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चुस्की
मैं आँखे पोंछता हुआ अस्पताल से बाहर आया |कुछ दूर ढूंढने पर मुझे चुस्की वाला दिखा |पर जैसे ही मैं चुस्की लेकर वार्ड में दाखिल हुआ |वो ठंडा पड़ चुका था |मैंने देखा की चुस्की के रंग-बिरंगे शरबत पिघलती बर्फ में घुलकर कुछ अलग ही रंग के हो गए थे |मैंने चुस्की की कुछ बूंदे उसके मुँह में डाली और एक चम्मच अपने मुँह में उसके बाद मैं फूट-फुटकर रो पड़ा |वार्डब्वाय ने उसके शांत-सफ़ेद चेहरे पर साफ़ सफ़ेद चादर डाल दी मानों बर्फ की सफ़ेद सिल्ली पड़ी हो |
लगभग एक सप्ताह पहले
“तुम मुझे पसंद करते हो इसीलिए तो आज तक मुझसे दूर नहीं हो पाए “ व्हाटएप्स पर उसके गुड मोर्निंग के प्रत्युत्तर में मैंने लिखा |पिछले एक हफ़्ते से उसने मुझे फिर से अनब्लॉक कर दिया था और सुबह-शाम का शिष्टाचार संदेश भेजने लगा था |
“नहीं मुझे तुम्हारे भद्दे चेहरे और तुमसे कोई प्यार नहीं है “इतना लिखकर वो ऑफलाइन हो गया |
“आई हेट यू ,बास्टर्ड “लिखकर मैंने भी फ़ोन मेज़ पर उछाल दिया पर अगले ही पल आत्मग्लानि और खेद से भर उठा |फ़ोन फिर उठाया और लिखा “सॉरी “
मन कुछ हल्का हो गया पर अगले ही पल मैं अपनी बेबसी पर कुढ़ उठा |कितना कमज़ोर बना दिया है इसने मुझे |खुद मौत के मुँह पर खड़ा है फिर भी इतना घमंड ,ऐसा अहंकार |
अपनी एड्स की लड़ाई वो पिछले चार सालों से लड़ रहा है |हर रोज़ मौत उसके नजदीक एक कदम बढ़ जाती है ,उसके अन्य सम्पर्को से पता चला कि उसके स्वास्थ्य में भारी गिरावट है पर वो कभी इस बात का जिक्र नहीं करता |
मैंने कई बार उससे मिलने की गुज़ारिश की पर हर बार उसने साफ़ इंकार किया |जब मैंने कुछ जज्बाती होकर आग्रह किया तो उसने ऐसी कड़वी बात लिखी की मैं अंदर से तिलमिला उठा और एक मौके पर तो मैं इतना कुढ़ गया कि मैंने लिखा –“तुम इसी लायक थे अब मरो तिल-तिल कर - -“
“थैंक्स,सच मैं इसी लायक हूँ |”उसने ये लिखा
ये पढ़ कर मैं अंदर से दहल उठा |उन शब्दों में ढिठाई नहीं ,कमजोरी थी |
मैं खुद से ही पूछ उठा –आह!तू इतना पतित तो नहीं हो सकता जो अपने ही प्रेम को गाली दे |
मुझे आज तक पता नहीं चला कि उसने मुझे कभी प्यार किया या नहीं पर मेरे जीवन में गुजरे लोगों में वो मुझे सबसे प्रिय था और शायद है भी |
आशिफ से मेरी पहली मुलाक़ात चार साल पहले फेसबुक तब हुई जब मैं मेरे जैसे साथियों की तलाश में जुटा था |
ये इक्त्फाक था कि उस 20 वर्षीय आशिफ की मित्र-सूची में उस वक्त 2007 लोग थे और सात जनवरी को जोकि उसकी जन्मतिथि भी थी उसने मुझे 2008 वे मित्र के रूप में शामिल किया |
“तुम मेरे जन्मदिन के उपहारस्वरूप आए हो ,मैं बेहद खुश हूँ |” उसने लिखा
“तुम मेरे 21 वे मित्र हो यानि की शुभ-नेग “मैंने प्रत्युतर में लिखा
“फिर तो मैं तुम्हारे लिए लक्की हुआ |” उसने लिखा
“बिल्कुल ,तुम्हें पाया ये मेरा भाग्य है |”
“फिर ,आज तो मेरा जन्मदिन है ,क्या दोगे ?”उसने लिखा
“दे सकने लायक जो मांगोगे ,मिल जाएगा |”
“तो मिलने आ जाओ - - “
“कब ,कहाँ ?बोलो तो आज ही आ जाऊं ”
“डोन्ट बी इन हरी ,विल सी यू ऑन नेक्स्ट संडे “
“ठीक है |”कहकर हमने चैट को विराम दिया |

मेरे लिए ये पहला सुखद अनुभव था |गोरे छरहरे उस युवक द्वारा मुझे स्वीकारना ही बड़ी बात थी |श्याम वर्ण ,ठिगना कद और चेचक के दानेदार चहरे के कारण पिछले छह महीनों में जोरदार कोशिशों के बावजूद मेरे बीस से ज़्यादा मित्र नहीं बन सके थे |
कई बार मित्र-आग्रह अस्वीकृत किए जाने पर मैं इतना आहत हो जाता कि ये सोचने लगता कि ईश्वर ने मुझे ऐसा क्यों बनाया |कई बार कोशिश की कि पत्नी की ही तरह खुद को उस पर समर्पित कर दूँ |पर मन में कुछ ऐसी छटपटाहट थी जो उसके भरे-पूरे रूपवान नारी शरीर से भी ना जाती थी |शुरु-शुरु में अपने विचारों पर शर्म महसूस हुई पर जब इस विषय पर लेख पढ़े और इटरनेट पर अपने जैसे लोगों को देखना शुरु किया तो अपराधबोध जाता रहा और अपनी भावनाओं को समझने वाले साथियों की तलाश में निकल पड़ा |
अगले संडे को हम नोयडा के जी.आई. पी. मॉल में मिले |जैसे ही स्वचालित सीढ़ियों से चढ़कर में उसके पास पहुँचा उसने मुझे गर्मजोशी से बाहों में भर लिया |उसके इस बर्ताव से मेरे मन में उल्लास और आत्म-विश्वास दोनों भर उठे |
मैंने कहा –मैं भयभीत था कि मुझे देखकर कहीं तुम बिना मिले ना चले जाओ
“ओह ,शट अप यार ,दोस्ती और मोहब्बत रूप-रंग जाति –धर्म से प्रभावित नहीं होती |”
फिर हम इधर-उधर की बाते करते रहे |
एक संदेश आने पर उसे पढ़ता हुआ वो चिंतित होकर बोला –मेरे बी.एफ का है ,पूछ रहा है कहाँ हूँ ,जान गया तो जान ही ले लेगा,अब चलना चाहिए |
मॉल के बाहर आकर उसने एक गोलेवाले की तरफ ईशारा करते हुए पूछा –“खाएँ |”
उसने दो गोले(चुस्की ) ऑर्डर किए |वो अपना गोला जल्दी-जल्दी चूस गया मैं अभी आधा गोला ही खत्म कर पाया था |
‘क्या यार ‘कहते हुए उसने गोले का बाकी गिलास लिया और एक बार में मुँह में भर गया |
“इट्स माई विक्नेस “कहकर वो मुस्कुराया और उसकी इस जिन्दादिली पर मैं भी हँस पड़ा |फिर हम दोनों ने अपनी-अपनी राह ली |
अब हमारी बातों में औपचारिकता की जगह आत्मीयता और गर्मजोशी आने लगी थी |हम रोज़ तीन-तीन घंटे तक बात करते रह जाते |एक दिन उसने मुझे सरप्राइज किया-
“मेरा प्रमोशन हो गया “
“क्या कहीं बड़ी जगह जॉब मिल गई ?”
“नो यार ,नाउ आई एम मामा ऑफ़ अ बेबी “आशिफ ने लिखा |
“बिग न्यूज़,बधाई,लड्डू कब मिलेंगे ?”मैंने पूछा
“हाथ खाली है यार ,अभी तो ये ही समझ नहीं आ रहा कि बच्ची को नेग कैसे दूँ ?”उसने भारी मन से लिखा
“कल संडे है ,याद है ना करोलबाग में मिलना है |”मैंने टाईप किया
“हूँ |” छोटा सा उत्तर देकर वो ऑफलाईन हो गया
अगले दिन मैं नियत समय से पहले करोलबाग पहुँच गया |
मेरे हाथ में शोपिंग बैग देखकर उसने पूछा –ये गिफ्ट किसलिए - -
“शट अप ,ये तो मेरी भांजी के लिए है और देखों अपनी दीदी से ये ही कहना कि तुमने ही दिया है |”
“पर मैं ये तुमसे कैसे - - “ उसने झिझकते हुए कहा
मैंने उसकी पीठ पर हल्का मुक्का जड़ते हुए कहा –हम दोनों के बीच में ये तेरा-मेरा - - -
उसने सॉरी कहा और उस शाम हमने दो-दो चुस्की से पार्टी मनाई |
एक दिन सुबह-सुबह उसका मैसेज आया –‘आई एम वैरी अपसेट एंड लीविंग माई होम ,दे डोन्ट अंडरस्टैंड मी - - “
मैंने उसे फ़ोन किया –“आवेश में कोई कदम मत उठाना ,घर के बाहर बस ठोकरे ही ठोकरे हैं |”
“मैं तुमसे प्रवचन की अपेक्षा नहीं रखता - -“कहकर उसने फ़ोन रख दिया
शाम को छह बजे उसका फ़ोन आया –आई नीड योर हेल्प ,दो-चार दिन के लिए क्या - - -
मैंने कहा –“तुम्हारे लिए मेरा दरवाज़ा हमेशा खुला है ,तुम मेरे बस स्टैंड पर कब तक आ जाओगे ?मैं वहीं मिलूँगा |”
“तुम्हारी फैमली - - - “उसने झेपते हुए कहा |
“तुम भोपाल से आ रहे हो ना ,के.वी. में अभी क्वार्टर का बन्दोबस्त नहीं हुआ है ना !”मैंने ऊँची आवाज़ में घर वालों को सुनाने के लिए कहा
“ओह !समझ गया यार |”कहकर उसने फ़ोन काट दिया
घर के सदस्यों से मिलकर वो अचम्भित-परेशान हो गया |
बाद में उसने एकांत पाकर कहा –“कुड यू प्लीज़ अरेंज अ बीयर - - - -“
“आई सी ,पर मेरे घर में कोई नहीं पीता ,मैं भी नहीं - - - “
“तो रहने दो |” वो बुझे मन से बोला
“मैं कोशिश करता हूँ ,पर इसे सोते समय ही पीना |”मैंने नाराज़ होते हुए कहा
मैंने अपने एक दोस्त को फ़ोन किया जिसका भाई वाइन शॉप पर काम करता था |वो रात को दस बजे मुझे दो कैन बीयर दे गया |
रात को मैं और आशिफ ऊपर के अकेले कमरे में आ गए |
बीयर गटक जाने के बाद वो रोने लगा | मैं उसे गले लगाने के लिए बढ़ा |पर उसने मुझे धकेल दिया |
“यू चीट ,पहले क्यों नहीं बताया कि तुम्हारे बीबी बच्चे हैं ?”
मैं समझ गया कि आज बात करना फिजूल है |
अगले दिन वो अच्छे मूड में उठा और मुझे उखड़ा-उखड़ा देखकर बोला –मूड क्यों स्पोइल कर रखा है ?
“आई एम सारी ,अगर कुछ गलत कह दिया हो ,यार ये नशा ऐसा ही होता है,चाहे प्यार का हो या शराब का “कहते हुए उसने मेरे गलों पर एक किस्स कर दिया और मेरी सारी नाराजगी उस चुम्बन के स्पर्श से छू हो गई |
फिर पूरे दिन हम उसकी समस्या का स्थाई समाधान करने में लगे रहे |इस बीच उसने परिवार के सभी लोगों को अपनी शालीनता और मृद भाषा से अपना कायल कर लिया | दूसरी रात पहली बार जब हम दोनों साथ सोए तो यूँ महसूस हुआ कि सदियों से भटकती धारा आज अपने सागर में एकस्वरूप हो गई है |पहली बार तन और मन दोनों में समन्वय महसूस हो रहा था |
“चौथे दिन संजय का फ़ोन आया कि प्रभाकर के फ़्लैट पर आकर रहे ,उसे नौकरी भी मिल जाएगी |”
“उस रात मैंने उसे कहा –“यू आर दी ब्राइटेस्ट स्टार इन माई लाइफ ,मेरी ज़िन्दगी से कभी मत जाना |”
उसने मेरे ओठों पर अपनी ऊँगली रख दी |
एक रात प्रभाकर का मेरे पास फ़ोन आया –“ आशिफ ने सिरिंज से नशा किया है और पूरा घर उल्टी से भर दिया है |”
“मैं सुबह आता हूँ |” कहकर मैंने फ़ोन रख दिया
अगली सुबह दफ्तर में बीमारी का फ़ोन करके मैं सीधे प्रभाकर के फ़्लैट पर पहुँचा |
मुझे देखते ही वो घर से बाहर निकल गया |
तब प्रभाकर ने उसे फ़ोन करके कहा -ये तुम्हारे लिए इतनी दूर से सुबह-सुबह आया है और तुम हो की रूड हो रहे हो
“मैं अपनी करनी पर शर्मिंदा हूँ |मुझमें इन्हें फैस करने की हिम्मत नहीं है - - “
मैंने मैसेज किया –“शर्मिंदा हो,और अगर मुझे सच में प्यार करते हो,तो फ़्लैट पर वापस आओ -- - “
थोड़ी देर बाद वो वापस आया और पूरे समय आँख नीची किए रहा |
मैंने कहा –“ये नशे की लत बहुत बुरी है |ज़िन्दगी का नशा करो और बाकी सब छोड़ दो |”
उसने बताया कि चार रोज़ पहले उसकी बॉस से झड़प हो गई थी और उसने उसकी सैलरी रोक दी है अब उसके पास रोटी तक के पैसे नहीं हैं,ऐसे में जब साथियों ने इंजेक्शन ऑफर किया तो वो मना नहीं कर सका |
मैंने उसके सिर पर हाथ फेरा और उसे दो हज़ार रुपए थमाए और उसने झिझकते हुए उन्हें पकड़ लिया |
चलने से पहले मैंने उससे कहा –“चुस्की पार्टी नहीं दोगे “और हम चुस्की चूसने पहुँच गए
कुछ दिन बाद मुझे पता चला कि जनाब ने संजय यानि की अपने बी.एफ की आर्थिक तंगी का हाल जानने पर आधे पैसे उन्हें दे दिए |
इस बीच हमारी सामान्य बात होती रही |मैंने उसे आग्रह किया था कि जब कभी उसका इस तरफ आना हो तो वो शाम को मेरे यहाँ ही ठहरे |
एक बार जब वो मुझसे मिलने आया तो मैंने पूछा किधर से आ रहा है |
उसने गोलमोल जवाब देकर टालना चाहा |
मुझे कुछ दिनों से उस पर शक था |चूँकि हमारी बात दिन में दो-चार बार हो जाती थी इसलिए रियल टाईम लोकेटर से उसकी स्थति का पता चल जाता था |कुछ कॉमन दोस्तों से मालूम हुआ कि उसकी ज़िन्दगी में और भी लोग हैं |मुझे इस बात से बहुत ठेस लगी |मुझे उसके साथियों से आपत्ति नहीं थी पर आपत्ति थी की वो मुझसे बहुत कुछ छिपाता था |पर मैं चुप्प रहा |
एक दिन उसने मुझे एक मूवी का नाम मैसेज किया –“डू वाच ,दोनों ना जाने क्यों ,दिस इज इम्पोर्टेन्ट “
तीन दिन बाद उसने पूछा –“तुमने मूवी देखी ?”
“हाँ |”
“सॉरी ,मुझे भी तुम्हारी ज़िन्दगी से जाना होगा,प्लीज् फॉक्स ओन योर फैमली - - - “
“तुम्हें हुआ क्या है ?ये कैसी बहकी-बहकी बात कर रहे हो |”मैंने परेशान-हैरान होते हुए लिखा
“सॉरी ,मैं तुम्हें ब्लॉक कर रहा हूँ |”कहकर उसने मेरा नम्बर और आईडी दोनों ब्लॉक कर दी और मैं केवल छटपटा के रह गया |
एक रोज़ प्रभाकर का मैसेज आया कि इसने फिर नशे का इंजेक्शन लिया है |
“उसके बाप से बोल|आसिफ ने मुझसे सारे रिलेशन तोड़ लिए हैं |”
बाद में पता चला की उसके पिता उसे घर ले गए थे पर एक हफ़्ते बाद ही वो वहाँ से भाग लिया |
एक रोज़ उसका मैसेज आया –आई एम मिस्सिंग यू ,एण्ड नीड योर हेल्प |
तब तक पुनीत मेरे जीवन में आ चुका था और आशिफ के किस्से सुन-सुनकर मेरा मन बिफर चुका था |
“सॉरी - - “कहकर मैंने उसे ब्लाक कर दिया
आगे पता चला कि अपनी नशे की जरूरत पूरी करने के लिए वो अपनी भावनाओं का सौदा करने लगा है |वो एक जुगेलो हो गया है |
सुनकर मुझे बड़ा धक्का लगा |मुझे लगा कि उस दिन समय पर उसकी मदद ना करके मैंने उसे इस स्थिति में डाला है |
मैंने उसे ईमेल किया _आई वांट टू सी यू
इस उम्मीद से की शायद वो जवाब दे |
एक दिन उसका मैसेज आया –“उसमे एक यूरोपियन की फ़ोटो थी और लिखा था |इस आदमी ने मुझे पाँच हजार रुपए दिए और एच.आई.वी. |
मैं सुन के सन्न रह गया |मन में खुद एक भ्रम सा हो आया कहीं ये पहले से - - - -
जितने भी दिन हमने साथ गुजारे थे कभी सावधानी नहीं बरती |मैं उससे ज़्यादा स्वयं और परिवार को लेकर चिंतित हो उठा |मुझे लगा मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसकने वाली है |मैंने उसी दिन एच.आई.वी टेस्ट कराया और अगले दो दिनों तक मैं अधमरा सा रहा |बेटे ने गली में चुस्की वाले को देखकर खाने की जिद्द की तो मैंने उसे डाँट दिया |मुझे लगा ये चुस्की की लाल रंग मेरा खून है और कोकोकोला उसका दूषित रक्त जो चुस्की की पिघलती बर्फ के जरिए मेरे बंदन मेरी ज़िन्दगी में घुलने को तैयार है |जब रिपोर्ट आई तो मेरे प्राण लौटे |
पिछले तीन दिनों से मैंने इंटरनेट भी नहीं चलाया था |फेसबुक खोलते ही उसके मेसेजों की घुसपैठ शुरु हो गई |
माफ कर देना तुम्हारी बात नहीं मानी
शायद उन्ही कर्मों की सजा है
आशा है कि तुम स्वस्थ होगे पर जाँच जरुर करा लेना
मैंने उसे फ़ोन मिलाया पर उसने नहीं उठाया |मैंने मैसेज छोड़ा –“घबराने की बात नहीं है |सही ईलाज से तुम लम्बा और स्वस्थ जीवन जी सकते हो |”
“सबने मुझे छोड़ दिया|ना मेरे पास पैसे हैं,ना कहने को कोई अपना - - -मैं बहुत अकेला हूँ |”
“मैं तुम से मिलना चाहता हूँ |”मैंने लिखा |
“नहीं ,जरूरत नहीं है |” उसने लिखा
“मैं तुमसे प्यार करता हूँ |”
“मैं तुमसे प्यार नहीं करता और तुम्हारी हमदर्दी नहीं चाहता |”ऐसा लिखकर उसने मुझे फिर ब्लॉक कर दिया
“कभी अगर ज़रूरत महसूस करो तो पुकार लेना |”मैंने ये मैसेज लिख छोड़ा | शायद वो पढ़ ले |
२०१२ की होली से एक रोज़ पहले उसका मैसेज आया –पहले से कुछ स्वस्थ हूँ |पूए खाने का मन है |क्या तुम्हारे यहाँ बनते हैं ?
“हाँ,बन जाएँगे ,और तुम मेरे लिए पराए थोड़े हो |मैं तुम्हारा इंतजार करूँगा |”
होली के दिन प्रचलन ना होने के बावजूद मैंने पूए बनवाकर उसका इंतजार किया |पर उसे नहीं आना था और ना वो आया |
“कमीने ,तेरी कौम ही ऐसी है ना त्योहार समझते हो ना जज्बात |”गुस्से से मैंने शाम को ये मेसेज छोड़ा पर उधर से कोई प्रतिक्रया नहीं आई |
जनवरी 2014
पिछले एक हफ़्ते से उसने फिर औपचारिक बातचीत शुरु की थी और आज सुबह-सुबह उसका मैसेज आया –जसवंत अस्पताल में हूँ एक बार मिलने की इच्छा है |
जब अस्पताल में पहुँचा तो देखा कि उसका शरीर पीला पड़ गया है जिस पर जगह-जगह घावों के कारण काले चकत्ते पड़े हुए हैं |
“अब याद आई है ,तू बहुत जालिम है |”मैंने खुद को काबू करते हुए कहा
“यू रियली लव मि - - -“मेरी तरफ गौर से देखते हुए वो बोला
मेरी आँखे डबडबा गईं |
“अच्छा ,वो सुई धंसा ले,मुझ से इन्फेक्टेड है - - “कहकर वो मेरी तरफ देखने लगा
मैं सकपकाया सा उसे देखने लगा तो वो हँसने लगा
“मज़ाक था |प्यार हमें जीना सीखाता है ,तुमनें भी मुझे सिखाने की कोशिश की पर शायद मेरी ज़िन्दगी ही -- - -“ कहते कहते उसका गला रुंध गया |
“मेरे साथ एक चुस्की शेयर करेगा |”कहते हुए उसने मेरी तरफ कातरता से देखा मानों यही उसकी गंगाजली हो |
सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by somesh kumar on June 9, 2015 at 1:23pm

लंबे समय से मंच से अनुपस्तिथि के लिए सभी मित्रों से क्षमाप्रार्थी हूँ |कहानी पे प्राप्त आदरणीय गुरुओं की टिप्पणी से बहुत उत्साहित अनुभव कर रहा हूँ |कहानी लिखते समय ही मन में एक संकोच और भय था कि कई इस पवित्र मंच की गरिमा से बाहर का विषय तो नहीं उठा रहा हूँ पर साथ ही मन ये कह रहा था कि विशद समाज में विशद विषयों को बिना किसी पूर्वाग्रह के उठाना साहित्यकार का पहला धर्म है |आप लोगों के आशीष एवं प्रेम से शायद कुछ हद तक अपनी कोशिश में सफल हुआ |उम्मीद है की भविष्य में भी आप सभी का वरदहस्त सिर पर बना रहेगा और अपनी अपूर्णताओं  को समझते सीखते हुए साहित्य में कुछ योगदान दे आऊंगा |

आप सबका प्रेमाकांक्षी

आपका सबका अनुज


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 26, 2015 at 8:54pm

भाई सोमेश कुमारजी, आपकी कहानी को पढ़ कर कई बार कुछ कहने को उद्यत हुआ किन्तु फिर रुक गया कि कुछ और विन्दु सोच लूँ जो साझा हो सके.
इस स्पष्ट तथा इतनी संवेदनशील कहानी को इतने परिमार्जित ढंग से आपने प्रस्तुत किया है कि मैं दंग हूँ. आपकी गद्य-प्रस्तुतियो में वाकई ग़ज़ब की तारतम्यता है जिसके कारण कथ्य की रोचकता बनी रहती है.
आपने नितांत अछूते विषय को उठाया है. इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं. आपकी ओर से ऐसी कहानियों का प्रस्तुतीकरण इस मंच के लिए गर्व होगा.

हार्दिक शुभकामनाएँ, सोमेश भाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 16, 2015 at 9:53am

आदरनीय सोमेश भाई , बहुत सुन्दर भाव पूर्ण कहानी लगी , हार्दिक बधाइयाँ आपको ।

Comment by Hari Prakash Dubey on May 16, 2015 at 9:46am

सोमेश  भाई , बहुत बढ़िया ,सुन्दर रचना  बधाई स्वीकार  करें ! सादर 

Comment by Shubhranshu Pandey on May 14, 2015 at 10:45pm

आदरणीय सोमेश जी.

एक सुन्दर कथा विषय नया और बोल्ड कहा जा सकता है. आधुनिकता के कई बाइप्रोडक्ट हैं उनमें से कुछ को छुने की कोशिश की है लेखक ने. कथा के प्रवाह में वो समाहित होते चले जाते हैं. पैबन्द से नहीं लगते.

सादर.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 14, 2015 at 6:45am

आदरणीय सोमेश जी   बहुत लम्बी किन्तु बेहद रोचक ..पढता ही चला गया ..रचना का प्रवाह कहीं भी नहीं टूटा है ..लिखते समय लेखक की आवृत्ति पढ़ते समय पाठक की आवृत्ति एक लय में हो जाए तो आनंद आ जाता है .आपको दिल से बधाई सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 13, 2015 at 8:02pm

आ0 सोमेश भाई जी, दिल को छूती सुंदर कथा.  बधाई स्वीकारे. सादर

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