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रुकी हुई सी इक ज़िन्दगी-सिक्वेल 2

रुकी-रुकी सी इक ज़िन्दगी –सिक्वेल 2

 25 साल का सोनू मुझसे चार साल बाद मिल रहा था |इससे पहले जब मिला था तो उसकी शादी नहीं हुई थी |यूँ तो उसका मेरे घर पर बराबर आना-जाना है |पर दिल्ली में रहने और एकाध दिन के लिए ही गाँव में ठहरने के कारण उससे चार सालों से नही मिला था |जाति से लुहार और पेशे से ट्रक-ड्राईवर |पर मेरे पिताजी से उसके पिताजी और उसके आत्मीय सम्बन्ध थे |बस पिताजी की एक छोटी सी मदद के बदले पूरा परिवार मेरे पिता के लिए हमेशा खड़ा रहता था |जब उसकी शादी तय हुई तो पिताजी दिल्ली में मेरे पास थे |

“चचा शादी में जरुर आना है और अगर भईया की शादी वाली शेरवानी मिल जाती ?”कुछ आत्मीयता और संकोच से उसने कहा था

शादी के बाद से शेरवानी सन्दूक में बंद थी और मेरी उसमें तनिक रूचि नहीं थी |मैंने सहर्ष शेरवानी दे दी ये मान के कि दान में गई |

एक साल बाद जब एक दिन गाँव गया तो आलमारी खोलने पर उसमें शेरवानी मिली |पता चला कि शादी के बाद सोनू ने लौटा दी थी और तभी पता चला कि उसकी गृहस्थी की गाड़ी डगमग है |पर उससे मिलने का मौक़ा आज आया था |

मोटर-साईकिल की चाभी थमाकर वो जाने लगा तो मैंने उसे बैठने को कहा |काम-धंधे के बारे में पूछने के बाद मैंने सवाल किया –“अगली सुनवाई कब है ?”

“इसी 25 को |”

“मैंने सुना था कि फैसला तुम्हारे हक़ में आया था फिर ये सब - - -“मैंने कुछ आत्मीयता और कुछ हैरानी से पूछा

“हाँ ,पर उन लोगों ने उसमें दहेज़ और घरेलू हिंसा का नया परिवाद जोड़ दिया है |”

“तो अब वकील का क्या कहना है ?”

“वही –केस तो तुम ही जीतोगे |फैसला पहले भी तुम्हारे हक में था अब भी होगा |बस थोड़ा समय लगेगा |”थोड़ी लम्बी साँस लेते हुए बोला

“नए परिवाद के बारे में वकील का क्या मत है |”

कहता है-केस में दम नहीं है |उनके पास कोई साक्ष्य नहीं हैं |ऊपर से लड़की के बाप और भाई के अवैध कामों की प्राथमिकी की ,उनके सजायाफ्ता होने के सबूत भी हमारे पास है ऐसे में बस सबूत जज को दिखाने की जरूरत है और मामला आर-पार |

“तो समस्या कहाँ है ?”

“अदालती प्रक्रिया की |पिछली चार बार से लड़की वाले कोई ना कोई बहाना करके पेश नहीं होते और उनका वकील अगली तारीख मंजूर करा लेता है |”

“तुम्हारा वकील क्या कहता है ?”

“यही की अदालत की प्रक्रिया है - - -- कुछ समय तो लगेगा ही  - - - -हर बार जाओ साहब की फ़ीस दो  - - -किराया भारा ,काम का हर्जा - - - गाड़ी बस हिचकोले खाते हुए बढ़ रही है |”

“पहले केस का क्या फैसला था ?”

“80000 नकद और सारा शादी का सामान लौटाना पड़ा  |”

“चलो,सस्ते में छुट गए |”

“क्या सस्ते में ?दो साल में छह सुनवाई चली |हर बार वकील साहब को दस हज़ार देने पड़े ,दरोगा ने बीस हज़ार लिए |उन लोगों ने बढ़ा-चढ़ा कर सामान लिखाया था |वो तो अच्छा था कि शादी के समय वीडियो और फ़ोटो हुआ था |”

“तुम्हारी पत्नी मान गई तलाक के लिए ?मेरा मतलब तुम दोनों तो प्यार करते थे ?चुप्प-चुप्प के तुम उसके घर भी जाते थे फिर इतनी आसानी से - - -- “

“भईया ,मछली फँसानी हो तो चारा डालना होता है |मेरी ही मति खराब थी |समझ ही नहीं पाया कि प्यार की आड़ में वो और उसके घर वाले मेरी कमाई पर नज़र गड़ाए हैं |वैसे उसने आपत्ति भी जताई |

”फिर |”

मैंने भी कोर्ट में कह दिया कि उसे मेरे घर आकर रहना होगा |मैं अपने बूढ़े माँ-बाप का अकेला बेटा उन्हें छोड़कर नहीं रह सकता और उसने मना कर दिया |

“उसे तुम्हारे माँ-बाप से क्या दिक्कत है ?”

“जांगर चोर है |कोई काम नहीं करना चाहती थी |बस दो महीने ही तो रही शादी के बाद |अम्मा जब कोई काम कहती तो उन्हीं को उल्टा जवाब देती पर ये बात अम्मा ने बहुत बाद में बताई |पहले बताती तो पीठ सीधी कर देता |”

“तुम्हें ये सब नहीं समझ आया ?”

“ट्रक के ड्राइवर को इतनी फुर्सत कहाँ |उन दो महीने में पाँच-छह रात ही साथ बिताई |नई शादी,थकी हुई देंह और उसकी लड्डू सी बाते \शुरु में तो सब मीठा ही मीठा लगता है भईया |और उसके बाद तो वो मायके ही चली गई |

”उसके घर वाले नहीं समझाते |मतलब माँ-बहन या कोई और - -“

“उन्हीं लोगो का तो खेला है सब |वो चाहते हैं कि मैं उनके घर पर रहूँ और उनकी अँगुलियों पर नाचूँ और जो कमाऊ उन्हीं पर ताप दूँ |”ऐसा कहते हुए उसका चेहरा तमतमाने लगा था |

“शादी में चढ़ाए गहनों का क्या हुआ ?मैंने सुना था कि फसाद की जड़ - - - “

“बेच-खा गए |पक्की रसीद तो थी नहीं हम पर |जानते ही हैं की गाँव देहात में सारा काम जुबानी और कच्चे पुर्जे पर होता है |जैसे इतना गया वैसे ये भी सही |”खुद को संयत करते हुए कहता है

“बात आखिर बिगड़ी कहाँ से ?”

“उसका बाप 1 महीने के लिए विदाई पर ले गया था |चलते समय माँ ने हमारी तरफ के गहने नहीं दिए |छह महीने तक विदाई के नाम पर दिन धरता रहा |फिर एक दिन खबर भिजवाया की नई ब्याही बेटी को छूछे या नकली गहने में विदाई करने में जगहंसाई होगी |अम्मा तो नहीं मानती थीं - - -पर हम ही ले जाकर चोरी से उसे गहने दे आए और उसने अपने बाप को सौप दी |”

“उसके बाद भी विदाई नहीं की ?”

“फिर लड़के की शादी का बहाना बनाया |कहने लगे शादी रख दी है अब ब्याह के बाद एक साथ गौना देंगे |दुल्हिन के डाले में समान दिखाना जरूरी है गहना चढ़ा कर बाद में बेटी को गहने समेत विदा करेंगे |हम भी आँखों पर पट्टी बांधे चोरी-चोरी उससे मिलने जाते रहे |”

“फिर साले की शादी के बाद तो गौना - -- -“

“सब जाल था |शादी वादी तो तय हुई ही नहीं थी बस बात चल कर रह गई थी |इस पर हमने उससे कहा कि वो गौना का चक्कर छोड़े और अपने पिताजी से गहना लेकर हमारे साथ लौट चले |”

“तो वो तैयार हो गई ?”

उसने कहा कि एक हफ़्ते पहले घर में सेंधमारी हुआ था |गहना कोई - - - -मेरी हालत काटो तो खून नहीं वाली - - -पुलिस में लिखाया और हमे पहले क्यों नही बताया ?

“आप की टेन्सन ना हो जाए और पुलिस में कैसे कहते |जानते हैं ना पिताजी पर पहले से ही कितने मामले - -“लोमड़िया ने ये जवाब दिया था

वो आगे कहता है

“तब हमने कहा ,चलो जो गया सो गया ,कल सुबह ही तुम अपनी अटैची उठाओ और हमारे साथ घर चलो |पर उसने कहा कि वो ऐसे बिना गहना-लत्ता के नहीं चलेगी और मुझसे 20000 रुपया और अम्मा की कमरबंद और गला-चेन मांगने लगी |”

“फिर क्या हुआ ?”

एक सप्ता बाद हम दो नई साड़ी और अरटीफेसल गहना,चाँदी का पायल बिछिया  लेकर उसे विदा कराने पहुँचे |

“शाम को उसका बाप–भाय दारू पीकर हमारे अम्मा-काका को गरियाने लगे |हमारा भी खून खौल गया |हाथापाई और पुलिस थाना सब हो गया |”

“तुम्हारी मेहरिया ने थाने में कुछ नहीं कहा !”

“बोली न ! की हम उसकी माँ के साथ जबरी कर रहे थे इसीलिए उसके बाप-भाय हमसे हाथापाई करे |थानेदार ने भी उनकी बात लिख दी और हमी को अंदर कर दिया |”उसके चेहरा दर्द और पीड़ा से भर उठा

उसकी तरफ चाय का कप बढ़ाते हुए मैंने उसकी पीठ पर हल्की से थपकी दी |एक दो घूंट पीकर और गले को खखारते हुए वो फिर बोला

“भईया ये दुनिया बहुत दोखी है |कोई भरोसा लायक नहीं |पिताजी ने दौड़-धूप कर जमानत कराई और फिर हमने तलाक का मामला दायर किया |”

“तलाक मिलने में कितना समय लगा ?”

“पूरा तीन साल ! वो भी एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बाद |सच में इस मुल्क में कचहरी से कोई फैसला कराना माने हथेली पर सरसों उगाना |-- - -पहले दिन जब उसके घर फ़ोन गया तो लोमड़िया बिलबिलाते हुई कही कि उस पर अम्मा-बाबू का दबाब था |हमने कहा कि अगर उसे अपनी गलती का भान है तो घर आ जाए |उसने कहा कि मैं उसके घर चला जाऊ ,उसके माई-बाप मुझे कुछ नहीं कहेंगे |”

फिर आगे बताता है |

उसने कई बार फ़ोन मिलाया पर हमने नहीं उठाया तो फिर वो मैसेज भेजी –तुम्हारे सारे घर को बर्बाद कर देंगे |

“तलाक की जिरह में उसके वकील ने बहुत गलत इलज़ाम लगाए कि हम बाप-बेटे साथ बैठ कर नशा करते हैं |हमारे गाँव की बहिन-भाभी से गलत सम्बन्ध है और हमारी गैर-मौजूदगी में पिताजी उसे गंदा-गंदा देखते हैं|वगैरह-वगैरह - - - “

“ये बात उसने खुद कही - - -“ मैंने पूछा

वो बोली कि उसे ये सब कहने में शर्मिंन्दगी लगती है इसीलिए वकील साहब उसकी ही बात कहे हैं

पर जब मेरे वकील ने सवाल किए तो उनकी घिघी बंद |बाकि काम फ़ोन रिकार्ड,एस.एम.एस.,शादी वीडियो से हो गया |

“फिर इस केस में कब तक उम्मीद है ?”

“देखिए ,कितना समय लगता है |सत्य के पथ पर हूँ |सत्य पथ कठिन तो है पर अनंत में जीतता तो वही है ना !”

“सुन मितवा-सुन मितवा तुझको क्या डर - - - - “उसका फ़ोन बज उठता है |

“ठीक है भईया जी,ट्रक लोड करने के लिए छोड़ आया था ,मालिक का फ़ोन है |”नमस्कार करके वो चल पड़ता है |रुकी

19 मई 2015,आजमगढ़

सोमेश कुमार (मौलिक एवं अमुद्रित )

 

 

 

 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 3, 2015 at 12:41am

कहानी की घटना में कोई दृश्य नही बदलता. पात्रों के कथोपकथन पर पूरी कहानी बढ़ती है. इसके बावज़ूद रोचकता बनी रहती है. एक प्रवाह है पूरे वर्णन में. बहुत अच्छे भाई सोमेशजी. आपने कहानी को बेहतर ढंग से निबाहा है.
हार्दिक बधाई स्वीकारिये.
शुभकामनाएँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 11, 2015 at 1:38pm

आदरणीय सोमेश भाई , आपकी कहानी बहुत अच्छी लगी ,आप्को हार्दिक बधाई । शिल्प का मुझे ज्ञान नहीं है , गुणि जन बतायेंगे ॥

Comment by Madan Mohan saxena on June 10, 2015 at 4:27pm

वाह .... बहुत खूबसूरत

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