब॥
बहुत कुछ सिखाती इस लघु कथा पर हार्दिक बधाई।
//मर्द ताक में रहते हैं मौके का फायदा उठाने से नहीं चूकते, ऐसी कुल वधू को नगर वधू बनते देर नहीं लगती।//
आदरणीय अखिलेश भाई साहब, आपने तो सौ बातों की एक बात कह दी, आपको लघुकथा पसंद आयी और खुबसूरत तथा विवेचनात्मक टिप्पणी दोहा के साथ प्राप्त हुई और क्या चाहिए, मन मुग्ध है, बहुत बहुत आभार.
आपकी सराहना युक्त और उत्साहवर्धन करती टिप्पणी पा कर प्रस्तुत लघुकथा कुछ और समृद्ध हो गयी है, मन खुश है, बहुत बहुत आभार आदरणीया ज्योत्स्ना कपिल.
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