रुकी हुई सी एक ज़िन्दगी
फ़्लैट में जब दाखिल हुआ तो वो मेरे साथ बगल वाले सोफे पर बैठ गया |उसके रिटायर्ड पिताजी ने पहले पानी दिया और कुछ देर बाद चाय बनाकर ले आए |हाल-चाल की औपचारिकता के बाद मैंने कहा यहाँ घुटन सी है |बाहर पार्क में चलते हैं और हम बाहर निकल आए |ई.टी.ई ट्रेनिंग के 9 साल बाद आज मिलना हुआ था |छह माह पहले वो फेसबुक पर टकराया था |वहीं पर थोड़ा सा उसने अपने जीवन के उतार-चढ़ाव का हल्का-फुल्का जिक्र किया था और तभी से उससे मिलने का मन हो रहा था |
“आगे क्या सोचा है ?”पार्क के बेंच पर बैठते ही अनिल से मुखातिब होते हुए मैंने पूछा
“सोचने की स्थिति में कहाँ हूँ ?अभी तो बस भोगना है |किसी तरह इस आफत से पिंड छूटे तो चैन आए |”उसने निराशापूर्वक कहा |
“फैसला कब तक आने की उम्मीद है ?”
“शायद जब ढाढ़ी पूरी तरह दुधिया हो जाए,छह साल पहले ये पूरी तरह काली थी अब देख लो - - - - “उसने अपने गालों की तरफ ईशारा करते हुए कहा
“मेरे हिसाब से पैंतीस का हो चुका है तू - -?”
“नहीं भाई ,चालीस के पार जा रहा हूँ,उम्र तो बस - - - - “
“क्या वो भी तलाक ही चाहती है |मेरा मतलब कि क्यों नहीं फिर से एक कोशिश करते |”
“इतना कुछ सहने के बाद भी - - - - - इससे तो अच्छा है कि आत्महत्या कर लूँ |”
“सॉरी ,मेरा इरादा तुझे हर्ट करना नहीं था पर ताली तो दोनों हाथों से बजती है ना - - - “
“तेरी गलती नहीं है भाई |जिस पर गुजरती है वही जानता है- - - - -वैसे बीस लाख माँगे हैं उसने कोर्ट के बाहर सेटलमेंट को - - - - साला इतना तो अभी तक कमाया भी नहीं |”
“पर तेरी तो लव मैरिज थी ना !फिर इतना सब कुछ !”
“लव नहीं वो ट्रैप था |मुझे और मेरे परिवार को बर्बाद कर वो अय्यासी कर रही है |बहुत सारे सबूत हैं मेरे पास- - - - पर कोर्ट में हर छह महीने के बाद मुशकिल से हियरिंग मिलती है और बिना सबूत देखे फिर अगली डेट दे देते हैं |जस्टिस डिलेड इज़ जस्टिस डीनाईड - - - - बस रोज़ मर रहा हूँ |”
“तो तू भी क्यों नहीं कोई पार्टनर ढूंढ लेता |कोई अपने ही जैसा - - - - -हो सके तो कोई विधवा हो - - वैसे मुश्किल काम है क्यूंकि तेरे पर डाईवरसी का मामला है |पर विधवा ज़्यादा सेफ ऑप्शन है |
“फाइनल डिसीजन से पहले कोर्ट छह महीने का समय देता है उतना समय काफ़ी है |वैसे डर भी लगता है |”
“पर हर कोई तो खराब नहीं हो सकता |ये भी तो हो सकता है कि इससे भी खराब पार्टनर मिली होती |”
“इतना कुछ देख लिया और इतना कुछ सुन चुका हूँ कि अब हिम्मत नहीं होती |एक विधवा का आफर आया था जिस स्कूल में पहले था वहीं साथ के स्कूल में काम करती थी |वहाँ का प्रिंसिपल बाद में मेरे स्कूल में आ गया |उसने बताया फला नाम के मास्टर ने घरवाली से परेशान होकर फांसी लगा ली थी जबकि बताने वाले ने मुझे बताया था कि वो सड़क हादसे में मरा | - - - - - - - - - - एक और लड़की का आफर था किस्मत से उसके ससुर मुझे इसी पार्क में मिले थे |उस लड़की ने लड़के के शहर से बाहर होने पर बैंक लॉकर से जाली साईन कर 15 लाख की ज्वैलरी उड़ा ली और जब उसकी पोल खुली तो लड़के वालों पर ही दहेज और घरेलू हिंसा का मामला दर्ज करा अपने मायके बैठी है और अब दूसरा शिकार - - “
“पर ऐसे अकेले कब तक ?अब तो आंटी-अंकल भी बूढ़े हो गए हैं |वैसे सारी दुनिया खराब तो नहीं है ”
“पता नहीं पर अगर अच्छी मिलनी होती तो ऐसा होता ही क्यों ?काश !समझ पाता कि वो आँसू मगरमच्छ वाले थे काश !मुझे भी भावनाओं से खेलना आता |”ऐसा कहते-कहते वो बहुत भावुक और असहाय लग रहा था
“ये सब कब शुरु हुआ ?मेरा मतलब मुझे तो कभी पता ही नहीं था कि तेरा भी अफेयर है |”
“नौकरी में आने के बाद एक रोज़ वो फेसबुक पर मिली|कालेज के ग्रुप पेज़ पर - - - - - - -कोलेज की होने के कारण नाम और सूरत से तो दोनों ही परिचित थे |फ्रेंड रिक्वेस्ट भी उसी ने भेजी थी पहले चैट हुई ,मोबाईल एक्सचेंज हुए फिर मुलाकात और एक दिन हम होटल में मिले |उसने ही मुझे उकसाया था |”
“तुम खुद पर काबू नहीं रख पाए और ये उसी की सजा है |”
“दोस्त,तू तो जज मत बन |मेरी गलती सिर्फ इतनी थी कि मैंने उसके परिणामों पर गौर नहीं किया बस धाराओं के साथ बहता चला गया और अब - - - - “वो गहरी साँस लेकर बोला |
“फिर ?”उसके काँधे पर हाथ रखकर मैंने पूछा
“एक संडे को वो अपनी माँ को लेकर मेरे घर आ गई |उसने मुझ पर आरोप लगाया कि मैंने उसके साथ जबरदस्ती की है और अगर मैंने उससे शादी नहीं की तो - - - -वो मेरी नौकरी खा जाएगी और सारे घर को तबाह कर देगी |उसने कुछ क्लिप भी मुझे दिखाई - - - - काश ! तब ही हिम्मत कर लेता तो आज ये दिन - - - “
“मम्मी-पापा ने कोई आपति नहीं कि ?”
“हम पंजाबी हैं और वो एस.सी. पर मेरे घरवालों को तो अच्छी बहू चाहिए थी |नयन-नक्श तो उसके हैं ही अच्छे |बात-बात पर आँसू बहाने में तो उसे महारत है पैरेंट्स को भी लगा कि लड़के की गलती है |”
“क्या वो शादी के बाद जॉइंट फैमली में नहीं रहना चाहती थी या कोई दूसरा कारण था ?”
“शालीमार बाग में हमारे दो फ़्लैट थे |एक हफ़्ते बाद हो वो जिद्द करने लगी तो मम्मी-पापा ने हमे ऊपर शिफ्ट कर दिया |पर उसके आने-जाने का कोई टाईम नहीं था |मैं थोड़ा सा भी लेट होता या बाहर जाने लगता तो मुझसे सौ सवाल करती और जब मैं उस से पूछता तो गली-गलौज पर उतर जाती |पड़ोस में रहने वाले विरोधियों के घर जाकर हम सबकी शिकायत करती |यहाँ तक कि मेरे और माँ के बारे में - - - -नीच औरत !”उसकी जुबां और चेहेरे पर भयंकर घृणा भर आई|
“किसी ने उसको समझाया नहीं ?”
“कौन समझाता ?बाप की चलती नहीं |हर बार माँ आती थी और माँ-बेटी हमें ही दोषी ठहराते|चिल्ला-चिल्लाकर सारा मोहल्ला इक्कट्ठा कर लेते|
जब मन होता मायके चली जाती |फ़ोन करने पर पता चलता कि आज घर नहीं आएगी |पता नहीं कि वहीं जाती थी या कि - - - - -”
“तुने कभी जानने कि कोशिश नहीं कि की वो ऐसा क्यों करती है ?”
“मैंने जब भी पूछा वो गली-गलौज शुरु कर देती और धमकी देने लगती |पड़ोस के जिन घरों में वो जाकर बैठती थी वहाँ के लड़के मुझे नामर्द और ना जाने क्या-क्या कहते थे!उसे हमारे सुखों-दुखों से कोई मतलब नहीं था |ताऊजी की मौत होने पर वो मायके थी |जब मैंने बुलाया तो बोली उस बुड्ढे से उसे कोई लेना-देना नहीं | मैंने भी गुस्से में कह दिया कि उसे वापस आने की जरूरत नहीं |हमारे घर से ताऊजी का घर दस किलोमीटर पर था |माँ और मैं वहीं रुक जाते थे और पापा रात को वापस आ जाते थे |चौथे के रोज़ जब पापा घर पर आए तो देखा कि सारा मोहल्ला वहीं इक्कठा है |एक पड़ोसी ने तो कहा कि अरोड़ा साहब बहू को क्यों सता रहे हो ?सोसाइटी का तो ख्याल रखिए ?”
“कोई उसको दोषी नहीं ठहराता था ?”
“लोमड़ी,मगरमच्छ की तरह आँसू बहाने लगती थी |अगले दिन जब मैं लौटा तो मैंने भी कहा कि मैं किराए के मकान में रहूँगा और उसे मेरे साथ रहना होगा |पहले तो वो तैयार हो गई और मेरे साथ उसने कई फ़्लैट देखे पर बाद में जब फईनल हो गया तो उसने साथ रहने से इंकार कर दिया और वहीं फैमिली फ़्लैट पर काबिज रही |बाद में छह महीने बाद मैंने कोर्ट में मैरिज के उत्तरदायित्वों से भागने के आरोप में पेशी करवाई तो वहाँ भी वो मुझे ही अक्षम और गैर-जिम्मेवार ठहराने लगी पर कोर्ट ने उसे नियमों का हवाला देकर साथ रहने को कहा |”
फिर तो उसका गुमान उतर गया होगा वो ठीक हो गई होगी ?
“एक रोज़ मेरी मकान-मालकिन मेरे स्कूल आई और फूट-फूट कर रोने लगी कि उसकी गृहस्थी बर्बाद हो रही है |वो निरंकारी थी और हर रोज़ 3-4 घंटे सत्संग जाती थी इसी बीच उसका पति रोज़ घर आ जाता और उसके आने से पहले वापस चला जाता |वो अपनी गाड़ी घर से काफ़ी दूर खड़ी करता पर ये चीज़े कब तक छुपती हैं पड़ोसन के कहने पर वो एक रोज़ जल्दी आ गई थी और उन्हें रंगे हाथ –- - -- “ऐसा कहते हुए वो कुछ-कुछ शर्मिंदा महसूस कर रहा था |
“फिर तो उसने तुझसे माफ़ी माँगी होगी !”
“कुछ लोग कभी नहीं सुधरते |अगले रोज़ उसकी माँ आकर मकान-मालकिन से झगड़ा करने लगी और माँ-बेटी दोनों उसे एस.सी. एक्ट में फसाने की धमकी देने लगीं पर पड़ोसी जब खुलकर मकान-मालकिन के पक्ष में आ गए तो वो दोनों चुपचाप चली गईं और मैं वापस अपने घर आ गया |तीन महीने बाद ही हमने वो फ़्लैट
बेच दिया और अब यहाँ शिफ्ट हो गए हैं |”
क्या उसके बाद से तुमने कोई सम्पर्क नहीं किया ?”
“मैं उसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहता |हाँ उसने एकाध-बार फ़ोन किया पर मैंने नहीं उठाया |”
“हो सकता है कि उसे अपनी गलती का अहसास हो |और वो सुधरना चाहती हो |”
“सुधरना चाहती तो पुलिस लेकर घर नहीं आती |हम पर इसने कई तरह के झूठे मामले दर्ज करवाए पर शुक्र है कि तब तक मैंने बहुत से सबूत इक्कठे कर लिए थे और उसी के आधार पर मैंने तलाक का मुकद्दमा दायर किया है |” वैसे भी सुधरने वाले चुपचाप ठिकाने नहीं बनाते |उसने उत्तमनगर में एक फ़्लैट ले रखा है जिसका बैंक लोन है और ये उसने शादी से कुछ समय पहले ही लिया था और इस बात कि खबर मुझे उसके पुराने स्कूल की एक साथी से चली |”
“हो सकता हो उसने निवेश करने के लिए फ़्लैट लिया हो और रिश्ते में सब कुछ अच्छा ना होने के कारण तुझे कभी बताया ही नहीं |”
“वहाँ पर उसने मौज करने का अड्डा बनाया था |मैंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर पूरी तहकीकात की है |उसकी मोबाईल डिटेल से लेकर उसकी मूवमेंट तक बहुत से सबूत हैं |बहुत से वीडियो है उसके एक लड़के के साथ –तस्वीरे हैं और ये सब तभी की हैं जब वो किराए के मकान से निकली थी |क्या उसकी माँ नहीं जानती ?उसका एक जीजा है जो रिक्शा चलाता है उसने भी बहुत से सबूत दिए हैं |दोस्त और कई लोग गवाही देने को तैयार हैं पर - - -
हर तारीख के बाद एक नई तारीख और ज़िन्दगी ऐसे ही घसीटा मार आगे बढ़ रही है |
घर मैं आकर जब वो सबूत दिखाता है तो मैं पूछ बैठता हूँ कि कब तक मुक्त होगा |
“पता नहीं –पुलिस –जज-वकील सबसे मिल चुका हूँ और सब यही कहते है कि समय लगेगा |”
“वो लड़का जो विडियो में है इसके घर कभी बात की ?”
“उस समय ये कंवारा था |दो साल पहले इसने कहीं और शादी कर ली है |इसकी पत्नी भी टीचर है |एक दोस्त के द्वारा उससे सम्पर्क किया था और उसे सबूत भी दिखाए थे पर उस वक्त वो गर्भवती थी | बाद में एक बार जब मैंने उससे फ़ोन पर बात की तो वो मुझे ही भला-बुरा कहने लगी |अब तो मन टूटने लगा है |जितनी देरी हो रही है आशंका और भय उतना ही बढ़ रहा है |फैसला मेरे पक्ष में भी आया तो भी क्या फ़ायदा - - -! ”
“देर हो रही है |अब चलता हूँ |बस हिम्मत मत हारना |वैसे भी तुने वो गीत सुना होगा कि दुनिया में कितना गम है मेरा गम - - - - -- अब सम्पर्क में रहेंगे |”फ़ोन पर पत्नी की लगातार आती घंटी देख उसके काँधे पर हाथ रख मैं उठ खड़ा हुआ |
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
मिथिलेश वामनकर भाई जी कहानी पर आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए साधुवाद ,यथार्थ और संसमरण पर आधारित कथा होने के कारण इसमें बहुत प्रयोग नहीं किए |बस यही कोशिश रही कि कहानी अपने भाव और उद्देश्यों से अवगत करा पाए |कहानी के शुरु में ही कहा गया उसके पिताजी चाय लाए ,आगे गौण पात्र के रूप में लेखक मैं शैली में बात करता है |अनिल के जीवन में घुटन है जो लेखक को फ़्लैट में असहजता लगती है ,अनिल के पिताजी की उपस्तिथि में शायद खुल कर संवाद करना कठिन था इसलिए पार्क जाना पड़ा |
कहानी को पार्क के बेंच पर खत्म करने पर लेखक शायद उस सत्य का बोध नहीं कर पाता जो अनिल ने सबूतों के तौर पर जमा किए हैं |
शिज्ज शकर भाई जी एवं आदरणीय गिरिराज सर हौसलाअफजाई के लिए शुक्रिया
शुक्रिया, हरिप्रकाश दूबे भाई ,कहानी को सराहने और पढ़ने के लिए
आदरणीय सोमेश भाई कहानी की प्रस्तुति पर बधाई.
आरम्भ में कौन किसके घर गया और किसके रिटायर्ड पिता ने चाय बनाई ये थोड़ा सा गडमड हो गया है स्पष्ट नहीं हो रहा है .. कहानी में अनावश्यक भी लग रहा है अगर बाहर बाग़ में बेंच पर ही बैठना था तो घर ही क्यों गए. खैर कहानी पार्क के बेंच से आरम्भ और वही ख़त्म हो तो ज्यादा अच्छा लगेगा. कहानी का अंत रुकी हुई ज़िन्दगी के अनुकूल पार्क का विवरण देकर हो तो अंत प्रभावशील लगेगा ऐसा मेरा विचार है . सादर
आदरणीअय सोमेश भाई , बहुत सुन्दर !! हार्दिक बधाइयाँ ॥
सोमेश भाई नियमो का किस तरह गलत इस्तेमाल होता है ये आपकी रचना से जाहिर है। आपकी मेहनत और इस रचना के लिये बहुत बहुत बधाई
सोमेश भाई , बहुत बढ़िया ,आपकी मेहनत को लाल सलाम , बहुत बहुत बधाई आपको !
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