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मौका नहीं सौदा (लघुकथा)

"मैं तुम लोगों को लेने आया हूँ "
"इतना गलत कार्य करने के बाद भी इतनी हिम्मत!"
"क्या पुरानी बातों को भुला कर, नया जीवन नहीं शुरू नहीं कर सकते "
"क्या भरोसा की तुम उन बातों की पुनरावृत्ति नहीं करोगे?"
"एक मौका दे दो मुझे"
"अब तुम्हे मौका नहीं दिया जा सकता बल्कि एक सौदा किया जा सकता हैं ,मेरे जेवर उतना धन दोनों बेटियों के नाम बैंक में जमा करों जो तुम जुऐं में लूटा चुके हो।अन्यथा मेरे दरवाजे तुम्हारे लिए सदैव बंद हैं।"

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by VIRENDER VEER MEHTA on July 26, 2015 at 10:13pm
सुन्दर और नारी पक्ष को मजबुती देती अच्छी रचना। सादर बधाई आदः अर्चना जी।
//मेरे जेवर उतना धन// को " मेरे दिये जेवर के बराबर धन " कर सकती है सादर।
Comment by kanta roy on July 26, 2015 at 10:03am
वक्त वक्त की बात है । काठ की हाँडी बार बार नहीं चढती है । स्त्रियों का कोमल मन होना ही उसके छलित होने का कारण बनता है । अब जरूरत आन पडी है कि अब वो भी पुरूषों की लेन देन वाली मानसिकता स्वंय में निर्माण करें और बेहद सतर्क होकर अपने जीवन लक्ष्य को अग्रसर हो । इस कथा में नारी का सचेत होना अपने अधिकारो के प्रति बडा ही सुखदायक है । हार्दिक बधाई आपको आदरणीया अर्चना जी इस सुंदरतम रचना के लिए ।

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